छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला- नाजायज संतान को भी है अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार

बिलासपुर। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें एसईसीएल के मृत कर्मचारी के नाजायज संतान को अनुकंपा नियुक्ति देने का आदेश दिया था। सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि भले ही विक्रांत कुमार मृतक सरकारी कर्मचारी का नाजायज पुत्र हो, वह अनुकंपा के आधार पर विचार करने का हकदार होगा और उसे इस आधार पर विचार करने से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह मृतक सरकारी कर्मचारी का नाजायज पुत्र है और यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादी को आश्रित रोजगार देने के लिए मृतक मनीराम की पहली पत्नी सुशीला कुर्रे की सहमति भी आवश्यक नहीं है। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के इस फैसले पर मुहर लगाते हुए सिंगल बेंच के आदेश के तहत मृत कर्मचारी के पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति देने की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है।

महाप्रबंधक (मप्र), साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ व महाप्रबंधक (एमएम) केंद्रीय भंडार, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल), कोरबा, जिला कोरबा छत्तीसगढ़ ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच के समक्ष अपील पेश की थी। याचिकाकर्ताओं ने सिंगल बेंच के फैसले को रद्द करने की मांग अपनी याचिका में की थी। याचिकाकर्ता एसईसीएल के अधिवक्ताओं ने डिवीजन बेंच को जानकारी दी थी कि मृतक मुनीराम कुर्रे की दो पत्नियां थीं। पहली पत्नी विमला कुर्रे की चार बेटियां और एक बेटा था, जिनके नाम कुमारी मिलिंद लाल, कु. मनीषा लाल, कु. मंजूषा लाल, कु. ममिता लाल और विक्रांत कुमार लाल हैं। दूसरी पत्नी सुशीला कुर्रे की एक बेटी और एक बेटा था, जिनके नाम दुकोला कुर्रे उर्फ दुओकालो कुर्रे और मोतीलाल कुर्रे था।

विक्रांत कुमार लाल ने दूसरी पत्नी सुशीला कुर्रे और एसईसीएल को मामले में पक्ष बनाए बिना उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त किया। परिणामस्वरूप सुशीला कुर्रे और एसईसीएल को सुनवाई का अवसर दिए बिना उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। इसके अलावा, विक्रांत कुमार ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने में विफल रहा, जो आश्रित रोजगार की प्रक्रिया के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के तहत अनिवार्य है। इन तथ्यों के बावजूद छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने आदेश की प्राप्ति की तारीख से 45 दिनों के भीतर आश्रित को अनुकंपा नियुक्ति देने का निर्देश जारी कर दिया है। याचिकाकर्ता एसईसीएल ने अपनी याचिका में कहा है कि आश्रित रोजगार के लिए आवेदन एसईसीएल के कार्यालय में उपलब्ध निर्धारित प्रपत्र भरकर विक्रांत कुमार द्वारा पूरा किया जाना चाहिए, जो नहीं किया गया है। एसईसीएल ने अपनी याचिका में सिंगल बेंच के फैसले काे निरस्त करने की मांग की थी। विक्रांत कुमार के अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच को बताया कि सिंगल बेंच ने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद याचिकाकर्ता विक्रांत कुमार द्वारा दायर रिट याचिका को सही रूप से अनुमति दी है, जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

 

06.03.2006 को उत्तराधिकार के संबंध में पेश मामले की सुनवाई के बाद उत्तराधिकार न्यायालय ने माना है कि विमला कुर्रे मुनिराम कुर्रे (मृतक) की पत्नी है, विक्रांत कुमार लाल मुनिराम कुर्रे (मृतक) का पुत्र है और मनीषा लाल, मंजूसा लाल, ममिता लाल, मिलिंद लाल मुनीराम कुर्रे (मृतक) की बेटियां हैं। हालांकि, 1925 के अधिनियम की धारा 383 के अधिकार क्षेत्र के तहत 06.03.2006 के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, लेकिन सुशीला कुर्रे के आवेदन पर 11.05.2010 के आदेश द्वारा इसे वापस लेने की अनुमति दी गई थी। लिहाजा उत्तराधिकार न्यायालय का निष्कर्ष और आदेश अंतिम हो गया है जिसमें कहा गया है कि विमला कुर्रे मृतक की पत्नी है। विक्रांत कुमार मुनीराम कुर्रे (मृतक) का पुत्र है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि उत्तराधिकार न्यायालय का आदेश, जो क्षेत्राधिकार वाला सिविल न्यायालय है, SECL पर बाध्यकारी है।

एसईसीएल ने अपनी याचिका में कहा है कि विक्रांत कुमार स्व मुनीराम कुर्रे का नाजायज बेटा है, क्योंकि वह मुनीराम कुर्रे की विमला कुर्रे के साथ दूसरी शादी से पैदा हुआ था, इसलिए वह अनुकंपा नियुक्ति का हकदार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

