यूपी में कोविड प्रबंधन पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी, कहा- राम भरोसे चल रही है उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था

प्रयागराज (एजेंसी)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के छोटे शहरों, कस्बों व ग्रामीण इलाकों में संक्रमण तेजी से बढऩे तथा मरीजों के इलाज में हो रही लापरवाही पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था राम भरोसे चल रही है। इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। कोर्ट ने मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कोविड मरीज संतोष कुमार के लापता होने में डाक्टरों और मेडिकल स्टॉफ की लापरवाही को गंभीर मानते हुए अपर मुख्य सचिव चिकित्सा व स्वास्थ्य को जिम्मेदारी तय करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को चार माह में प्रदेश के अस्पतालों में चिकित्सकीय ढांचा सुधारने और पांच मेडिकल कॉलेजों को एसजीपीजीआई स्तर का संस्थान बनाने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया है।
स्वत: प्रेरित जनहित याचिका की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने कहा कि वर्तमान में प्रदेश में चिकित्सा सुविधा बेहद नाजुक और कमजोर है। यह आम दिनों में भी जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। महामारी के दौर में इसका चरमरा जाना स्वाभाविक है। कोर्ट ने कहा है कि  प्रदेश के 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम मेें कम से कम 40 प्रतिशत बेड आईसीयू हों और इसमें 25 प्रतिशत वेंटिलेटर हों।
बाकी 25 प्रतिशत हाईफ्लो नसल बाइपाइप का इंतजाम होना चाहिए। 30 बेड वाले नर्सिंग होम में अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन प्लांट होना चाहिए। प्रयागराज, आगरा, कानपुर, गोरखपुर और मेरठ मेडिकल कॉलेजों को उच्चीकृत कर एसजीपीजीआई स्तर का संस्थान बनाया जाए। इसके लिए सरकार भूमि अर्जन के आपातकालीन कानून का सहारा ले और धन उपलब्ध कराए। इन संस्थानों को कुछ हद तक स्वायत्तता भी दी जाए।  कोर्ट ने कहा कि गांवों और कस्बों में सभी प्रकार की पैथालॉजी सुविधा और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लेवल टू स्तर की चकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। बी और सी ग्रेड के शहरों को कम से कम 20 आईसीयू सुविधा वाली एंबुलेंस दी जाए। हर गांव में दो एंबुलेंस होनी चाहिए ताकि गंभीर मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जा सके। कोर्ट ने यह सुविधा एक माह में उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।