स्वावलंबी बने राज्य के 1135 गौठान मुख्यमंत्री बघेल ने दी बधाई
रायपुर। नीति और नीयत सही हो तो सफलता जरूर मिलती है। यह उक्ति आम लोगों के जीवन में ही सिर्फ लागू नहीं होती, बल्कि शासकीय योजनाओं एवं कार्यक्रमों की सफलता की बुनियाद भी इसी पर टिकी होती है। राज्य में पशुधन विशेषकर गौ-माता की देखभाल और संरक्षण के लिए शुरू किए गए गरूवा कार्यक्रम के तहत गांवों में निर्मित गौठान और गोधन न्याय योजना की अपार लोकप्रियता और सफलता के पीछे छत्तीसगढ़ सरकार की नीति और नीयत ही है। अभी साल भर का अरसा भी नहीं बीता है कि राज्य में 1135 गौठान आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन गए हैं। इन गौठानों में गोबर की खरीदी और वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए अब शासन की मदद की जरूरत नहीं रह गई है। गौठान समिति और महिला समूह अपनी आर्थिक गतिविधियों के संचालन के लिए सक्षम और आत्मनिर्भर बन गए हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वावलंबी बने गौठानों की समितियों के सदस्यों और महिला स्व-सहायता समूह को बधाई और शुभकामनाएं दी है। मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई है कि राज्य के सभी गौठान धीरे-धीरे सक्षम और स्वावलंबी होकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अपनी भागीदारी निभाएंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार की सुराजी गांव योजना नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी से ग्रामीण अंचल में उत्साह का एक नया वातावरण बना है। नरवा कार्यक्रम के तहत राज्य में 3 हजार से अधिक नालों का उपचार कर जल संचयन से खेती-किसानी समृद्ध होने लगी है। नालों के किनारे वाले खेतों के किसान अब दोहरी और तिहरी फसल लेने लगे हैं। गरूवा कार्यक्रम के तहत गांवों में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अब तक 10,057 गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है, जिसमें से 5820 गौठान निर्मित हो चुके हैं और वहां पशुओं के चारे-पानी का बेहतर प्रबंध के साथ पशु टीकाकरण एवं उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। निर्मित गौठानों में गोधन न्याय योजना के तहत नियमित रूप से गोबर की खरीदी और महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट के निर्माण के साथ-साथ अन्य उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। इससे लगभग 85 हजार महिलाओं को रोजगार और नियमित आय प्राप्त होने लगी है।
राज्य के 5820 गांवों में गौठानों में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पशुओं के चारे-पानी के प्रबंध के लिए कोटना, पशु शेड का निर्माण कराया गया है। 532 गौठानों में चरवाहों के लिए कक्ष, 1397 गौठानों में स्व-सहायता समूह के लिए वर्किंग शेड सहित अन्य अधोसंरचनाओं का निर्माण 416 करोड़ रूपए की लागत से कराया गया है। गौठानों में पेयजल की व्यवस्था के लिए 872 सोलर पम्प, चारे की कटिंग के लिए 1230 पैरा कुट्टी मशीन, 110 बायो गैस संयंत्र भी स्थापित किए जा चुके हैं। 3219 गौठानों में 36094 एकड़ में चारागाह विकास, 919 गौठानों में 1348 एकड़ में सामुदायिक सब्जी-बाड़ी भी विकसित की जा चुकी है।
गोधन न्याय योजना के तहत गौठानों में अब तक 48.32 लाख क्विंटल पर गोबर क्रय किया जा चुका है, जिसके एवज में गोबर विक्रेता पशुपालकों को 96 करोड़ रूपए की अधिक की राशि का ऑनलाइन भुगतान किया जा चुका है, इससे एक लाख 70 हजार पशुपालक लाभान्वित हुए हैं, इसमें भूमिहीनों की संख्या 75 हजार से अधिक है। गौठानों में अब तक 5.50 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तथा 2 लाख क्विंटल सुपर कम्पोस्ट का उत्पाद किया जा चुका है। गौठान समितियों को 11.68 करोड़ तथा महिला समूहों को 7.82 करोड़ रूपए की राशि लाभांश के रूप में मिल चुकी है। महिला स्व-सहायता समूहों को गौठानों में संचालित विविध आयमूलक गतिविधियों से अब तक 29 करोड़ रूपए की आय हो चुकी है। गांवों में गौठानों की स्थापना का एक और फायदा यह हुआ कि रबी मौसम में लगभग 4 लाख हेक्टेयर में द्विफसली क्षेत्र का विस्तार हुआ है।