टेंट से भव्य मंदिर तक रामलला की सेवा, माघी पूर्णिमा पर परलोक गए सत्येंद्र दास शिक्षक से पुजारी बने थे
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अयोध्या| अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन हो गया है। बुधवार को माघी पूर्णिमा के दिन वह परलोक सिधार गए। लखनऊ स्थित संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में उन्होंने अंतिम सांस ली। ब्रेन स्ट्रोक के बाद उन्हें 3 फरवरी को पीजीआई में भर्ती कराया गया था। सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी पीजीआई जाकर उनका हाल जाना था। आचार्य सत्येंद्र दास पिछले 37 सालों से रामलला की सेवा को समर्पित थे। उन्होंने शिक्षक की नौकरी छोड़कर पुजारी बने थे। टेंट से भव्य मंदिर तक रामलला की सेवा में तल्लीन रहे आचार्य सत्येंद्र दास की राममंदिर आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
87 साल की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले आचार्य सत्येंद्र दास अयोध्या में बाबरी ढांचे के विध्वंस से लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भव्य राममंदिर के निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा तक के साक्षी रहे हैं। वह पिछले 37 वर्षों से रामलला की सेवा कर रहे थे। टेंट में रहे रामलला की उन्होंने 28 वर्षों तक सेवा की। वह वहां प्रतिदिन पूजा-पाठ करते रहे। गोरक्षपीठ और ब्रह्रमलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ से उनका विशेष लगाव था। वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर और सीएम योगी आदित्यनाथ से भी उनके बहुत अच्छे संबंध थे।
आचार्य सत्येंद्र दास के निधन पर सीएम योगी ने गहरा दुख जताया है। सीएम योगी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा- ‘ परम रामभक्त, श्री राम जन्मभूमि मंदिर, श्री अयोध्या धाम के मुख्य पुजारी आचार्य श्री सत्येन्द्र कुमार दास जी महाराज का निधन अत्यंत दुःखद एवं आध्यात्मिक जगत की अपूरणीय क्षति है। विनम्र श्रद्धांजलि! प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे तथा शोक संतप्त शिष्यों एवं अनुयायियों को यह अथाह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति।’
आचार्य सत्येंद्र दास के बारे में मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की थी। 1976 में उन्होंने अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के तौर पर ज्वाइन किया। तत्कालीन रिसीवर ने मार्च 1993 में उन्हें पुजारी के तौर पर नियुक्त किया था। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि 1993 में जब पुजारी के रूप में उनकी नियुक्ति हुई थी तब यहां की व्यवस्था कमिश्नर के हाथ में थी। उन्होंने आचार्य सत्येंद्र दास जी से मानधन/ सम्मान राशि के बारे में पूछा। इस पर आचार्य सत्येंद्र दास जी का जवाब था कि मात्र सौ रुपए मेरे लिए पर्याप्त होंगे। मैं तो हनुमानगढ़ी का साधु हूं। इससे ज्यादा की मुझे चाह नहीं है।
बताया जाता है कि पुजारी के रूप में नियुक्ति के बाद उन्हें प्रतिमाह 100 रुपए ही मिलते थे। हालांकि बाद में इस वेतन में बढ़ोत्तरी की गई। आचार्य सत्येंद्र दास की तबीयत कुछ समय से खराब चल रही थी। खराब स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के बावजूद राम मंदिर निर्माण और रामलला प्राण प्रतिष्ठा के दौरान उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।