50 लाख पुस्तकों पर संकटः पेपर का टेंडर हुआ चार महीने लेट, टाईम पर सरकारी स्कूलों में नहीं बंट पाएंगी किताबें!
रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में पुस्तकें इस बार समय पर वितरित हो पाएगी, इस पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अभी तक पाठ्य पुस्तक निगम ने पेपर का टेंडर नहीं किया है।
टेंडर निकालने के बाद उसे फायनल करने में महीने भर का वक्त लगेगा ही। फिर प्रिंटरों को पुस्तकें प्रकाशित करने के लिए पेपर भेजा जाएगा। उसके बाद प्रकाशित करने में टाईम लगेगा।
राज्य बनने के बाद हमेशा ऐसा हुआ है कि सरकारी स्कूलों में फ्री में बंटने वाली पुस्तकें फरवरी मध्य तक छपकर आ जाती थी। फरवरी में इसलिए क्योंकि उसके बाद पापुनि के संभागीय डीपो तक पुस्तकों को भिजवाना, फिर वहां से ब्लॉकों और स्कूलों तक पहुंचवाना पड़ता है।
अप्रैल में नया सेशन प्रारंभ हो जाता है। सरकार की कोशिश रहती है कि अप्रैल से पहले पुस्तकें स्कूलों में पहुंच जाए। ताकि, स्कूल खुलते ही उन्हें किताबें मिल जाएं।
मगर इस बार संभव नहीं लगता कि मार्च तक पुस्तकें स्कूलों में पहुंच जाए। क्योंकि, पहले सितंबर में पाठ्य पुस्तक निगम पेपर का टेंडर फायनल कर देता था। इस साल दिसंबर निकलने वाला है। मगर टेंडर का अभी कोई पता नहीं है। जब पेपर के टेंडर में चार महीने विलंब हो चुका है तो पुस्तकें प्रकाशित होने में भी वक्त लगेगा।
पेपर के टेंडर में विलंब इसलिए हुआ क्योंकि, पापुनि पुस्तक घोटाले के जद में आ गया है। जाहिर है, पापुनि के अफसरों ने फर्जीवाड़ा करते हुए आवश्यकता से अधिक किताबें छाप दी। गोदामों में अभी भी 12 लाख किताबें पड़ी धूल खा रही हैं। इसका खुलासा तब हुआ जब रायपुर के सिलयारी इलाके में रद्दी में पड़ी हुई सरकारी किताबों का जखीरा मिला। इससे सिस्टम हिल गया। सीएम विष्णुदेव साय ने जांच का आदेश दिया। जांच में लीपापोती करने के लिए उपर के अफसरों ने पापुनि के एमडी और जीएम को जांच समिति का मेम्बर बना दिया। बाद में सरकार ने जीएम को निलंबित कर दिया। फिर मुख्यमंत्री ने एसीएस रेणु पिल्ले को जांच सौंपा है। उसके बाद एमडी राजेंद्र कटारा को सरकार ने कलेक्टर बनाकर भेज दिया। संजीव झा को पापुनि एमडी का प्रभार दिया गया है। संजीव झा को ऐसे समय में प्रभार दिया गया, जब वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रेक्षक बनकर मुंबई गए थे।
एक बार अजीत जोगी सरकार के दौरान भी पेपर का टेंडर टाईम पर न हो पाने की वजह से संकट आया था। तब कोर्ट के मामले में टेंडर उलझ गया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने फैसला लिया था कि पेपर का टेंडर करने की बजाए प्रिंटरों को पेपर के साथ प्रिंटंग का आर्डर दे दिया जाए। इससे समय पर किताबें बंट गई थी। मगर इसका भी उस समय विरोध हुआ था। मगर इसके अलावा सरकार के पास कोई चारा भी नहीं था।