विनाशकारी आर्थिक और मानवीय संकट की ओर अग्रसर अफगानिस्तान

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काबुल/नई दिल्ली । तालिबान ने अमेरिकी सैन्य बलों की आखिरी टुकड़ी अफगानिस्तान से रवाना होने के बाद देश की स्वतंत्रता दिवस को प्रदर्शित करते हुए खुशी मनाई थी, लेकिन तालिबान के अधिग्रहण के बाद औसत अफगान आबादी को आगे बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अफगानिस्तान अब प्रशासन और अर्थव्यवस्था के पतन, बढ़ती खाद्य कीमतों, बुनियादी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ क्रूरता का सामना कर रहा है। इसके साथ ही यहां समाधान या अपील करने के लिए कोई तंत्र नहीं है, इस प्रकार अफगान लोगों के लिए नरक जैसी स्थिति पैदा हो रही है।

अफगानिस्तान में काम कर रहे मानवीय संगठनों और गैर-लाभकारी संस्थाओं ने अफगानिस्तान और उसके लोगों की भयावह तस्वीर पेश की है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि अफगानिस्तान में मानवीय आपदा आने वाली है। उन्होंने कहा, लगभग आधी आबादी को मानवीय सहायता की जरूरत है। तीन में से एक को नहीं पता कि उनका अगले वक्त का भोजन कहां से आएगा। अब पहले से कहीं ज्यादा अफगान बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन और एकजुटता की जरूरत है।

अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को झटका लगा है, क्योंकि देश को मिलने वाली विदेशी फंड सहायता कम होने लगी है। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने युद्धग्रस्त देश के लिए अपने वित्त में कटौती की है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस बात पर बहस कर रहा है कि तालिबान सरकार को मान्यता दी जाए या नहीं।

आईएमएफ ने विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) भंडार के देश के हिस्से सहित अपने संसाधनों तक अफगानिस्तान की पहुंच रोक दी है। विश्व बैंक ने अफगानिस्तान की विशेष रूप से महिलाओं के लिए विकास की संभावनाओं और निलंबित सहायता संवितरण पर चिंता व्यक्त की है। विश्व बैंक की सहायता प्रतिबद्धता 5.3 अरब डॉलर की है। अब, देश आर्थिक पतन की ओर अग्रसर है, संघर्ष की वित्तीय स्थिति, बंद पड़ी विदेशी मदद और तालिबान द्वारा वसूली रोडमैप की कमी के कारण लोगों का भविष्य अंधकार में है।

विदेशी फंडिंग के अभाव में सबसे गंभीर चिंता देश में तेजी से घट रहे खाद्य भंडार को लेकर है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सितंबर के अंत तक अफगान लोगों के लिए खाद्य आपूर्ति समाप्त हो जाएगी। देश में करीब 1.4 करोड़ लोग भीषण भूख से बेहाल हैं। अफगानिस्तान में विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के निदेशक मैरी-एलेन मैकग्रार्टी ने कहा, आज हमारी आंखों के सामने अविश्वसनीय अनुपात में मानवीय संकट सामने आ रहा है। डब्ल्यूएफपी ने अफगानिस्तान में सर्दी शुरू होते ही भोजन की गंभीर कमी की चेतावनी दी है।

अफगानिस्तान में डब्ल्यूएफपी के उप देश निदेशक एंड्रयू पैटरसन ने कहा, सर्दी आ रही है। हम दुर्बल मौसम में जा रहे हैं और कई अफगान सड़कें बर्फ से ढकी होंगी। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएफपी ने अब तक देश के लिए लगभग 27,000 मीट्रिक टन भोजन की खरीद की है।

उन्होंने कहा, दिसंबर के अंत तक अफगान लोगों तक पहुंचाने के लिए हमें और 54,000 मीट्रिक टन भोजन की आवश्यकता है। हम सितंबर तक उन्हें भोजन की पहुंच से दूर जाते देख सकते हैं। अफगानिस्तान में इस साल सूखा पड़ा है, जिसके कारण घरेलू खाद्य उत्पादन में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। इससे खाद्य कीमतों ने आसमान छू लिया है। गेहूं की कीमतों में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि कई आवश्यक राशन वस्तुओं को आयात और उच्च दरों पर खरीदा जाना है।

यह देश में बाल कुपोषण को बढ़ा रहा है, जहां राजनीतिक और आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। इसके अलावा, काबुल हवाई अड्डे पर कुपोषण किट सहित प्राथमिक चिकित्सा की आपूर्ति रुकी हुई है। अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के उप विशेष प्रतिनिधि और मानवीय समन्वयक रमीज अलकबरोव ने कहा कि पांच वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे गंभीर कुपोषण का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लाखों अफगान भुखमरी के खतरे में हैं।

अलकबरोव ने कहा, आधे से अधिक अफगान बच्चे नहीं जानते कि वे आज रात भोजन करेंगे या नहीं। यह उस स्थिति की वास्तविकता है जिसका हम जमीन पर सामना कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर लोगों के बीच दहशत भी बनी हुई है, क्योंकि दो सप्ताह पहले तालिबान के अधिग्रहण के बाद से बैंक और सरकारी कार्यालय बंद हैं। बैंकों के बाहर नकदी की तंगी और परेशान लोगों की कतारें लगी हुई हैं। लंदन में अफगान दूतावास में व्यापार और आर्थिक सलाहकार गजल गिलानी ने कहा, अफगानिस्तान की बैंकिंग प्रणाली अब चरमरा गई है और लोगों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं।

अब अमेरिका भी अफगानिस्तान से चला गया है और इस बीच विश्व बैंक और आईएमएफ ने भी वित्तीय सहायता निलंबित कर दी है, जिससे आर्थिक संकट और गहरा गया है। इसके अलावा यूरोपीय संघ और जर्मनी ने भी अफगानिस्तान के साथ आर्थिक संबंध तोड़ लिए हैं। देश की बीमार अर्थव्यवस्था, घटती विदेशी मदद परेशानी का सबब बन रही है। इसके साथ ही अब तालिबान के देश पर नियंत्रण करने से अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति पहले से ही विनाशकारी आर्थिक और मानवीय संकट को और खराब करने की ओर इशारा कर रही है।

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