कोरोना के डेल्टा वायरस के बाद डेल्टा प्लस की चिंता, जाने कैसे बचे? कितना प्रभावी है वैक्सीन…

नई दिल्ली:- कोरोना संक्रमण के दैनिक मामलों में अब काफी हद तक कमी आई है, लेकिन इस बीच वायरस के डेल्टा प्लस वैरिएंट ने अलग चिंता पैदा कर दी है। इसे कोरोना का सबसे घातक रूप बताया जा रहा है। महामारी की दूसरी लहर में वायरस के जिस वैरिएंट ने तबाही मचाई, उसे डेल्टा नाम दिया गया है और अब जो डेल्टा प्लस वैरिएंट आया है, उसे पहले वाले से भी ज्यादा घातक माना जा रहा है। जीनोम सिक्वेसिंग के जरिये भारत में इस खतरनाक वैरिएंट की मौजूदगी की पुष्टि हुई है। महाराष्ट्र की कोविड टास्क फोर्स ने यह आगाह किया है कि अगर कोरोना के नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया गया तो आने वाले एक-दो महीने में महामारी की तीसरी लहर राज्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। कहा जा रहा है कि तीसरी लहर में मरीजों की संख्या दूसरी लहर के मुकाबले और अधिक हो सकती है।

दिल्ली स्थित आरएमएल अस्पताल के डॉ. ए. के. वार्ष्णेय कहते हैं, ‘वायरस कोई भी हो, वह हमेशा जेनेटिक स्ट्रक्चर (आनुवंशिक संरचना) चेंज (बदलना) करता रहता है। जब यह अपना स्ट्रक्चर बदलता है तो हम इसको नाम दे देते हैं। इनमें एक तरह की लड़ाई होती है, जैसे हम वायरस को खत्म करना चाहते हैं और वो अपना रूप बदल कर फिर आता है। वायरस अपने में ऐसा बदलाव करता रहता है कि जो वैक्सीन या दवा दी जा रही है, उससे बच सके। जहां तक इससे बचने का सवाल है, वही मंत्र हैं। मास्क, हाथ साफ और सुरक्षित दूरी।’

क्या नए वैरिएंट पर वैक्सीन प्रभावी

अभी तक हम जो वैक्सीन लगा रहे हैं, वैरिएंट पर भी प्रभावी है। चूंकि वायरस नया है और जेनेटिक स्ट्रक्चर (आनुवंशिक संरचना) भी नए हैं तो आने वाले समय में पता चलेगा कि वैक्सीन कितनी प्रभावी है। इसके साथ ही कितनी एंटीबॉडीज शरीर में रहती हैं या कैसे-कैसे वायरस अपने स्वरूप को बदलता है। कई बार वायरस इसी तरह जेनेटिक बदलाव करके खत्म हो जाते हैं। सार्स कोरोना वायरस ऐसे ही खत्म हो गया था। इसलिए ये नहीं कह सकते हैं कि हमेशा वायरस जब बदलाव करता है तो खतरा ही हो, बल्कि कई बार वह कमजोर भी हो जाते हैं।’

शरीर में कितने प्रतिशत एंटीबॉडी बनी है

शरीर में एंटीबॉडी का लेवल कितना है, इसका पता चल सकता है। जब वैक्सीन का ट्रायल होता है तो इससे पता किया जाता है कि वैक्सीन शरीर में कितने लेवल तक एंटीबॉडी बना रही है। लेकिन आम लोगों को इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि अगर शरीर में कुछ दिन बाद एंटीबॉडीज कम भी हो रही हैं, फिर भी शरीर के बोन मैरो या टी-सेल इसे याद रखते हैं और कभी अगर संक्रमण होता है तो ये दोबारा एंटीबॉडी बनाने लगते हैं। इस तरह हमारा शरीर वायरस से लड़ता है।’

वैक्सीन के ट्रायल के लिए

‘इसके लिए इनवाइट किया जाता है। बच्चा स्वस्थ होना चाहिए, उसमें कोई शारीरिक बीमारी किसी भी तरह की नहीं होनी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात, बच्चे के मां-बाप राजी होने चाहिए। उन्हें वैक्सीन से जुड़ी सभी जानकारी दी जाती है। हालांकि वैक्सीन बच्चों को देने से पहले कई ट्रायल से गुजर चुकी होती है। इसलिए सुरक्षा को लेकर कोई डर नहीं होता है। लेकिन इस वक्त बच्चों पर ट्रायल किया जा रहा है। उनमें अगर इससे कोई साइड-इफेक्ट आ सकता है तो ये उन्हें बता दिया जाता है। हालांकि अभी तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है।’

बाजारों में जुटने लगी है भीड़

‘एक मानव प्रवृति होती है कि जब कोई परेशानी होती है, तो हम वो सब कुछ करते हैं, सभी बंधन को मानते हैं, जिससे परेशानी से पीछा छूटे। लेकिन जैसे ही परेशानी कम नजर आती है तो हम बंधन को मानना छोड़ देते हैं। केस बढ़ने पर लॉकडाउन का निर्णय अंतिम विकल्प के रूप में लिया जाएगा, लेकिन अब जब यह खोला (अनलॉक) गया है तो लोग एकदम से बाहर निकलने लगे हैं। हालांकि कुछ लोगों की मजबूरी है, उनकी आजीविका इसकी वजह है। लेकिन कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन करना न भूलें। जिनका काम घर से हो सकता है, घर से करें, बहुत आवश्यक हो तभी बाहर जाएं।’