किडनी की बीमारी की अंतिम अवस्था में भी प्रत्यारोपण संभव

 

किडनी फेल्योर में प्रत्यारोपण से मरीजों का नया जीवन

गुर्दे यानी किडनी, हमारे शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग होते हैं, जो कि शरीर के मध्य भाग में स्थित होते हैं और पूरे शरीर को नियंत्रित व संचालित करते हैं। रक्त साफ करने की प्रक्रिया से शरीर में पानी की मात्रा संतुलित करना, रक्तचाप, मधुमेह को नियंत्रित करना, शरीर में से अवशिष्ट व विषैले पदार्थों को मूत्र द्वारा बाहर करना तथा आवश्यक पदार्थ विटामिंस, मिनरल्स, कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम इत्यादि को वापस शरीर में भेज कर इलैक्ट्रोलाइट्स को संतुलित करता है।

क्‍या है किडनी फेल होना,किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट क्‍या है सही |  TheHealthSite Hindi

प्रत्येक गुर्दा हृदय से प्रारंभ होने वाली मुख्य रक्त वाहिनी आर्टरी से आने वाली धमनियों के जरिए प्रचुर मात्रा में रक्त की सप्लाई करता है। कई बार गुर्दे विफल होने की परिस्थिति में गुर्दे ये सभी कार्य करने में असफल हो जाते हैं और शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है।
समय के साथ किडनी रोग गंभीर होता जाता है और इसके कारण किडनी फेलियर हो सकता है। किडनी फेलियर उसे कहते हैं, जब किडनी अपनी सामान्य गतिविधियों का 10 प्रतिशत से भी कम कर पाती है। इसे किडनी काम करने की अंमित अवस्था स्टैयज रीनल डिसीज (ईएसआरडी) कहते हैं, इसे डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के द्वारा ठीक किया जाता है। डायलिसिस सबसे आम तौर पर किया जाने वाला सामान्य तरीका है जिसे किडनी फेल होने पर किया जाता है। किडनी ट्रांसप्लांट अक्सर डायलिसिस के लिए बेहतर होता है। दरअसल इस प्रक्रिया के तहत मरीज के भर्ती करने के बाद सबसे पहले उसके शरीर में मौजूद सभी एंटीबाडीज को निकालने के लिए दवाइयां दी जाती हैं और इसका भी ध्यान रखा जाता है कि मरीज के शरीर में नई एंटीबाडीज का जन्म न हो। जैसे ही एंटीबाडीज का स्तर कम हो जाता है और वह सर्जरी करने के स्तर तक आ जाता है, तो तुरंत दानकर्ता की किडनी से उसे प्रत्यारोपण कर दिया जाता है। एंटीबाडीज वे प्रोटीन तत्व होते हैं जिन्हें इम्युनोग्लोबुलिन के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर शरीर के प्रतिरोधक प्रणाली के द्वारा इनका निर्माण किया जाता है, जो कि बाहरी तत्वों से शरीर का बचाव करने में सक्षम होते हैं। ऐसे में, वे बाहरी तत्वों के साथ रिएक्ट करते हैं। ऐसे में ये एंटीबाडीज प्रत्यारोपित की जाने वाली किडनी को रिएक्ट कर सकते हैं। तो प्रत्यारोपण करते समय सबसे पहले इन एंटीबाडीज के स्तर पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। सर्जरी के बाद मरीज पर चार सप्ताह तक मरीज का पूरा ध्यान रखा जाता है कि कहीं किडनी रिजेक्ट न हो जाए।

किडनी प्रत्यारोपण क्या हैं?

नई और उन्नत सर्जिकल तकनीकों और बेहतर दवाओं के साथ ट्रांसप्लांट सर्जरी की सफलता दर 97 प्रतिशत हो गई है। दाता सर्जरी के 1-2 सप्ताह में अपनी सामान्य जीवन शैली की दिनचर्या को फिर से शुरू कर सकता है और अस्पताल में 3-4 दिनों से अधिक रूकना नहीं होता है। किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी में रक्तदाताओं के लिए शामिल जोखिम या जटिलताएँ कोई नहीं हैं। किडनी दाताओं को किसी भी आहार प्रतिबंध या दीर्घकालिक दवाओं की आवश्यकता नहीं है, अधिक से अधिक रोगियों को अब डायलिसिस से पहले ट्रांसप्लांट का विकल्प चुनने की सलाह दी जा रही है, जब उनके गुर्दे के कार्यों में गिरावट शुरू हो गई है, क्योंकि डायलिसिस के अल्पकालिक और दीर्घकालिक नकारात्मक परिणाम होते हैं, जिन्हें शुरुआती प्रत्यारोपण के माध्यम से टाला जा सकता है।
गुर्दा देने के बाद दानकर्ता पहले की तरह ही स्वस्थ होता है और अपनी पहले जैसी नियमित दिनचर्या अपना सकता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद मरीज भी सामान्य जीवन जीता है और 2-3 महीने के बाद अपने काम पर वापस लौट सकता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद का जीवन परिवर्तित जीवन शैली नियमित दवाईयों खाने-पीने में परहेज साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखना संक्रमण से बचाव आदि पर ही निर्भर करता है। प्रत्यारोपण के बाद वजन, रक्तचाप व शूगर लेवल का खास ख्याल रखना पड़ता है। असल में इस रोग के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि जब गुर्दा 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो जाता है तब इसके लक्षण दिखने लगते हैं और इसके इलाज की सुविधा देश के कुछ चुने हुए शहरों में ही उपलब्ध है। इसलिए कभी भी इसके लक्षण दिखने पर इधर-उधर समय बर्बाद न करें। फौरन प्रमुख चिकित्सा केंद्रों पर संपर्क करें तथा डॉक्टर के दिशा-निर्देश एवं खान-पान में परिवर्तन तथा नियमित जीवन शैली अपनाकर इस बीमारी से राहत पाया जा सकता हैं।

डॉ. अनुजा पोरवाल, एडिशनल डायरेक्टर
फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा

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