विश्व आदिवासी दिवस: सरकारी स्तर पर कोई बड़ा आयोजन नहीं, सीएम हाउस में वर्चुअल समारोह, ब्लॉकों में सर्व आदिवासी समाज का मोर्चा
आज विश्व आदिवासी दिवस है। छत्तीसगढ़ में जगह-जगह इसके आयोजन की तैयारियां हुई हैं। सरकार इसके लिए पहले ही सार्वजनिक अवकाश का दिन घोषित कर चुकी है। कोरोना संक्रमण की गाइडलाइन की वजह से सरकारी स्तर पर कोई बड़ा आयोजन नहीं हो रहा है। मुख्यमंत्री निवास में केवल एक वर्चुअल समारोह होगा। वहीं छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने राजधानी के बाहर के ब्लॉकों में मोर्चा संभाल लिया है।
मुख्यमंत्री सचिवालय से मिली जानकारी के मुताबिक सोमवार को विश्व आदिवासी दिवस पर वर्चुअल समारोह आयोजित किया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दोपहर 12 बजे से मुख्यमंत्री निवास से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़ेंगे। इसमें समाज प्रमुखों से संवाद भी होगा। प्रदेश भर के केंद्रों से इसे जोड़ा जाएगा। 2019 में सरकार ने इनडोर स्टेडियम में बड़े समारोह का आयोजन किया था। 2020 में कोरोना संक्रमण की वजह से ऐसा आयोजन नहीं हुआ। इस बार भी सरकार ने सार्वजनिक आयोजन की जगह वर्चुअल संवाद पर ही जोर दिया है।
इधर छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ब्लॉक मुख्यालयों पर कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष बीएस रावटे ने बताया, सरकार हर बार राजधानी में राज्य स्तरीय आयोजन करती रही है। इसलिए हम लोगों ने ब्लॉकों पर फोकस किया था। एक जिला स्तरीय आयोजन धमतरी के कुरूद में हो रहा है। प्रदेश कार्यकारिणी के अधिकतर लोग वहां पहुंचेंगे। इसके अलावा सभी विकास खंडों में संगठन की इकाईयां कार्यक्रम का आयोजन कर रही हैं। इसमें आंदोलन के मुद्दों पर भी बात होगी।
आरक्षण, पेसा और सिलगेर होंगे आज के मुद्दे
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज का कहना है, पिछले महीने आंदोलन शुरू करते हुए उन्होंने 9 मांगे रखी थीं। सरकार ने इनपर ध्यान नहीं दिया। आज के कार्यक्रमों के समाज के सामने आरक्षण, फर्जी जाति प्रमाणपत्र वालों पर कार्रवाई, अधिसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून लागू करने और सिलगेर गोलीकांड में इंसाफ की मांग पर बात की जाएगी। ब्लॉकों और गांवों में ये मुद्दे उठे तो सरकार को असहज महसूस हो सकता है।
1994 में UNO ने घोषित किया था यह दिन
संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा ने 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस घोषित किया था। यह दुनिया भर के आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनकी संस्कृति और भाषा को सम्मान देने का अवसर था। पिछले एक दशक में यह छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों के पारंपरिक पर्व की तरह हो गया है। कोरोना काल से पहले तक राजधानी रायपुर में इस दिन बड़ा आयोजन होता रहा है।