‘मैं मुगलों की वंशज हूं, मुझे लाल किला सौंपा जाय,’ जब Red Fort पर कब्जे की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं महिला, सीजेआई ने लगा दी क्लास


Supreme Court Hearing On Red Fort: खुद को मुगलों की वंशज बताते हुए दिल्ली स्थित लाल किला (Red Fort) पर कब्जे को लेकर याचिका लगाने की महिला को सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) ने जमकर क्लास लगा दी। मुख्य न्यायाधीश ने महिला से पूछा कि सिर्फ लाल किला (Lal Qila) क्यों, ताजमहल (Taj Mahal) और फतेहपुर सीकरी पर कब्जा क्यों नहीं चाहिए, वो भी तो मुगलों ने बनवाए हैं। इसके बाद सीजेआई ने याचिका तो तर्कहीन करार देते हुए खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) और जस्टिस संयज कुमार की बेंच ने याचिकाकर्ता सुल्ताना बेगम की याचिका खारिज कर दी और कहा कि याचिका पूरी तरह से गलत है। सुल्ताना बेगम का दावा है कि वह बहादुर शाह जफर II के परपोते की विधवा है। बेंच ने कहा, ‘सिर्फ लाल किला क्यों मांगा? फतेहपुर सीकरी और ताजमहल क्यों नहीं। रिट याचिका पूरी तरह से गलत है इसलिए इसे खारिज किया जाता है।
सुल्ताना बेगम की याचिका पिछले साल दिसंबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने देरी के आधार पर खारिज कर दी थी, जिस पर उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हाईकोर्ट में याचिका देरी के आधार पर खारिज की गई थी न कि गुण-दोष के आधार पर इसलिए सुप्रीम कोर्ट भी वही रियायत दे और देरी के आधार पर ही खारिज करे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी ये मांग मानने से इनकार कर दिया।
सुल्ताना बेगम ने साल 2021 में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे सिंगल जज की बेंच ने खारिज कर दिया था। इसके 900 दिन बाद याचिकाकर्ता हाईकोर्ट पहुंचीं। यहां जस्टिस विभू बाकरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने ढाई साल की देरी के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि साल 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सुल्ताना बेगम के परिवार को संपत्ति से गैरकानूनी तरीके से वंचित कर दिया था। इसके बाद बहादुर शाह जफर II को देश से निर्वासित कर दिया गया और मुगलों के कब्जे से लाल किला ले लिया गया. उनका कहना है कि और अब भारत सरकार का इस पर कब्जा गैरकानूनी है। सुल्ताना बेगम ने लाल किले पर कब्जे और सरकार से मुआवजे की मांग की है।
2021 के अपने फैसले में सिंगल जज की बेंच ने याचिकाकर्ता की दलील पर कहा था, ‘अगर ये मान भी लें कि बहादुर शाह जफर II को ईस्ट इंडिया कंपनी ने गैरकानूनी तरीके से लाल किले के कब्जे से वंचित कर दिया, तो भी 164 साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद यह याचिका कैसे सुनवाई योग्य है। जबकि याचिकाकर्ता के पूर्वज इस घटनाक्रम से हमेशा से अवगत थे। सिंगल बेंच के इस फैसले के बाद सुल्ताना बेगम ने हाईकोर्ट की डिवीडन बेंच के सामने मामला रखा, लेकिन इसमें उन्होंने ढाई साल से भी ज्यादा समय लगा दिया। इस वजह से कोर्ट ने याचिका सुनने से मना कर दिया और फिर वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं।