पापुनि के अफसरों को इतनी जल्दी थी कि DPI की संख्या का वेट नहीं किया और अंदाज पर ढाई करोड़ पुस्तक छपवा डाला

रायपुर। छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलों के लिए किताब छापने वाले पाठ्य पुस्तक निगम घोटाले की जांच तेज हो गई। राज्य सरकार ने पांच सदस्यीय जांच कमेटी के उपर एसीएस रेणु पिल्ले जांच कमेटी बिठा दी है। पिल्ले कमेटी को 15 दिन का टाईम दिया गया है। जांच कमेटी पाठ्य पुस्तक निगम और स्कूल शिक्षा विभाग से जानकारियां जुटा रही है।

बता दें, पाठ्य पुस्तक निगम की किताबें सिलतरा के कबाड़ में मिली थी। सारी किताबें इसी शैक्षणित सत्र के लिए थी, इसलिए हंगामा मच गया। सरकार ने तुरंत पांच सदस्यीय जांच कमेटी बना दी।

हालांकि, बाद में जांच कमेटी कटघरे में खड़ी हो गई, जब ये बात सामने आई कि पापुनि के एमडी को ही जांच कमिटी का मुखिया बना दिया गया। उपर से पापुनि के महाप्रबंधक को सरकार ने प्रारंभिक कार्रवाई करते हुए सस्पेंड कर दिया। महाप्रबंधक भी जांच कमेटी के मेम्बर थे।

मुख्यमंत्री विष्णदेव साय को जब जांच के नाम पर लीपापोती करने के खेला का पता चला तो उन्होंने तुरंत तेज-तर्रार आईएएस एसीएस रेणु पिल्ले को जांच की कमान सौंप दी। पिल्ले कमेटी ने पुस्तक घोटाले की कड़ाई से जांच प्रारंभ कर दी है। इससे पापुनि और स्कूल शिक्षा में खलबली मची हुई है।

उधर, जांच के दौरान कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं। बताते हैं, पाठ्य पुस्तक निगम को किताबें प्रकाशित करने की इतनी जल्दी थी कि डीपीआई की रिपोर्ट की भी प्रतीक्षा नहीं की।

पाठ्य पुस्तक निगम हर साल किताबें छापने से पहले डीपीआई और डीईओ से स्कूलों में बच्चों की संख्या मंगाता है। उसके बाद फिर किताबें प्रकाशित करने का आर्डर दिया जाता है।

पापुनि के एमडी की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी ने खुद माना है कि डीपीआई से संख्या आने में विलंब हो रहा था कि इसलिए पिछले शैक्षणित सत्र याने 2023-24 की संख्या के आधार पर पुस्तकें छापने का आदेश जारी किया गया। फिर अपनी ही रिपोर्ट को खारिज करते हुए लास्ट में लिखा गया है…डीपीआई ने संख्या ज्यादा बता दी, इसलिए किताबें ज्यादा छप गई।

जाहिर है, जांच में पुस्तक घोटाले की लीपापोती का यह प्रयास था। क्योंकि, मुख्यमंत्री ने जब रेणु पिल्ले जांच कमेटी बना दी, तब पहली कमेटी अपने आप गौण हो गई। फिर जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपने का कोई तुक नजर नहीं आता। अफसरों की जल्दीबाजी बताती है कि दाल में काला है।

वैसे पापुनि में किताबों का यह खेला पहली बार नहीं हुआ है। राज्य बनने के समय से पापुनि अधिकारियों और प्रिंटर्स के मिलीभगत से हर साल करोड़ों का ऐसे ही वारा-न्यारा किया जाता है।

जानकारों का कहना है कि पापुनि में भ्रष्टाचार का खेला बड़ा स्मूथली होती है। सब पहले से सेट रहता है। डीपीआई से जानकारियां मंगाई तो जाती है मगर उस हिसाब से कई गुना अधिक किताबों प्रकाशित कर ली जाती है। चूकि किताबें आवश्यकता से अधिक प्रकाशित की जाती है, इसलिए बचे हुए को कबाड़ियों को बेच दिया जाता है।

पेपर खरीदी में भी पापुनि अधिकारी बडा घोटाला करते हैं। जितने जीएसएम का पेपर का टेंडर निकाला जाता है, उतने का खरीदते नहीं मगर रेट अधिक का लेते हैं। लाखों किताबें तो कागजों में छप जाती है। याने बिना छपाई के प्रिटर्स बिल जमा करता है। पापुनि भुगतान कर देता है और प्रिटर्स कैश में अफसरों को पैसा लौटा देता है। याने पापुनि का भ्रष्टाचार पूरा आरगेनाइज होता है।