अस्पताल की अंधेरगर्दी: मौत के बाद भी कोरोना का इलाज, बेटे ने RTI से निकाली जानकारी तो हुआ खुलासा
बिलासपुर। डायबिटीज मरीज की कोरोना संक्रमण के इलाज के दौरान लापरवाही के चलते मौत हो गई।पिता की मौत के बाद जब बेटे ने RTI (सूचना के अधिकार कानून) लगाई तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। दस्तावेजों से पता चला कि मरीज की मौत के बाद भी उन्हें दवाइयां मुहैया कराई गईं। इसके बाद सिविल लाइन CSP ने मेडिको लीगल केस बताकर मामले की जांच के लिए टीम गठित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखा है। मामला व्यापार विहार स्थित महादेव अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ है।
रतनपुर के भेड़ीमुड़ा निवासी विजय कुमार तिवारी (64) शिक्षा विभाग के रिटायर्ड शिक्षक थे। उनके बेटे प्रेम प्रकाश तिवारी ने बताया कि वे शुगर के मरीज थे। उन्होंने कोरोना वैक्सीन का दोनों डोज लगवा लिया था। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 26 अप्रैल 2021 को उन्हें खांसी आने लगी। तब उनका सिटी स्कैन कराया गया। इसमें उनके कोरोना संक्रमित होने की आशंका जताई गई। इसके बाद उन्हें 27 अप्रैल को महादेव अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल प्रबंधन को बताया गया था कि उनकी कोविड जांच नहीं हुई और RT-PCR जांच कराने की जरूरत है। आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन ने सीधे उनका कोरोना का इलाज शुरू कर दिया। इस दौरान 4 मई की शाम 7.30 बजे उनकी मौत हो गई। इसके बाद से वह दस्तावेज जुटाकर शिकायत लेकर भटक रहा है। लेकिन, अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
पिता के अस्पताल में भर्ती रहते और मौत के बाद प्रेम प्रकाश ने उनके इलाज की परची सहित अन्य दस्तावेज जुटाए। उनका आरोप है कि उनके पिता शुगर के मरीज थे। इसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने उन्हें शुगर की दवाइयां नहीं दी। इसके चलते उनका शुगर बढ़ गया और वे कोमा में चले गए। उन्होंने अपने पिता के इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। प्रेम प्रकाश ने सूचना के अधिकार कानून के तहत भी अस्पताल प्रबंधन से दस्तावेज हासिल किया। इसके साथ ही वह पिता के इलाज के दौरान डॉक्टर की फाइल का भी फोटो खींच लिया था। इन दस्तावेजों में कई तरह की गड़बड़ियां सामने आई है। अस्पताल प्रबंधन ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार मरीज की मौत के बाद भी दवाइयां दिए जाने का उल्लेख है।
प्रेम प्रकाश ने जो दस्तावेज जुटाए हैं उसमें अस्पताल प्रबंधन ने मरीज को 19 हजार 135 रुपए की दवाइयां मुफ्त में देने का उल्लेख किया है। जबकि, मरीज के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान सुबह शाम लगाने के लिए जिन दवाइयां का बिल बनाया गया है। उसमें मरीज की मौत होने के बाद भी खरीदी करने का उल्लेख है। ऐसे में बची हुई दवाइयां मरीज के परिजन को वापस करना था या फिर बिल में कटौती करना था। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया है। केंद्र और राज्य शासन ने जो गाइडलाइन जारी किया है उसके अनुसार सिटी स्कैन जांच से कोरोना की पुष्टि नहीं की जा सकती। इसके लिए RT-PCR जांच जरूरी है। लेकिन, इस मामले में मरीज की RT-PCR जांच के बिना ही कोरोना का इलाज कर दिया गया है।