लॉ ग्रेज्युएट्स के लिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अब सीधे नहीं बन सकेंगे सिविल जज, बतौर वकील तीन साल करनी होगी प्रैक्टिस…


नई दिल्ली। एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज परीक्षा में ला डिग्रीधारी युवाओं के लिए जरुरी मापदंड तय कर दिया है। ला ग्रेज्युएट्स अब सीधे सिविल जज की परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएंगे। इसके लिए उनको कम से कम तीन साल बतौर वकील प्रैक्टिस करने का अनुभव लेना होगा। सिविल जज परीक्षा में शामिल होते वक्त अनुभव प्रमाण पत्र जमा करने की अनिवार्यता भी रख दी है।
सीजेआई जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने आल इंडिया जज एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा है कि ला ग्रेज्युएट जो ज्यूडिसरी में नियुक्त होते हैं उनके चलते कई समस्याएं हुई है, लिहाजा सभी ला ग्रेज्युएट्स को ज्यूडिसरी में दाखिला से पहले कम से कम तीन साल वकील के रूप में प्रैक्टिस करनी होगी। अदालत के कामकाज का अनुभव लेना जरुरी है।
सीजेआई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ज्यूडिशियल अफसर बनने और इस व्यवस्था में आने से पहले अदालत के कामकाज का अनुभव लेना और अनुभव होना जरुरी है। सीजेआई ने अपने फैसले में लिखा है कि देश के कई हाई कोर्ट ने अनुभव किया है कि युवा ला ग्रेज्युएटस को न्यायिक पदों पर नियुक्ति देने से कई समस्याएं होती है।अदालत के कामकाज का प्रत्यक्ष अनुभव न्यायिक व्यवस्था की दक्षता और प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने के लिए जरुरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि स्टेट बार कौंसिल में नामांकन की अविध से प्रैक्टिस की अवधि मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि भविष्य में होने वाली सिविल जजों की नियुक्ति पर यह आदेश प्रभावी होगा। ला ग्रेज्युएट्स प्रैक्टिस किन वकीलों के साथ करेंगे इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है। 10 साल का प्रैक्टिस कर चुके अधिवक्ता या फिर ज्यूडिशियल अफसर द्वारा जारी अनुभव प्रमाण पत्र दिखाना होगा।