नौसेना में शामिल हुई “साइलेंट किलर” सबमरीन आईएनएस करंज

मुंबई। समुद्री में सेना को मजबूत करने और उसकी ताकत बढ़ाने सबमरीन आईएनएस करंज को नौसेना के बेड़े में शामिल कर लिया गया है। बुधवार का दिन इतिहास में दर्ज हो गया जब मुंबई में स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस करंज भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। नौसेना स्टाफ के प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और एडमिरल (सेवानिवृत्त) वीएस शेखावत की उपस्थिति में आईएनएस करंज को नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया। आईएनएस करंज के नौसेना में शामिल होने के बाद हमारे देश की समुद्री ताकत कई गुना और बढ़ जाएगी। आईएनएस करंज को साइलेंट किलर कहा जाता है क्योंकि ये बिना किसी आवाज के दुश्मन के खेमे में पहुंचकर तबाह करने की क्षमता रखती है।
आईएनएस करंज के नाम के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। आईएनएस करंज के हर अक्षर का एक मतलब है यानी K से किलर इंसटिंक्ट, A से आत्मनिर्भर भारत, R से रेडी, A से एग्रेसिव, N से निम्बल और J से जोश। इससे पहले इसी श्रेणी की दो पनडुब्बियां, आईएनएस कलवरी और आईएनएस खंडेरी को नौसेना के बेड़े में शामिल किया जा चुका है। अब चौथी पनडुब्बी आईएनएस वेला का समुद्री ट्रायल किया जा रहा है। आईएनएस करंज में सतह और पानी के अंदर से टॉरपीडो और ट्यूब लॉन्च्ड एंटी-शिप मिसाइल दागने की क्षमता है। ऐसा दावा है कि आईएनएस करंज में सटीक निशाना लगाकर दुश्मन की हालत खराब करने की क्षमता है। इसके साथ ही इस पनडुब्बी में एंटी-सरफेस वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर, खुफिया जानकारी जुटाने, माइन लेयिंग और एरिया सर्विलांस जैसे मिशनों को अंजाम देने की क्षमता है। आईएनएस करंज की लंबाई करीहब 70 मीटर की है और ऊंचाई 12 मीटर है। इस पनडुब्बी का वजन 1600 टन है। ये पनडुब्बी मिसाइल, टॉरपीडो से लैस है। इसके अलावा समुद्र में माइन्स बिछाकर दुश्मन को तबाह करने की ताकत भी रखती है।
दुश्मन के लिए इसकी टोह लेना होगामुश्किल
स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस करंज में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिससे दुश्मन देशों की नौसेनाओं के लिए इसकी टोह लेना मुश्किल होगा। इन तकनीकों में अत्याधुनिक अकुस्टिक साइलेंसिंग तकनीक, लो रेडिएटेड नॉइज लेवल, हाइड्रो डायनेमिकली ऑपटिमाइज़्ड शेप शामिल है। पनडुब्बी को बनाते हुए पनडुब्बियों का पता लगाने वाले कारणों को ध्यान में रखा गया है जिससे ये पनडुब्बी ज्यादातर पनडुब्बियों की अपेक्षा सुरक्षित हो गई है।
पनडुब्बी में ऑक्सीजन बनाने की क्षमता
ये एक ऐसी पनडुब्बी है जिसे लंबी दूरी वाले मिशन में ऑक्सीजन लेने के लिए सतह पर आने की जरूरत नहीं है। इस तकनीक को डीआरडीओ के नेवल मैटेरियल्स रिसर्च लैब ने विकसित किया है। पुरानी पनडुब्बी करंज के मुकाबले नई करंज में एआईपी को शामिल किया गया है। दरअसल, जब पनडुब्बी को बैटरी से चलाते हैं तो बैटरी को रिचार्ज करने के लिए पनडुब्बी को सतह पर आना पड़ता है। क्योंकि डीजल इंजन से बैटरी को चार्ज करते हैं और डीजल इंजन चलाने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। लेकिन एयर इंडिपेंडेंट प्रॉपल्शन एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से पनडुब्बी को बैटरी चार्ज करने के लिए सतह पर आने की जरूरत नहीं पड़ती है।