इसी तरह का एक विवाद रेलवे में अनुकंपा नियुक्ति को लेकर आया था। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि दूसरी शादी से पैदा हुआ बच्चा भी वैध बच्चा है और अनुकंपा नियुक्ति पाने का हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ इस तरह की व्याख्या की थी।

0 धारा 16 की उपधारा (1) में, विधानमंडल ने निर्धारित किया है कि धारा 11 के तहत शून्य और अमान्य विवाह से पैदा हुआ बच्चा वैध है, भले ही जन्म 1976 के संशोधन अधिनियम 68 के लागू होने से पहले हुआ हो या बाद में। शून्य और अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे की वैधता सार्वजनिक नीति का मामला है ताकि ऐसे विवाह से पैदा हुए बच्चे को नाजायजता के परिणामों से बचाया जा सके।

0 हालांकि विवाह शून्य और अमान्य हो सकता है, फिर भी विवाह से पैदा हुआ बच्चा धारा 16 की उपधारा (1) के तहत वैध माना जाता है। धारा 5 के खंड (i) के साथ धारा 11 के तहत विवाह शून्य और अमान्य होने के आधारों में से एक यह है कि विवाह तब हुआ है जब विवाह के समय पक्षों में से एक का जीवनसाथी जीवित था। इसलिए, पहली शादी के अस्तित्व के दौरान एक हिंदू द्वारा किया गया दूसरा विवाह शून्य और अमान्य है। हालांकि, विधानमंडल ने धारा 16 के उपधारा (1) को अधिनियमित करके हस्तक्षेप किया है। 16(1) ऐसे विवाह से पैदा हुए बच्चे की वैधता की रक्षा के लिए। हालांकि, धारा 16 की उपधारा (3) में यह प्रावधान है कि ऐसा बच्चा जो विवाह से पैदा हुआ है जो अमान्य है, उसे केवल माता-पिता की संपत्ति में अधिकार होगा और किसी अन्य को नहीं, सिवाय उसके माता-पिता के।

0 ऐसे बच्चों को अन्य वैध बच्चों को मिलने वाले अनुकंपा नियुक्ति के लाभ से इनकार करने का अधिकार है। निस्संदेह, अनुकंपा नियुक्ति की नीति बनाते समय, राज्य उन शर्तों को निर्धारित कर सकता है जिन पर इसे प्रदान किया जा सकता है। हालांकि, राज्य को योजना या नियम बनाते समय ऐसी शर्त रखने का अधिकार नहीं है जो संविधान के अनुच्छेद 14 के साथ असंगत हो।

0 अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार में अभाव और गरीबी को रोकना है। परिपत्र का प्रभाव यह है कि मृतक कर्मचारी के दूसरे विवाह से पैदा हुए बच्चे को चाहे जितनी भी अभाव का सामना करना पड़े, अनुकंपा नियुक्ति से इनकार किया जाना चाहिए जब तक कि दूसरा विवाह प्रशासन की अनुमति से न किया गया हो।

0 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 के अनुसार, पहले विवाह के दौरान किए गए विवाह से पैदा हुए बच्चे को वैध माना जाएगा, तो अनुच्छेद 14 के अनुरूप, राज्य के लिए ऐसे बच्चे को अनुकंपा नियुक्ति का लाभ लेने से वंचित करना संभव नहीं होगा। बहिष्कार की ऐसी शर्त मनमानी और अधिकारहीन है।

सिंगल बेंच ने दिया था महत्वपूर्ण फैसला

मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का आधार मानते हुए फैसला सुनाया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि भले ही विक्रांत कुमार मृतक सरकारी कर्मचारी का नाजायज पुत्र हो, वह अनुकंपा के आधार पर विचार करने का हकदार होगा और उसे इस आधार पर विचार करने से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह मृतक सरकारी कर्मचारी का नाजायज पुत्र है और यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादी को आश्रित रोजगार देने के लिए सुशीला कुर्रे की सहमति भी आवश्यक नहीं है। सिंगल बेंच ने एसईसीएल को नोटिस जारी कर आदेश दिनांक 11.09.2024 की प्रति प्राप्त होने की तिथि से 45 दिनों के भीतर आश्रित को रोजगार देने के लिए कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया।

डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले काे रखा यथावत

मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को यथावत रखते हुए एसईसीएल की अपील खारिज कर दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि

सिंगल बेंच ने कोई अवैधता, अनियमितता या क्षेत्राधिकार संबंधी त्रुटि नहीं की है, जिसके लिए इस कोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए। डिवीजन बेंच ने एसईसीएल को निर्देशित किया है कि विक्रांत कुमार को सिंगल बेंच के फैसले के अनुसार रोजगार प्रदान करने की प्रक्रिया पूरी करे।

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