हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला- नियम बदलकर कर्मचारी को सेवा से नहीं किया जा सकता पृथक

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कर्मचारी की नियुक्ति करने के बाद भर्ती नियमों को बाद की तिथि से बदलकर सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए शासन द्वारा जारी सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर याचिकाकर्ता की नियुक्ति के समय तय की गई भर्ती नियमों के तहत उनकी योग्यता का पुनर्मूल्याकंन कर नियुक्ति देने का निर्देश दिया है।

स्मृति सत्यवती दुर्गम ने अपनी याचिका में कहा है कि एक अप्रैल 2007 को महिला और बाल विकास विभाग में बस्तर के एर्राबोर यमपुर में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में उसकी नियुक्ति हुई थी। 2 अप्रैल 2008 को जारी भर्ती नियमों के पूर्व उनकी नियुक्ति हुई और उसने नौेकरी ज्वाइन भी कर ली थी। उसकी नियुक्ति उन नियमों व शर्तों के अनुसार की गई थी, जिसमें शासन ने स्पष्ट लिखा था कि जहां आगंनबाड़ी का संचालन किया जा रहा है निवासी भी उसी गांव का होना चाहिए।

मसलन स्थानीय निवासी को ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति के लिए अनिवार्य किया गया था। यह जरुरी शर्तों में से प्रमुख था। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने मुरडांडा गांव में एक समान पद के लिए आवेदन किया। उसने छह साल का अनुभव और नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) भी प्रस्तुत की। मेरिट लिस्ट में दूसरा स्थान प्राप्त करने के बावजूद उसकी उम्मीदवारी निरस्त कर दी गई।

नौकरी से हटाने अफसरों ने नए नियमों का दिया हवाला

अधिकारियों ने आरोप लगाया कि 2007 में उनकी प्रारंभिक नियुक्ति, वर्षा 2008 के निवास स्थान संबंधी नियमों का उल्लंघन करती है और जुलाई 2015 में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। याचिकाकर्ता ने सेवा समाप्ति केआदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि वर्ष 2008 के भर्ती नियमों को पिछली तिथि से लागू कर 2007 में हुई उनकी नियुक्ति को अमान्य नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट ने उठाए सवाल

मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने राज्य शासन के अफसरों से पूछा कि 2008 में जारी भर्ती नियमों को 2007 की भर्ती प्रक्रिया के तहत जिनकी नियुक्ति की गई है,उसे कैसे अमान्य ठहराया जा सकता है। कोर्ट के इस सवाल का विभागीय अफसर जवाब नहीं दे पाए। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यह साफ है कि विभागीय अफसरों ने नियमों को खंगाला ही नहीं या फिर जानबुझकर ऐसा किया है।

कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति वर्ष 2007 में हुई थी, जबकि राज्य शासन द्वारा 2 अप्रैल 2008 दिशा निर्देश जारी किया गया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का उचित अवसर प्रदान नहीं किया गया है। यदि नियुक्ति नियमों व तय मापदंडों के अनुसार की गई है तो याचिकाकर्ता को 2007 के पहले तय मापदंडों के अनुसार सेवा में बहाल करें।