स्क्रैप और स्टील के कारोबार में 40 करोड़ से ज्यादा के फर्जी बिल, 20 व्यापारी घेरे में

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रायपुर। स्क्रैप और स्टील के कारोबार में 40 करोड़ से ज्यादा के फर्जी बिल पकड़े जाने के बाद इसकी जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि सीमावती राज्यों के व्यापारियों तक भी फर्जीवाड़े की आंच पहुंचने लगी है। जीएसटी टीमों ने ओडिशा, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश में भी कई जगहों पर छापे मारे हैं। इससे कई और नए चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं तथा अब तक 20 कारोबारियों की लिप्तता सामने आ चुकी है। जीएसटी विभाग ने इन सभी कारोबारियों के रिटर्न की पड़ताल भी शुरू कर दी है। इस मामले में अभी तक केवल एक कारोबारी सुभाष चौहान की गिरफ्तारी की गई है। सेंट्रल जीएसटी की टीम को इस मामले में कई नए प्रमाण मिले हैं। इसके बाद ही टीम ने अभी 20 से ज्यादा कारोबारियों की लिस्ट तैयार की है। जो इस सिंडीकेट में शामिल थे। इनमें रायगढ़, भिलाई और ओडिशा के कारोबारी शामिल हैं। इन सभी कारोबारियों के रिटर्न को खंगाला जा रहा है। जिन-जिन कंपनियों के नाम से रिटर्न दाखिल किए गए हैं। उनका भौतिक सत्यापन यानी मौके पर जाकर दफ्तर और काम की जांच की जा रही है।

विभाग के अफसरों का कहना है कि सभी तरह की जानकारी जुटाने के बाद ही इन जगहों पर छापेमारी की जाएगी। सेंट्रल जीएसटी के अफसरों की इस विस्तारित जांच से व्यापारियों में खलबली है। कई बड़े कारोबारी संगठन इन व्यापारियों के नाम की भी तलाश कर रहे हैं। गोपनीय तरीके से बन रही इस रिपोर्ट के आधार पर नए साल में कई जगहों पर एक साथ छापेमारी की तैयारी की जा रही है। सेंट्रल जीएसटी अफसरों की जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट यानी जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के बाद टैक्स का हिस्सा वापस पाने के लिए फर्जी और बोगस कंपनियां बनाई जा रही है। इन कंपनियों से सबसे ज्यादा ऐसे ठेकेदार जो सरकारी निर्माण काम सबसे ज्यादा लेते हैं, रियल एस्टेट के बिल्डर और स्पंज, मिनी स्टील और रोलिंग मिल के उद्योगपति फर्जी बिल लेते हैं। इन बिलों को रिटर्न में दाखिल कर इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त किया जाता है, जो लाखों में होता है। इन बिल के बदले पांच फीसदी की रकम बिल बनाने वालों को दी जाती है।

सभी बड़े कारोबारियों को केंद्र सरकार के नियम के अनुसार ई-वे बिल जनरेट करना होता है। राज्य के अंदर या बाहर माल बिना ई-वे बिल के नहीं भेजा जा सकता है। इसके अलावा ठेकेदारों को सरकारी काम करने के बाद गिट्‌टी, रेत, ईंटा, सीमेंट का जीएसटी वाला बिल जमा करना होता है। निर्माण काम में ठेकेदार इन मटेरियल का उपयोग कम करता है। इसलिए कॉस्ट दिखाने के लिए फर्जी बिल जनरेट करवाता है। इसी तरह रियल एस्टेट के बिल्डर भी निर्माण काम में ज्यादा खर्चा दिखाने के लिए इस तरह के फर्जी बिलों की खरीदी करते हैं। ऐसे बिल जनरेट करने के लिए सिंडीकेट फर्जी कंपनियां बनाते हैं।