राज्य सरकारें शेल्टर होम की जमीनी स्थिति का आकलन करें, कोरोना रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएं

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सुप्रीम कोर्ट ने दिए निर्देश

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बाल गृहों में कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए जारी गाइडलाइंस का विस्तार महिला आश्रय गृहों तक कर दिया है। साथ ही सरकार से वहां क्षमता से अधिक संख्या में रह रहीं महिलाओं को रिहा करने के विकल्प पर भी विचार करने को रहा है। जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को जमीनी हालात का आकलन करना चाहिए और महिला आश्रय गृहों में कोरोना संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। शीर्ष अदालत ने तीन अप्रैल को महामारी के परिप्रेक्ष्य में देशभर में बाल गृहों के हालात और तैयारियों पर स्वत:संज्ञान लेते हुए कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों को कुछ निर्देश जारी किए थे।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता रिशाद मुर्तजा की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब आलम ने कहा कि महामारी की स्थिति के मद्देनजर वह तीन अप्रैल को जारी दिशानिर्देशों का विस्तार नारी निकेतनों या महिला आश्रय गृहों तक करने की मांग करते हैं। उन्होंने कहा कि कई महिलाएं इन गृहों में अनिच्छा से रह रही हैं लिहाजा इन आश्रय गृहों में भीड़-भाड़ से बचने के लिए उन्हें रिहा कर दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जेलों से जिन कैदियों को रिहा किया जा रहा है, उन्हें लॉकडाउन प्रोटोकॉल की वजह से घर जाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सरकार को इस मामले और याचिका में जाहिर की गई चिंताओं पर गौर करने का निर्देश दे रही है। जमीनी हालात का आकलन करने के बाद जहां संभव हो, महिलाओं को रिहा किया जाए।

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