कोर्ट में दोबारा जिरह के लिए गवाहों को बुलाने के संबंध में हाई काेर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, पढ़िए…


बिलासपुर। ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस पांडेय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 14 के तहत दायर आवेदन को तभी स्वीकार किया जाना चाहिए, यदि आवेदन असाधारण परिस्थितियों की ओर इशारा करता है, क्योंकि यह एक औपचारिकता मात्र नहीं है। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता ने विवाद के मामले में गवाह को दोबारा अदालत में पेश करने और गवाही के लिए बुलाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता यह तथ्य पेश नहीं कर पाया कि आखिर किन कारणों के चलते वह गवाह को दोबारा कोर्ट के समक्ष पेश कर गवाही दिलाना चाहता है।
याचिकाकर्ता हर्षदीप सिंह जुनेजा एसीएम इंटरप्राइजेज ने दो अलग-अलग याचिका हाई कोर्ट में दायर की थी। ये याचिकाएं भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर की गई थी। जिसमें ट्रायल कोर्ट के 06.01.2025 के आदेश को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता एक पंजीकृत भागीदारी फर्म, ने अपने अधिकृत भागीदार हर्षदीप जुनेजा के माध्यम से प्रकाश चंद बैद, अगर चंद,दुष्यंत बैद,रंजू बैद व अंजू संगोइ के विरुद्ध अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन के लिए 29.09.2014 को एक सिविल मुकदमा दायर किया था। प्रतिवादियों ने अपना लिखित बयान कोर्ट के समक्ष पेश किया था। ट्रायल कोर्ट ने मुद्दे तय किए। प्रमुख पक्षकार प्रकाश चंद बैद की 09.12.2024 को जांच और जिरह की गई।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने 10.10.2013 के समझौते के संबंध में एक प्रश्न उठाया, जिसके तहत उन्होंने उसी मुकदमे की जमीन के लिए अमित चौधरी नामक व्यक्ति के साथ एक और समझौता किया था। इस पर प्रकाश चंद बैद के वकील द्वारा आपत्ति उठाई गई।
याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत संबंधित पुलिस स्टेशन में आवेदन दिया और 10.10.2013 के समझौते की प्रमाणित प्रति 19.12.2024 को प्राप्त की। इसके बाद, वादी ने प्रतिवादियों के गवाह को वापस बुलाने के लिए सी.पी.सी. के आदेश 18 नियम 17 के तहत एक आवेदन दायर किया, साथ ही 10.10.2013 के समझौते की एक प्रति भी दी।
ट्रायल कोर्ट ने 06.01.2025 के आदेश के तहत सीपीसी के आदेश 7 नियम 14(3) के तहत दायर आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि वादी ने यह दलील नहीं दी है कि 10.10.2013 का समझौता मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए कैसे और क्यों प्रासंगिक है। ट्रायल कोर्ट ने 1,000/- रुपये का जुर्माना लगाया। उसी तारीख को, ट्रायल कोर्ट ने सीपीसी के आदेश 18 नियम 17 के तहत दायर आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि सीपीसी के आदेश 7 नियम 14(3) के तहत दायर आवेदन पहले ही खारिज हो चुका है। इसलिए, गवाह को वापस बुलाने का कोई कारण नहीं है।
मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश मोहन पांडेय के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अरविंद श्रीवास्तव ने कहा कि 11.11.2024 को जब प्रकाश चंद बैद की जांच और जिरह की गई, तो 10.10.2013 का समझौता अभिलेख पर उपलब्ध नहीं था। याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दस्तावेज प्राप्त किया और यह मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए प्रासंगिक है। उन्होंने यह भी कहा कि गवाह को वापस बुलाने के लिए सीपीसी के आदेश 18 नियम 17 के तहत एक आवेदन भी पेश किया गया था ताकि वादी 10.10.2013 के समझौते से संबंधित प्रश्न पूछ सके। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर सिविल मुकदमा सिविल मुकदमा संख्या 168ए/14 के रूप में पंजीकृत किया गया था, इसलिए, यह माना जा सकता है कि इसे वर्ष 2014 में दायर किया गया था। बहस के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील द्वारा सूचित किया गया कि 20.01.2025 को मामला ट्रायल कोर्ट के समक्ष अंतिम बहस के लिए तय किया गया था।
मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाओं में की गई दलीलों से ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता द्वारा अनुबंध को लेकर सिविल वाद दायर किया गया था। इसके बाद प्रतिवादियों द्वारा लिखित बयान दाखिल किए गए। याचिकाकर्ता का साक्ष्य 03.02.2016 को बंद कर दिया गया था। 08 वर्षों के बाद, प्रकाश चंद बैद की प्रतिवादी गवाह संख्या एक के रूप में 11.11.2024 को जांच की गई। जिरह में उन्होंने इस तथ्य से इनकार किया कि 10.10.2013 को उसके और अमित चौधरी के बीच मुकदमे की संपत्ति से संबंधित कोई समझौता किया गया था। प्रकाश चंद बैद ने कहा कि 10.10.2013 का समझौता आरोप पत्र का हिस्सा नहीं था
06.01.2025 को याचिकाकर्ता ने सीपीसी के आदेश 7 नियम 14(3) के तहत एक आवेदन इस आधार पर पेश किया कि समझौते की एक प्रति सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पुलिस स्टेशन से प्राप्त की गई है और मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए यह आवश्यक है। जिरह के लिए प्रकाश चंद बैद को वापस बुलाने के लिए एक और आवेदन पेश किया गया।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि इस प्रावधान को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिन दस्तावेजों पर याचिकाकर्ता निर्भर करता है, उन्हें वादपत्र के साथ प्रस्तुत करना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर कोर्ट की अनुमति के बिना साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।