कोरोना कहर के बीच एक और आफत, महाराष्ट्र में अब ब्लैक फंगस ले रहा जान, 2 की मौत
ठाणे (एजेंसी)। कोरोना संकट से जूझ रहे भारत में अब म्यूकोरमायकोसिस संक्रमण एक और खतरा बनता जा रहा है। महाराष्ट्र के ठाणे में इस संक्रमण की वजह से दो लोगों की मौत हो गई है। म्यूकोरमायकोसिस एक दुर्लभ किस्म का गंभीर फंगल संक्रमण है। इसे ‘ब्लैक फंगस’ के नाम से भी जाना जाता है। महाराष्ट्र के अलावा गुजरात, उत्तर प्रदेश जैसे देश के अन्य राज्यों में भी ब्लैक फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। नगर निगम की स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अश्विनी पाटिल ने बताया कि कल्याण डोंबिवली नगर निगम (केडीएमसी) के अंतर्गत आने वाले अगल-अलग अस्पतालों में ठाणे ग्रामीण के म्हारल से 38 वर्षीय मरीज और डोंबिवली शहर से एक मरीज की कोविड-19 के इलाज के दौरान इस फंगल संक्रमण से मौत हो गई। उन्होंने बताया कि छह अन्य मरीजों का म्यूकोरमायकोसिस का इलाज चल रहा है और इनमें से दो को आईसीयू में भर्ती किया गया है।
सिर्फ महाराष्ट्र में ब्लैक फंगस के 2 हजार से ज्यादा मामले
महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने मंगलवार को बताया था कि राज्य में अभी म्यूकोरमायकोसिस के 2 हजार से अधिक मरीज हो सकते हैं और कोविड-19 के मामले बढऩे से यह संख्या और बढ़ सकती है।
क्या हैं लक्षण और किन्हें है खतरा?
यह फंगल संक्रमण ज्यादातर उन्हीं मरीजों में देखा गया है जो मधुमेह यानी डायबिटीज से पीडि़त हैं। ऐसे मरीजों को अपना मधुमेह का स्तर नियंत्रण में रखना चाहिए। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार म्यूकोरमायकोसिस के लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, आंखों में दर्द, नाक बंद या साइनस और देखने की क्षमता पर आंशिक रूप से असर शामिल है।
क्या है म्यूकोरमाइकोसिस
भारतीय चिकित्सा विज्ञान परिषद (आईसीएमआर) के मुताबिक, म्यूकर माइकोसिस एक तरह का दुर्लभ फंगल इंफेक्शन है जो शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। यह संक्रमण मस्तिष्क, फेफड़े और त्वचा पर भी असर कर रहा है। इस बीमारी में कई के आंखों की रौशनी चली जाती है वहीं कुछ मरीजों के जबड़े और नाक की हड्डी गल जाती है। अगर समय रहते इलाज न मिले तो मरीज की मौत हो सकती है।
पहले से बीमार लोगों को खतरा
यह फंगल इंफेक्शन उन लोगों पर असर कर रहा है जो कोरोना की चपेट में आने से पहले ही किसी दूसरी बीमारी से ग्रस्त थे और उनका इलाज चल रहा था। इस कारण उनके शरीर की पर्यावरणीय रोगजनकों से लडऩे की क्षमता कम हो जाती है। ऐसे लोग जब अस्पताल में कोरोना के इलाज के लिए भर्ती होते हैं तो वहां के पर्यावरण में मौजूद फंगल उन्हें बहुत तेजी से संक्रमित करती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के इलाज में उपयोग होने वाले स्टेरॉयड भी इस फंगल इंफेक्शन का कारण बन रहे हैं।