बाबूजी की प्रथम पुण्यतिथि :राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा को श्रद्धासुमन अर्पित करने उमड़ा जनसमूह

दुर्ग। एक साल पहले एक विराट व्यक्तित्व दिग्गज कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा ने दुनिया को अलविदा कहा था … आज 21 दिसंबर को उनकी पहली पुण्यतिथि थी। इस मौके पर शिवनाथ तट पर बने समाधि स्थल पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में जैसे-जैसे लोग पहुंचते रहे … बाबूजी से जुड़ी यादों का सफर भी तेज होता गया … समाधि स्थल पर पुष्प अर्पित करने वाले हर शख्स की आंखे नम थी।
कार्यक्रम के दौरान राजनांदगांव के गोस्वामी बंधुओं के सुमधुर भजन गूंजते रहे … भजन के बीच भाव भरे गीतों की प्रस्तुतियां भी दी गई … इन सबके बीच राजनीति के एक दैदीप्यमान नक्षत्र को … एक दिव्य व्यक्तित्व … को भावभीनी श्रध्दांजलि अर्पित करने का सिलसिला जारी रहा …

समाधि स्थल पर आज श्रद्धासुमन अर्पित करने वालों में पूर्व विधायक प्रदीप चौबे, भजन सिंह निरंकारी, प्रतिमा चंद्राकर, दुर्ग के महापौर धीरज बाकलीवाल, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री राजेंद्र साहू, मंडी बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी साहू, भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव, पूर्व महापौर शंकरलाल ताम्रकार, आरएन वर्मा, भिलाई के शहर कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश चंद्राकर, दुर्ग के कलेक्टर डॉ सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे, एसएसपी मीणा, निगम सभापति राजेश यादव, नगर निगम के सभी एमआईसी मेंबर, निगम कमिश्नर हरेश मंडावी सहित बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता शामिल थे। समाधि स्थल पर आयोजित श्रध्दांजलि कार्यक्रम में सर्व समाज के नागरिकों ने बाबूजी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इससे पहले उनके पुत्र अरविंद वोरा, विधायक अरुण वोरा, भतीजे राजीव वोरा ने बाबूजी को समाधिस्थल पर श्रद्धासुमन अर्पित कर बाबूजी को याद किया। दिवंगत नेता मोतीलाल वोरा की पत्नी शांति वोरा समाधिस्थल पर पहुंचकर भावुक हो गई। भाव भरे भजन सुनते हुए भी उनकी आंखें कई बार नम हुई। वोरा परिवार के सभी सदस्यों के अलावा समाधिस्थल पर पहुंचे लोग बाबूजी को याद कर भावुक होते रहे।

विराट व्यक्तित्व के धनी थे बाबूजी
वैसे तो राजनीति को काजल की कोठरी कहा जाता है। लेकिन मोतीलाल वोरा ने अपनी सहजता, सरलता और कर्मठता की ताकत के साथ हमेशा बेदाग छवि बनाए रखी उनके व्यक्तित्व की सादगी, पार्टी के प्रति हमेशा निष्ठावान रहने का जज्बा, समाज को एकता और सद्भाव का संदेश देने के गुणों ने उन्हें राजनीति का दैदीप्यमान नक्षत्र बना दिया। सहजता और सरलता की जीवंत प्रतिमूर्ति के रूप में बनी उनकी पहचान जीवन भर कायम रही और आज भी कायम है। वे जितने निष्ठावान कांग्रेस पार्टी के प्रति रहे, उतने ही निष्ठावान एक आम आदमी के प्रति भी रहे। उनके पुत्र विधायक अरुण वोरा के शब्दों में – बाबूजी रात दो-तीन बजे तक दौरे से लौटने के बाद भी उनसे मिलने आए लोगों को सम्मान देते। कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने देर रात होने का हवाला देकर लोगों को अगले दिन आने के लिए कहा हो।

देर रात तक वे लोगों से मिलते, उनकी समस्याएं सुनते और समस्याओं का निराकरण करते। वे अनथक मेहनत करने वाले व्यक्ति थे। दरअसल, वे एक सौम्य राजनेता थे। इसी सौम्यता के कारण सभी दलों में सम्मान पाते थे। वे सही मायनों में निष्ठा, समर्पण और धैर्य के प्रतीक थे। वे जिससे भी मिलते, एक आत्मीय रिश्ता बना लेते थे। बड़े-बड़े पदों पर रहते हुए भी उन्हें जरा भी घमंड नहीं था। आम जनता से भी उसी सह्रदयता से मिलते जितनी सहृदयता से बड़े नेताओं से मिलते। वे सही मायनों में राजनीति के पुरोधा नायक थे।

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