महामाया पहाड़ में कब्जा: वन विभाग ने 450 लोगों को जारी किया नोटिस, मचा हड़कंप

अंबिकापुर। महामाया पहाड़ पर पिछले कई वर्षों से अतिक्रमण चल रहा है। अतिक्रमण करने के बाद यहां सैकड़ों घर बन गए। इस मामले की शिकायत कई बार की गई। हर बार जांच के लिए टीम बनाई गई लेकिन ताज्जुब की बात तो यह है कि न तो कब्जा हटा और न ही अतिक्रमण पर रोक लगाने कोई ठोस पहल हुई।

लेकिन अब एक बार फिर इस मामले ने तूल पकड़ा है और महामाया पहाड़ पर अवैध कब्जा कर रहे रहे लोगों को वन विभाग ने नोटिस जारी कर उनका पक्ष रखने का मौका दिया है। इस नोटिस के पहुंचते ही अतिक्रमणकारियों में हड़कंप मचा हुआ है। विभाग ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी ओर से जवाब नहीं दिया जाता है तो उनके खिलाफ एकपक्षीय कार्रवाई होगी। बता दें कि महामाया पहाड़ अंबिकापुर में स्थित है।

450 लोगों को मिला नोटिस

इस संबंध में जांच अधिकारी व संयुक्त वनमंडलाधिकारी उप वनमंडल सीतापुर ने नोटिस जारी करते हुए लिखा कि आप सभी कक्ष क्रमांक 2582 में घर बनाकर रह रहे हैं। आपको यह नोटिस देकर पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। जिसके संबंध में अपना जवाब 14 सितंबर तक उपवनमंडलाधिकारी अंबिकापुर के कार्यालय में अनिवार्य रूप से प्रस्तुर करें। निर्धारित समय और निर्धारित प्रपत्र में जवाब नहीं देने की स्थिति में यह माना जाएगा कि आपको कुछ नहीं कहना है और एकपक्षीय निर्णय लिया जाएगा। इस नोटिस के माध्यम से खैरवार, बधियाचुवा, डबरी पानी में संरक्षित वन क्षेत्र में अवैध कब्जा करने वालों में हड़कंप मचा हुआ है।

तत्कालीन प्रभारी मंत्री ने दिए थे कार्रवाई के निर्देश

वर्ष 2017 में शिकायत पर तत्कालीन प्रभारी मंत्री सरगुजा बृजमोहन अग्रवाल ने कार्रवाई के निर्देश दिए थे। जिला प्रशासन ने राजस्व विभाग, नगर निगम एवं वन विभाग द्वारा इन अवैध अतिक्रमण पर बेदखली के दिए गए अंतिम नोटिस पर अवैध कब्जा धारियों ने न्यायालय का भी सहारा लिया, किन्तु किसी भी न्यायालय से इन्हें स्थगन नहीं मिला।  उस समय तत्कालीन कलेक्टर किरण कौशल ने राजस्व विभाग से तहसीलदार के माध्यम से 143 लोगों को बेदखली नोटिस जारी कराया था। वहीं निगम आयुक्त ने पहाड़ पर नगर निगम की जमीन पर अवैध रूप से जमीन कब्जा पर मकान बनाने वाले 534 कब्जा धारियों को भी नोटिस जारी किया था।

इसी तरह वनमंडलाधिकारी सरगुजा ने रिजर्व फारेस्ट पर अवैध कब्जा कर रह रहे 60 लोगों को बेदखली का नोटिस जारी कर दिया था। अगर उस समय तत्कालीन कलेक्टर को एक प्रभावशाली राजनैतिक व्यक्ति का फोन नहीं आता तो अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई हो जाती।

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