अब जलवायु परिवर्तन का शिकार हुआ जामुन
नई दिल्ली । प्रकृति और पर्यावरण में इस साल जलवायु परिवर्तन का खासा असर देखने को मिल रहा है। एक तरफ कोरोना तो दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन का कारण लीची और आम की फसल तो प्रभावित हुई ही है, इसका ताजा शिकार जामुन है। इस सीजन में जामुन की फसल बहुत से स्थानों पर अच्छी नहीं हुई। कहीं-कहीं पर तो पेड़ में एक भी फल नहीं दिखा। वैसे भी जामुन की सभी किस्में हर तरह के जलवायु में समान रूप से नहीं फलती हैं। इस साल जनवरी से लगातार हो रही बारिश और काफी दिनों तक ठंड का असर रहने से जामुन के अधिकतर पेड़ों में फूल की जगह पत्तियों वाली टहनियां निकल आईं। महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में स्थित सावंतवाड़ी जामुन के लिए मशहूर है। लेकिन, इस साल किसानों को फल नहीं लगने से नुकसान उठाना पड़ा।
गुणकारी फल जामुन का इंतजार सभी बड़ी बेसब्री से करते हैं। अपनी औषधीय गुणों के लिए मशहूर जामुन के न सिर्फ फल बल्कि बीज भी दवा बनाने में काम आते हैं। मधुमेह के रोगियों को जामुन कुछ ज्यादा ही भाता है। इसकी बढ़ती मांग का ही असर है कि देश के कई इलाके में नए उद्यमी जामुन की वाणिज्यिक बागवानी और उसके प्रसंस्करण से जुड़ गए। ऐसे उद्यमी इस साल काफी निराश हुए। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक अधिकारी कहते हैं कि इस साल भी कुछ स्थानों पर जामुन की फसल आई है, और वही जामुन बाजार में छिटपुट दिखाई दे रहे हैं। लेकिन यह न के बराबर है। 40 साल पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि जामुन के कलमी बाग लगेंगे। लेकिन, जामुन की बढ़ती लोकप्रियता के कारण बाजार में इसके फलों की मांग बढ़ती जा रही है। अधिक लाभ के कारण किसानों के बीच यह फल लोकप्रिय होता जा रहा है। आमतौर पर जामुन की बाग बीजू पौधों से लगाए जाते हैं लेकिन किसानों की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए आईसीएआर के (केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान) ने जामुन की कलम बनाने का तरीका निकाला है। अभी कलमी पौधों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है।
कुछ वर्ष पहले तक जामुन के बीजू पौधों से इसके बाग लगाये जाते थे। किसान अपने बाग में 1-2 पौधे जामुन के शौकिया तौर पर लगा लेते थे। लेकिन आज किसान जामुन के सैकड़ों पौधे लगाने के लिए तैयार हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में जामुन की खेती से कुछ किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। दिल्ली और बड़े शहरों में यह बढ़िया किस्म का जामुन 200 से 300 रुपये किलो में आसानी से बिक जाता है। फलों की बढ़ती मांग को देखकर पंजाब में कई किसानों ने जामुन की खेती करने के लिए उत्साहित होकर आईसीएआर के उस संस्थान से संपर्क किया है। संस्थान द्वारा निकाली गई जामवंत किस्म के फलों में 90 प्रतिशत से भी अधिक गूदा होने के कारण इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।