नेताजी के विचारों ने हमेशा लोगों को किया प्रभावित, देश मना रहा उनकी 125वीं जयंती

नई दिल्ली। देश स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस को याद कर रहा है। 23 जनवरी को देश उनकी 125वीं जयंती मनाएगा। सोशल मीडिया पर भी उनकी जयंती को चर्चाएं तेज हो चुकी हैं। नेताजी के विचारों ने हमेशा लोगों को प्रभावित किया है। उनकी विचार क्राांतिकारी होने के साथ लोगों में उर्जा भर देने रहे हैं। उनके अनमोल विचार किसी के भी जिंदगी बना सकता हैं। उन्होंने अपने विचार किसी भी शख्स को एक अच्छा नागरिक बनाने के साथ-साथ एक अच्छे राष्ट्र निर्माण में सहयोग प्रदान करता है। आज भी जब अगर नेताजी के विचारों को एक पढ़ लिय जाए तो जीवन में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।

नेताजी का ‘जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया। उन्होंने सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमांडर के रूप में सेना को संबोधित करते हुए ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर सुभाष चंद्र बोस ने ही संबोधित किया था। जलियांवाला बाग कांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।

देश के स्वाधीनता आंदोलन के नायकों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को केंद्र सरकार ने पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा….! जय हिन्द। जैसे नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। नेताजी की जीवनी और कठोर त्याग आज के युवाओं के लिए बेहद ही प्रेरणादायक है।

विचार व नारे-

नेताजी सुभाष चंद्र बोस उनके परिवार में 9 वें नंबर के बच्चे थे। नेताजी उनके बचपन के दिनों से ही एक विलक्षण छात्र थे, और राष्ट्रप्रेमी भी।

नेताजी ने आजादी की जंग में शामिल होने के लिए भारतीय सिविल सेवा की आरामदेह नौकरी ठुकरा दी। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में उनकी रैंक 4 थी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि, वे भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।

नेताजी के कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेजी शिक्षक के भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान पर उन्होंने खासा विरोध किया, जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था।

1921 से 1941 के बीच नेताजी को भारत के अलग-अलग जेलों में 11 बार कैद में रखा गया।

1941 में उन्हें एक घर में नजरबंद करके रखा गया था, जहां से वे भाग निकले। नेताजी कार से कोलकाता से गोमो के लिए निकल पड़े। वहां से वे ट्रेन से पेशावर के लिए चल पड़े। यहां से वह काबुल पहुंचे और फिर काबुल से जर्मनी रवाना हुए जहां उनकी मुलाकात अडॉल्फ हिटलर से हुई।
1943 में बर्लिन में रहते हुए नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की थी।

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