धोखेबाज वकील ने अपने ही मुवक्किल को दिया धोखा, कोर्ट ने दिया यह आदेश
बिलासपुर। अदालत में न्याय की गुहार लगाने से पहले आदमी अधिवक्ता के पास जाता है। अपनी दिक्कतों को बताता है। अधिवक्ता के आश्वासन के बाद अगला कदम उठाता है। फिर शुरु होता है एक दूसरे पर भरोसा करना और सामंजस्य बैठाए रहना। पर यहां तो सब-कुछ उलटा हो गया। जिस अधिवक्ता के पास बुजुर्ग व्यक्ति न्याय की उम्मींद लेकर गया था, वहीं उसे धोखा मिला।
अधिवक्ता ने कोर्ट में मामला पेश करने दस्तावेज बनवाए, जमानत बांड के नाम पर बुजुर्ग व्यक्ति से हस्ताक्षर भी करा लिया। पर यह क्या जिस दस्तावेज पर बुजुर्ग ने भरोसे के साथ हस्ताक्षर किया था वह उनके जीवन भर की गाढ़ी कमाई का पूरा हिस्सा था। साढ़े आठ एकड़ जमीन की रजिस्ट्री अधिवक्ता ने करा ली थी। मामला जब हाई कोर्ट पहुंचा तब जज भी यह पढ़कर और सुनकर हैरान रह गए कि कोई अधिवक्ता अपने मुवक्किल के साथ ऐसा भी कर सकता है।
नाराज कोर्ट ने इसे प्रोफेशन मिसकंडक्ट का मामला मानते हुए अधिवक्ता के खिलाफ कार्रवाई करने स्टेट बार कौंसिल को प्रकरण सौंपने का आदेश रजिस्ट्रार जनरल को दिया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में यह अपनी तरह का पहला और अनोखा मामला है। नाराज डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में यहां तक टिप्प्णी कर दी है कि मामले के तथ्य व सबूतों से स्पष्ट है कि वकील ने अपने मुवक्किल के साथ विश्वासघात किया है।
वकील के विश्वासघात की बुजुर्ग के परिजनों को जब जानकारी मिली तब उसने निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया। निचली अदालत ने अधिवक्ता के आचरण को गलत ठहराते हुए जमीन की रजिस्ट्री को अमान्य करते हुए रद करने का आदेश दिया था। इस संबंध में रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को निर्देश जारी किया था। निचली अदालत के फैसले को अधिवक्ता तुलाराम ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
अपनी याचिका में उसने बताया कि उसने जमीन की रजिस्ट्री के एवज में राशि दी है। किसी तरह का छल मुवक्किल के साथ नहीं किया है। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच में हुई। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच दस्तावेजों को पढ़कर और बुजुर्ग व्यक्ति के अधिवक्ता की बातों को सुनकर दंग रह गया। नाराज कोर्ट को यह कहना पड़ा कि तथ्य और सबूतों से साफ है कि अधिवक्ता ने अपने मुवक्किल के साथ छल के साथ- साथ भी विश्वासघात किया है।
डिवीजन बेंच ने कहा कि यह मामला तो भरोसा का संकट खड़ा कर रहा है। पीड़ित व्यक्ति अदालत जाने से पहले न्याय की आस लेकर अधिवक्ता के पास पहुंचता है। अधिवक्ता जो दस्तावेज मुकदमे के लिए मांगता है बिना किसी संकोच और भय के भरोसे के साथ उसके हवाले कर देता है। जिन दस्तावेजों में हस्ताक्षर करने बोला जाता है बिना झिझक कर देता है। मामले में तो लीक से हटकर दिखाई दे रहा है। इस प्रकरण से तो अधिवक्ता और मुवक्किल के बीच ना केवल खाई बढ़ेगी साथ ही भरोसे का संकट भी खड़ा हो जाएगा।
वकील तुलाराम पटेल खैरा गांव में रहने वाले 70 वर्षीय मेहरचंद नायक को जमानत बांड पर हस्ताक्षर करने के नाम पर अपने साथ बिलासपुर लेकर आया। मेहरचंद के नाम पर दर्ज जमीन अपने नाम करा ली।अधिवक्ता पटेल ने अपनी याचिका में कहा है कि जमीन खरीदने के एवज में बुजुर्ग को 15 लाख 64 हजार 700 रुपए का भुगतान किया था। जमीन खरीदने के कारण कोर्ट से उसने अपने पक्ष में स्थायी निषेधाज्ञा पारित करने की मांग की थी। इसके खिलाफ बुजुर्ग के बेटे व बेटियों ने ट्रायल कोर्ट में केस लगाया था, जिसे मंजूर कर लिया गया।
मामले की सुनवाई के दौरान जमीन खरीदने वाले अधिवक्ता तुलाराम पटेल ने बुजुर्ग को भुगतान किए गए 15 लाख 64 हजार 700 रुपए के संबंध में कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए। वे इस बात की पुष्टि नहीं कर पाए कि इतनी बड़ी रकम का लेन-देन किस तरह किया गया। अधिवक्ता द्वारा धोखाधड़ी से सेल डीड पास करने के संबंध में जमीन बेचने वाले मेहरचंद ने पुलिस और स्टेट बार काउंसिल में शिकायतें की थीं। पुलिस ने जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल किया था। निचली अदालत ने जमीन खरीदने वाले अधिवक्ता पटेल और गवाहों को दोषी ठहराया था।
स्टेट बार कौंसिल में पीड़ित ने पहले ही शिकायत दर्ज करा दी है। हाई कोर्ट के फैसले की प्रति मिलने के बाद आगे की कार्रवाई प्रारंभ होगी। स्टेट बार कौंसिल द्वारा प्रकरण को अनुशासन समिति को सौंपा जाएगा। अनुशासन समिति जांच के बाद स्टेट बार कौंसिल चेयरमैन को रिपोर्ट पेश करेगी।कानून के जानकारों का कहना है कि व्यावसायिक कदाचरण प्रोफेनल मिस्कंडक्ट और हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद अधिवक्ता का लाइसेंस स्टेटबार कौंसिल निरस्त भी कर सकता है।