एनजीटी ने पर्यावरण मानकों के उल्लंघन मामले में यहां की डिस्टिलरी यूनिट पर 50 करोड़ का लगाया जुर्माना
नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन कर अपशिष्ट पदार्थों को निकटवर्ती जलीय क्षेत्रों में बहाने के मामले में सर शादी लाल डिस्टिलरी एंड केमिकल वर्क्स पर 50 करोड़ रूपए का जुर्माना लगाया है। न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली एनजीटी की पीठ ने अपने आदेश में यह बात भी नोट की है कि प्रोजेक्ट प्रोपोनेंट (पीपी) की ओर से वार्षिक आधार पर 1500 करोड़ से अधिक की आबकारी ड्यूटी का भुगतान किया जा रहा है। उन्होंने 11 फरवरी के अपने आदेश में कहा “इसे देखते हुए प्रतीत होता है कि पीपी का वार्षिक टर्नओवर 2500 करोड़ से कम नहीं है और प्रकृति के साथ किए गए गंभीर खिलवाड़ को ध्यान में रखते हुए हम इस प्रोजेक्ट पर वार्षिक टर्नओवर की दो प्रतिशत जिम्मेदारी तय करते हैं। इस जुर्माने को दो माह की अवधि में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में जमा कराना होगा।”
एनजीटी ने कंपनी को मंसूरपुर नाले और झील के पुनरूद्धार के लिए भी धनरािश खर्च करने को कहा है। इस धनराशि का कुछ हिस्सा इस क्षेत्र में जिले की पर्यावरण योजना पर भी खर्च करना होगा। इसमें एक संयुक्त समिति को एक वर्ष की अवधि में इस योजना को किय्रान्वित करने का जिम्मा सौंपा गया है। इस मामले में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दो माह की अवधि में अनुपालना रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आठ अगस्त 2021 को अपने दौरे में पाया था कि डिस्टीलरी अपने शून्य तरल प्रवाह संकल्प का उल्लंघन कर सभी प्रकार के अपशिष्टों को पास के नाले तथा झील में बहा रही है और इसमें प्रवाहित किए जाने वाले आर्गेनिक लोड की पीएच मान संख्या 4.9 तथा रासायनिक ऑक्सीजन मांग 28700 दर्ज की गई थी। मंसूरपुर नाले में पाए गए तरल अपशिष्ट में पीएच मान संख्या 5.2 तथा रासायनिक ऑक्सीजन मांग 18400 दर्ज की गई थी जो काली नदी की पानी की गुणवत्ता के लिए गंभीर खतरा है। एनजीटी ने कहा कि यह भी पाया गया है कि कंपनी पर्यावरण मानकों का उल्लंघन कर रही है और तरल अपशिष्टों को को ना केवल नाले में बल्कि जमीन में भी डाल रही है। इसकी वजह से झील 20 और 23 नवंबर को अधिक अपशिष्टों की वजह से अधिप्रवाहित हो गई थी। निरीक्षण के दौरान पानी की गुणवत्ता में भी काफी गिरावट देखी गई थी और इसके लिए प्रोजेक्ट प्रोपोनेंट को ही जिम्मेदार ठहराया गया था।