कोर्ट का फैसला: बेटी बालिग है तो पिता से भरण-पोषण के लिए पैसे मांगने की हकदार नहीं
यमुनानगर: सीजेएम कोर्ट के आदेश को एडीजे कोर्ट ने पलटते हुए कहा कि बेटी बालिग है, पढ़ी-लिखी है और शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ है तो वह पिता से भरण-पोषण के लिए पैसे मांगने की हकदार नहीं है। कोर्ट एक पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एक व्यक्ति ने अपील की थी कि 2018 में सीजेएम कोर्ट ने बेटी को तीन हजार रुपए प्रति माह भरण-पोषण के लिए देने का आदेश दिया था जबकि, बेटी अलग रहती है और बालिग है।
यमुनानगर में सीजेएम कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए एडीजे नेहा नौहरिया की अदालत में याचिका लगाई थी। सीजेएम ने धारा 125 के तहत बेटी को भरण-पोषण के लिए 3 हजार रुपए प्रति माह देने के आदेश दिए थे।
एडीजे कोर्ट ने धारा-125 में बालिग, शारीरिक और मानसिक रूप से सही बेटी को भरण-पोषण लेने का हकदार नहीं माना। यमुनानगर की अदालत द्वारा सुनाया गया यह ऐतिहासिक फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
दरअसल, रेलवे से रिटायर्ड कर्मी रमेश चंद्र का अपनी पत्नी से लंबे समय से विवाद है। पत्नी और बेटी कई साल से अलग रहती हैं। पत्नी को एक हजार रुपए भरण-पोषण के देने के कोर्ट ने आदेश दिए हुए हैं, जबकि बेटी को 3000 हजार रुपए खर्चे के लिए दिए जा रहे थे। पिता के वकील संदीप शर्मा ने बताया कि लड़की बालिग है, पढ़ी लिखी है तो वह खर्चे की हकदार नहीं है। उन्होंने बताया कि पिता 70 साल का है वह पत्नी को खर्चा दे रहा है। उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक निर्णय है, खर्चा केवल उन्हीं स्थिति में दिया जाता है जो बच्ची नाबालिग हो, अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती हो।
वहीं युवती के वकील विनोद राजोरिया का कहना है कि एक अविवाहित युवती ने अपने पिता पर खर्चे के लिए केस दाखिल किया था। वह युवती बालिग है, क्या वह अपने पिता से क्लेम ले सकती है या नहीं। उन्होंने कहा कि बेटी अविवाहित है तो वह अपने पिता से खर्चे की मांग कर सकती है, लेकिन अदालत ने कहा कि जो बालिग है, अपने आप को मेंटेन रखने में सक्षम है वह खर्चा नहीं मांग सकती।