छत्तीसगढ़ का पर्यटन गढ़ है धमतरी, गंगरेल से लेकर मुरूमसिल्ली व नरहरा वाटर फॉल तक बिखरी इसकी सुंदरता
रायपुर। प्राकृतिक सुंदरता के लिए छत्तीसगढ़ के कई जिले अहम स्थान रखते हैं। सरगुजा से लेकर बस्तर तक छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक नजारों की कोई कर्मी नहीं है। विश्वभर के पर्यटकों को छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल लुभा रहे हैं। राजधानी रायपुर व दुर्ग जिले से लगे धमतरी जिला भी इन दिनों पर्यटकों के लिए एक बेहतर डेस्टिनी साबित हो रहा है। यहां के प्राकृतिक नजारे खास आकर्षण बने हुए हैं। खासकर धमतरी का सबसे प्रख्यात गंगरेल बांध लोगों को मिनी गोवा की फिलिंग देता है। स्पिलवे साइफन सिस्टम वाला मुरुमसिल्ली बांध, नरहरा जलप्रपात, जबर्रा हिल्स आदि धमतरी की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। आइए यहां जानते हैं धमतरी के कुछ खास स्थलों के बारें में।
छत्तीसगढ़ राज्य के बड़े बांधों में से धमतरी जिले के गंगरेल में महानदी पर बने रविशंकर जलाशय गंगरेल बांध की खूबसूरती सभी को लुभाती है। इसी वजह से लाखों लोग यहां आते हैं। महानदी अत्यंत विशाल नदी है, जिसका उद्गम धमतरी जिले के सिहावा पर्वत से होता है और यह नदी अपने उद्गम के बाद उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है। इस नदी पर बड़े-बड़े बांधों का निर्माण किया गया है, जिनमें से प्रमुख हैं रुद्री बांध, गंगरेल या रविशंकर बांध और उड़ीसा में निर्मित हीराकुंड बांध छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा बांध गंगरेल या रविशंकर बांध इसी नदी पर निर्मित है।
यहां दर्शनीय स्थल मां अंगारमोती मंदिर के अलावा बोटिंग, मिनी गोवा, रंग-बिरंगे फूलों से सुसज्जित गार्डन पर्यटकों का मन अपनी ओर मोह लेती है। गंगरेल डैम पर खूबसूरत हट बने हुए हैं, जाहं से बांध के पास रहने और 24 घंटे उसे निहारने का आनंद भी उठाया जा सकता है। ग्राम छाती की डिगेश्वरी साहू बताती हैं कि वे अपने परिवार के साथ गंगरेल घूमने आती रहतीं हैं। यहां का शांत वातावरण, अंगारमोती का दर्शन कर उन्हें काफी अच्छा लगता है। इसके साथ ही बोटिंग, आकर्षक गार्डन और नदी को देख मन प्रफुल्लित होने लगता है। वहीं महासमुंद जिले से गंगरेल पहुंची कुमारी मोना साहू और उनके साथियों ने गंगरेल के मनोरम वातावरण, बोटिंग, विशाल नदी और अंगारमोती मां के मंदिर की काफी प्रशंसा की।
सबसे पुराना जलाशय है मुरूमसिल्ली, 100 साल बाद भी जस का तस
मुरूमसिल्ली जलाशय महानदी संकुल (काम्पलेक्स) का यह सबसे पुराना महत्वपूर्ण जलाशय हैं। मुरूमसिल्ली जलाशय महानदी की सहायक नदी सिलियारी नदी पर धमतरी जिला मुख्यालय से 28 किमी. दक्षिण में मुरूमसिल्ली गांव के पास बनाया गया हैं। 1914 से 1923 के बीच निर्मित इस बांध में बड़ी संख्या में लोग पिकनिक मनाने आते हैं। चारों तरफ घने पेड़ों से आच्छादित यह बांध अपनी खूबसूरती से आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। 100 साल की उम्र बीत जाने के बाद भी इस बांध की मजबूती में कोई फर्क नहीं आया है, और आज भी इनके सभी गेट चालू हालत में हैं।
इस जलाशय में अतिरिक्त जल निकास हेतु अपने आप चलने वाला विशेष एवं अद्वितीय स्पिलवे साइफन सिस्टम का निर्माण किया गया, जो कि उस समय की गहन अध्ययन एवं रूपांकन की सूझ-बूझ दर्शाता हैं। बारिश के मौसम में बांध लबालब होते ही ऑटोमेटिक सायफन गेट से पानी निकलना शुरू हो जाता है। इस तरह का स्वचालित सायफन स्पिल-वे का निर्माण एशिया का प्रथम निर्माण था। अतः आटोमेटिक स्पिल-वे सायफन का निर्माण एक विशिष्टता लिये हुये है। जिसको सिविल इंजीनियरिंग की पुस्तक ’’ऑटोमेटिक स्पिलवे सायफन ऑफ मुरूमसिल्ली डैम डिजाईन इन टेक्सट बुक इन सिविल इंजीनियरिंग (इरीगेशन इंजीनियरिंग सायफन वियर्स एंड लॉक्स राईटर बाय सर्ज लेलीयाव्स्की) में अध्ययन हेतु उल्लेखित किया गया है। मुरुमसिल्ली बांध राजधानी रायपुर से सिर्फ 95 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।
