16 साल पहले बालको में चिमनी गिरने से 40 मजदूरों की चली गई थी जान, हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को किया रद्द


बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के कोरबा में 23 सितंबर 2009 को तेज हवा, बारिश और बिजली गिरने के कारण पावर प्लांट के लिए बनाई जा रही चिमनी ढह गई थी। चिमनी के ढहने से 40 मजदूरों की मौत हुई थी। हादसे में कई मजदूर घायल हो गए थे। घटना के बाद बालको नगर थाने में 25 सितंबर 2009 को बालको प्रबंधन और जीडीसीएल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। जांच के बाद 4 जनवरी 2010 को आरोप पत्र और 8 अप्रैल 2010 को अनुपूरक आरोप पत्र दाखिल किया गया। चार्ज शीट में एसईपीसीओ,बालको और जीडीसीएल के अधिकारियों को आरोपी बनाया गया।

ट्रायल कोर्ट में दाखिल चार्ज शीट में आरोप लगाया गया है कि घटिया सामग्री और तकनीकी खामियों के चलते निर्माणाधीन विशालकाय चिमनी गिरी। मामले की सुनवाई कोरबा के अपर सत्र न्यायाधीश के कोर्ट में चल रही है। 19 जून 2013 को आरोप तय किए गए। चार्ज शीट में लगाए गए आरोपों को चुनौती देते हुए अधिकारियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए एक साल के भीतर ट्रायल पूरा करने का निर्देश संबंधित अदालत को दिया था।
हाई कोर्ट के आदेश पर ट्रायल की प्रक्रिया में तेजी लाई गई। सुनवाई के दौरान 46 गवाहों की गवाही कोर्ट में हुई। जांच अधिकारी से भी कोर्ट ने पूछताछ की। सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट ने 21 फरवरी 2025 को अपना फैसला सुनाया। जारी आदेश में कोर्ट ने बालको, एसईपीसीओ, जीडीसीएल, बीवीआईएल और डीसीपीएल को आरोपी बनाने का निर्देश दिया।
ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए अफसरों ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। बालको की ओर से पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट दयान कृष्णन ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने ठोस सबूत के बिना ही कंपनी को आरोपी बना दिया है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग व नगर निगम से अनुमति का जो मुद्दा उठाया गया है इससे हादसे का कोई संबंध नहीं है। प्राकृतिक आपदा के चलते हादसा हुआ है।
GDCL की ओर से अधिवक्ता सुनील ओटवानी ने पैरवी की। अधिवक्ता ओटवानी ने कहा कि याचिकाकर्ता कंपनी का नाम एफआईआर या चार्जशीट में नहीं था। 15 साल बाद एक व्यक्ति की गवाही के आधार पर कंपनी को आरोपी बनाया गया। जांच अधिकारी ने माना कि चार्जशीट में याचिकाकर्ता कंपनी के खिलाफ कोई सामग्री नहीं थी।
राज्य सरकार की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के ला अफसरों ने बताया कि हादसे के वक्त पदस्थ अफसरों के नाम उपलब्ध ना होने के कारण कंपनियों को आरोपी बनाया गया है। ला अफसरों ने हादसे के लिए कंपनियों को दोषी ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को कानून के दायरे में बताया। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता कंपनियों की याचिका को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि 15 साल बाद ट्रायल के अंतिम चरण में धारा 319 के तहत आवेदन देकर कार्यवाही को फिर से शुरू करने की कोशिश की गई है। यह नियमों के विपरीत है।