वैज्ञानिकों को उम्मीद- कोरोना के बाद जानलेवा कैंसर से भी बचाएगी एमआरएनए वैक्सीन

वैज्ञानिक कुछ किस्म के कैंसर का कारण वायरस को मानते हैं। इसलिए वे एमआरएनए कैंसर टीके का टेस्ट भी कर रहे हैं। फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना की एमआरएनए वैक्सीन पहली बार कोरोना से बचाव के लिए इस्तेमाल की गई थी। हालांकि, एमआरएनए टेक्नोलॉजी कई साल से विकसित की जा रही थी। जिन बीमारियों के लिए इसका परीक्षण किया जा रहा था, उनमें से एक कैंसर भी थी। आइए जानते हैं इसके बारे में…

एमआरएनए टेक्नोलॉजी क्या है?
अमेरिका के ह्यूस्टन मेथोडिस्ट हॉस्पिटल के विशेषज्ञ डॉ. जॉन कुक कहते हैं कि एमआरएनए (मैसेंजर रीबोन्यूक्लिक एसिड) कैंसर को पहचानने के लिए इम्यून सिस्टम विकसित करने का तरीका है। ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी की विशेषज्ञ अन्ना ब्लैकनी कहती हैं कि एमआरएनए वैक्सीन कैंसर की कोशिकाओं पर मौजूद प्रोटीन की पहचान करती है। साथ ही इम्यून सिस्टम को उससे मुकाबला करने के योग्य बनाती है।

किस तरह के कैंसर में एमआरएनए वैक्सीन प्रभावी हो सकती है?
अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ. कुक के मुताबिक मेलनोमा जैसे कैंसर के मामलों में यह वैक्सीन प्रभावी हो सकती है। एमआरएनए टेक्नोलॉजी से मेलनोमा कैंसर मरीजों में होने वाले सामान्य बदलाव का पता लगाया जा सकता है। बायोनटेक ने यही तरीका अपनाया है। उसने कैंसर से जुड़े चार खास एंटीजन की पहचान की है। मेलनोमा के 90% से ज्यादा मरीजों में इनमें से कम से कम एक एंटीजन होता है।

क्या एक ही प्रकार के कैंसर के हर मरीज में एक ही तरह का वैक्सीन प्रभावी होगा?
हावर्ड के डेना-फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट में फिजिशियन साइंटिस्ट डेविड ब्राउन कहते हैं कि कैंसर के हर मरीज में अलग-अलग बदलाव होते हैं। ऐसे बदलाव काफी कम हैं जो सभी कैंसर मरीजों में एक जैसे हों। वायरस हर मरीज के इम्यून सिस्टम पर अलग-अलग तरीके से हमला करता है। भले ही इन सभी मरीजों को एक ही तरह का कैंसर हो। इसलिए अलग-अलग मरीजों की स्थिति के हिसाब वैक्सीन बनाने होंगे।

कैंसर मरीजों में अलग-अलग बदलाव का पता कैसे चलता है?
डॉ. कुक कहते हैं कि एक ही तरह के कैंसर मरीजों में अलग-अलग बदलाव का पता लगाना संभव है। इसके लिए मरीज के ट्यूमर के डीएनए और आरएनए की जांच की जाती है। फिर इनकी तुलना सामान्य कोशिकाओं से की जाती है। ऐसा कर बदलाव के अंतर का पता लगाया जा सकता है।

कैंसर का टीका बनाने का काम कहां तक पहुंचा?
ह्यूस्टन मेथोडिस्ट हॉस्पिटल में कैंसर बायोलॉजिस्ट का एक समूह ऐसे लोगों के लिए वैक्सीन बना रहा है, जिन्हें कैंसर होने का जोखिम ज्यादा है। इनमें बीआरसीए 2 म्यूटेशन वाले लोग शामिल हैं। ऐसे लोगों को स्तन कैंसर होने का ज्यादा जोखिम रहता है। इसी तरह हावर्ड के डेना-फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट में भी कैंसर वैक्सीन पर काम चल रहा है। बताया जा रहा है कि मॉडर्ना की एमआरएनए थेरेपी को करीब 48 घंटे में ही अंतिम रूप दिया गया। इसके साथ ही दुनिया में 150 से अधिक नए एमआरएनए वैक्सीन और ट्रीटमेंट को डेवलप किया जा रहा है।

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