चट्टानों के बीच से गिरता है नरहरा जल प्रपात
धमतरी का एक और आकर्षण है नरहरा जलप्रपात। घने जंगल में चट्टानों के बीच से गिरता दुधिया रंग का पानी यह खूबसूरत नजारा है, धमतरी जिले में मौजूद नरहरा धाम का। इसे ऋषि मारकंडे की तपोभूमि के तौर पर भी जाना जाता है. नगरी विकासखण्ड के ग्राम झूरातराई-कोटरवाही के समीप स्थित नरहराधाम प्राकृतिक जलप्रपात को पर्यटन के दृष्टिकोण से उभारा गया है। धमतरी जिला मुख्यालय से तकरीबन 35 किलोमीटर दूर यह नरहरा धाम कुकरेल से बिरझुली जाने वाली पक्की सड़क के बाद कोटरवाही से 5 किलोमीटर है। जलप्रपात का स्वरूप पूरी तरह से प्राकृतिक है और आसपास का पूरा पानी बहकर आगे बढ़ने के दौरान नरहरा धाम में जलप्रपात का स्वरूप लेता है। चट्टानों के ऊपर से पानी का बहाव साफ जाहिर करता है कि पानी के तेज बहाव में चट्टानों को काटकर क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य दिया है यह पानी आगे बढ़कर महानदी में जाकर मिलता है। नरहरा धाम पर्यटन के दृष्टि से ऐतिहासिक स्थल होने के साथ-साथ धार्मिक आस्था का केंद्र भी है। यहां कभी ऋषि मारकंडे तप किया करते थे और यह जगह उनका तपस्थली हुआ करता था। इसी जगह पर माता नारेश्वरी देवी का मंदिर भी स्थापित किया गया है। रोजाना यहां सैकड़ों लोग पिकनिक मनाने पहुंचते है। पर्यटन क्षेत्र में सामुदायिक शौचालय, स्वच्छता, वाहन पार्किंग, टुरिस्ट गाइड आदि का संचालन स्थानीय ग्रामीण महिलाओं और पुरूषों का समूह द्वारा की जा रही है।
देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है जबर्रा
शांत घने जंगल के बीच पहाड़ में ट्रेकिंग का मजा, कलकल बहती नदी के किनारे सैर, फुर्सत के पल बिताने रेस्ट हाउस, वन औषधियों से उपचार का तरीका बताने वैद्य, पर्वतों की सैरगाह का आनंद देने गाइड, आदिवासी संस्कृति की झलक दिखाने लोगों का समूह और आदिवासी व्यंजनों की मिठास, यह सब कुछ शहर के कोलाहल से दूर धमतरी जिले के वनांचल नगरी विकासखण्ड के जबर्रा में है। इसे प्रशासन के द्वारा ईको टूरिज्म के तौर पर विकसित किया गया है। यह जिला मुख्यालय धमतरी से ग्राम जबर्रा 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ईको फ्रेंडली टूरिज्म का सीधा अर्थ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना पर्यटन का विकास करना है, फिर प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ दिया गया है। खास बात है कि प्रकृति का सान्निध्य लेने ना केवल देश के बल्कि विदेशों से भी पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यहां दिल्ली, पुणे, बेंगलुरू, नागपुर, रायपुर, राजस्थान सहित विदेशी नीदरलैंड, ऑष्ट्रेलिया, अमेरिका, पोलैंड, जापान, लंदन और श्रीलंका से पर्यटक आते हैं। यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए 20 सदस्यों का समूह बना है, जिन्हें प्रशिक्षण दिया गया और इन युवाओं को जबर्रा हिलर्स नाम से जाना जाता है। इन युवाओं द्वारा जबर्रा पहुंचने वाले पर्यटकों को ना केवल ठहरने, खाने और गाईड की व्यवस्था करता है, बल्कि पर्यटकों का जोर-शोर से स्वागत किया जाता है। पर्यटकों को जबर्रा के पर्वत, नदी की सैर कराने के साथ ही वनौषधि की जानकारी दी जाती है। इससे इन युवाओं का आय का जरिया तो बना ही है, बल्कि पर्यटकों को सुविधा भी मिल रही है। वनांचल नगरी के जबर्रा में 300 से अधिक प्रकार की वनौषधि मिलती है। जबर्रा का रोमांच दुगली से जबर्रा का 13 किलोमीटर का रास्ता पकड़ने के साथ ही शुरू हो जाता है। घने जंगलों के बीच बसा जबर्रा जंगल 5352 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जहां 300 से अधिक प्रकार की वनौषधि है।