सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, घर देने में की देरी तो लौटानी होगी रकम, साथ में ब्याज भी

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दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। डिवीजन बेंच ने कहा है कि घर या फ्लैट की डिलीवर देने में विलंब करने वाले डेवलपर्स व कालोनाइजर्स को पीड़ित पक्ष या घर खरीदने वाले को ब्याज के साथ जमा की गई राशि वापस लौटानी होगी। जस्टिस करोल ने अपने फैसले में यह भी लिखा है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मुआवज़ा मनमाने ढंग से नहीं दिया जा सकता है। यह कानूनी सिद्धांतों और डेवलपर्स की देयता और क्षमता की सीमा पर निर्धारित होनी चाहिए। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि घर या फ्लैट की डिलीवर देने में विलंब होने की स्थिति में डेवलपर्स या कालोनाइजर्स घर खरीदने वाले के बैंक लोन के ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी GMADA विरुद्ध अनुपम गर्ग और अन्य द्वारा दायर याचिका पर जस्टिस संजय करोल और ज‌स्टिस प्रसन्ना बी वराले की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। GMADA ने पूरब प्रीमियम अपार्टमेंट योजना लांच करने के साथ ही फ्लैट बनाना शुरू किया था। स्वामित्व देने में विलंब के चलते विवाद की स्थिति बनी और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। फ्लैट के स्वामित्व में विलंब को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित पक्ष को मूल धन के साथ 8 फीसदी ब्याज के साथ राशि वापस लौटाने का निर्देश डेवलपर्स को दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जीएमएडीए के उस मांग को खारिज कर दिया है जिसमें उसने खरीदार द्वारा फ्लैट खरीदने के लिए बैंक से लोन लिया था। लोन पर ब्याज चढ़ रहा है। ब्याज की राशि के भुगतान की मांग के लिए निर्देश देने से इंकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए कहा है कि डेवलपर्स विलंब से कब्जा देने के लिए ब्याज का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है। खरीदारों द्वारा बैंक से लिए लोन के ब्याज के भुगतान को लेकर डेवलपर्स को मजबूर नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि जो फ्लैट खरीद रहा है वह उपभोक्ता है और जो इसे बना रहा है वह सेवा प्रदाता की भूमिका में है। दोनों के बीच उपभोक्ता और सेवा प्रदाता का संंबंध है। कोर्ट ने कहा कि फ्लैट खरीदने के लिए उपभोक्ता ने जो राशि सेवा प्रदाता को जमा कराई है या फ्लैट खरीदी के लिए निवेश किया है उसके लिए ब्याज की राशि पर्याप्त है और मुआवजा को भी पर्याप्त माना जा सकता है। बैंक लोन पर ब्याज राशि का वहन करने सेवा प्रदाता को मजबूर नहीं किया जा सकता। जब तक परिस्थिति प्रतिकूल ना हो।