खत्म हुआ निकासी अभियान: 70 फीसदी अफगानिस्तान का अब तालिबान राजा, अमेरिका के सैनिक छोड़कर भागे

तालिबान और आतंकी संगठनों के आगे अमेरिका ने लगभग घुटने टेक दिए हैं। कूटनीति, रणनीति, सामरिक नीति और विदेश नीति के जानकारों को अब 70 फीसदी अफगानिस्तान पर तालिबान के शासन में कोई संदेह नहीं दिखाई दे रहा है। विदेश मामलों के जानकार प्रो. एसडी मुनि, पूर्व विदेश सचिव शशांक, लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) बलबीर सिंह संधू, वाइस एयर मार्शल (रि.) एनबी सिंह का कहना है कि अमेरिका के अफगानिस्तान से पूरी तरह हट जाने के बाद देखना होगा कि आगे क्या होता है? फिलहाल अभी तो यही लग रहा है कि वहां तालिबान का शासन चलेगा।

अफगानिस्तान से अमेरिका के निकासी अभियान की समयसीमा से एक दिन पहले रवाना होने के बाद तालिबान के शीर्ष कमांडरों ने जश्न मनाया। यूएस सेंट्रल कमान के प्रमुख मेजर जनरल फ्रैंक मैकनीज ने आखिरी विमान के उड़ान भरने के बाद इसकी घोषणा की। 30 अगस्त को तीन बजे आखिरी अमेरिकी विमान सी-17 ग्लोब मास्टर ने काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भरी। दूसरी तरफ धुआंधार गोलीबारी, आतिशबाजी करके तालिबान समर्थकों ने खुशी जाहिर की। तालिबानी लड़ाकों ने एयरपोर्ट पर कब्जा करके वहां तालिबान का झंडा फहराया और इसके साथ ही तमाम सवाल अनुत्तरित रह गए। अब जिन देशों को अपने नागरिक निकालने हैं, उन्हें तालिबान से ही संपर्क, संबंध रखना होगा।

तालिबान जल्द गठित कर सकता है स्थायी सरकार  
विदेश मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि फिलहाल अफगानिस्तान से इस तरह से अमेरिका के जाने के बाद वहां सत्ता की सजी हुई थाली तालिबान के हाथ में हैं। इसे तालिबान के शासन का विरोध करने वाले गुटों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। एसके शर्मा कहते हैं कि तालिबान के पास पाकिस्तान, रूस, चीन, तुर्की, सऊदी अरब, ईरान और कतर का समर्थन है। मुझे लग रहा है कि अब आने वाले समय में कुछ और देश भी तालिबान की सरकार बनने के बाद कामकाजी रिश्ते बनाने के लिए मजबूर होंगे।

इसका सबसे बड़ा कारण अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को लेकर अमेरिका का रवैया होगा। अमेरिका वहां किसी टकराव, तनाव मोल लेने के मूड में नहीं दिखाई दे रहा है। विदेश मंत्रालय से कुछ समय पहले अवकाश प्राप्त वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि व्यापार, कारोबार के रूट पर तालिबान अपनी पकड़ा रहा है। काबुल उसके कब्जे में आ चुका है। कुंदुज, जलालाबाद, हेरात, मजारे शरीफ, कंधार समेत अन्य हिस्सों के बारे में जो खबरें आ रही हैं उससे यही लग रहा है कि तालिबानी कमांडर सत्ता में साझेदारी के साथ वहां जल्द ही सरकार स्थायी बनाने का निर्णय लेंगे। जब एक बार सरकार बन जाती है, तो बिना किसी बड़े घटनाक्रम के लंबे समय तक चलती है। प्रो. एसडी मुनि का भी कहना है कि यदि अमेरिका के ट्विन टावर पर आतंकी हमला न हुआ होता और उसने अफगानिस्तान पर हमला न किया होता तो तालिबान की पिछली सरकार भी चलती रहती।

अमेरिका का यह जवाब है या हताशा
अमेरिका ने तालिबान से आखिरी उड़ान भरने के बाद सफाई दी है कि यदि उनके सैनिक 10 दिन और तालिबान में रहते तब भी जिन नागरिकों को बाहर निकालना था, उन्हें नहीं निकाल पाते। लोग फिर भी निराश होते और यह एक कठिन स्थिति होती। अमेरिका के इस बयान में उसकी मजबूरी, हताशा, हार तीनों साफ दिखाई दे रही है। भारत जैसे उन देशों के लिए बड़ा झटका है जो दुनिया की महाशक्ति के विश्वास पर अफगानिस्तान के निर्माण में अपना योगदान दे रहे थे।

तालिबान के पास हैं अत्याधुनिक हथियार
अफगानिस्तान में तालिबान के लड़ाकों के पास अमेरिका के छोड़े अत्याधुनिक हथियार, साजो सामान हैं। अमेरिकी सैनिकों द्वारा छोड़े गए बख्तरबंद वाहन, चिनूक हेलीकाप्टर, गुणवत्ता की राइफलें समेत सब कुछ। प्रो. एसडी मुनि कहते हैं कि उनके पास हथियार हैं। उनका अभी तक का इतिहास सभी को पता है। वह अपने देश में इस्लामिक कानून लागू करने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। हां, पिछली बार सरकार चलाने के तरीके से वह सबक लेकर कुछ बदलाव के साथ अफगानिस्तान में भविष्य के शासन की रूपरेखा बना सकते हैं। यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल अभी स्थिति बहुत साफ नहीं है। एनबी सिंह का कहना है कि अमेरिका के जाने के बाद अगले एक सप्ताह में वहां कुछ बड़े बदलाव होने की उम्मीद है। इसी पता चल सकेगा कि आगे की स्थितियां कौन सा आकार लेंगी।

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