टीआरआई के बीच बेहतर समन्वय और प्रबंधन में मदद मिलेगी: मंत्री मुंडा

नई दिल्ली । जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) ने 3 और 4 सितंबर, 2020 को वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से दो दिवसीय ‘नेशनल जनजातीय शोध सम्मेलन’ का आयोजन किया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने की। उन्होंने टीआरआई और अन्य हितधारकों के साथ साझेदारी के तहत कार्यान्वित की जा रही विभिन्न शोध परियोजनाओं के परिणाम और सर्वोत्तम कार्य प्रणाली की समीक्षा और चर्चा की। इस बैठक में राज्यों के जनजातीय कल्याण मंत्रियों, राज्यों के जनजातीय कल्याण सचिवों, टीआरआई के निदेशकों, सीओई के साथ मंत्रालय और आईआईपीए के अधिकारियों सहित देश भर के लगभग 120 प्रतिभागियों ने भाग लिया और जनजातीय अनुसंधान और विकास पर अपने विचार साझा किए। जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय के साथ विभिन्न भागीदारों / हितधारकों द्वारा की गई पहल की सराहना की। उन्होंने घोषणा की कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) के बीच संस्थान परिसर में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (एनटीआरआई) स्थापित करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे विभिन्न टीआरआई के बीच बेहतर समन्वय और प्रबंधन में मदद मिलेगी और देश भर में जनजातीय क्षेत्रों के साक्ष्य आधारित योजना और विकास के रूप में जनजातीय अनुसंधान में सुधार का लंबा रास्ता तय होगा।
उन्होंने कहा कि लद्दाख क्षेत्र के विश्लेषण और वहां शुरू किए गए कार्यक्रमों और परियोजनाओं के समग्र कार्यान्वयन के मामले में विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि लद्दाख एक नया केंद्र शासित प्रदेश है। उन्होंने कहा कि हमें अपने साझेदारों के साथ-साथ वहां रहने वाले समुदायों के साथ मिलकर सहयोगात्मक प्रयास के साथ काम करना चाहिए और देश भर में एक सकारात्मक उदाहरण पेश करना चाहिए। मुंडा ने टीआरआई / सीओई द्वारा ग्रामीण स्तर की आजीविका के ढांचे को विकसित करने पर जोर दिया, ताकि ग्रामीण लोग विश्व की मांग को समझ सकें, उन्हें ई-कॉमर्स, ब्रांड प्रबंधन और उत्पाद विपणन आदि का प्रशिक्षण दिया जा सके। ऐसा करने के बाद ही ग्रामीण लोग पीएम की दूरदर्शी पहल ‘आत्म-निर्भर भारत’ और ‘वोकल फॉर लोकल कैंपेन’ यानी ‘स्थानीय के लिए मुखर अभियान’ में अपनी प्रमुख भूमिका निभा सकेंगे। श्री मुंडा ने जिले, गांव, प्रखंड, और विशेष रूप से पीवीटीजी के लिए परिप्रेक्ष्य कार्य योजना विकसित करने के लिए प्रत्येक आदिवासी बहुल गांव का प्रभाव आकलन करने के लिए टीआरआई और सीओई की सराहना की। पीवीटीजी बहुल गांवों की स्थितियों में सुधार करने के लिए उन्होंने एक नवीन विचार दिया और एक जिले के समर्पित अधिकारियों को आगे आने और एक गांव को गोद लेने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि जैव विविधता प्रबंधन, जैविक खेती और स्वदेशी बीज पर काम करना अब समय की मांग है।

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