मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भी नहीं सुनी साद ने
अयोध्या। पिछले चार दिनों में देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों ने सरकारों की टेंशन बढ़ा दी है। पता चला है कि मामलों में अचानक आई इस तेजी का कनेक्शन तबलीगी जमात से है। इसमें सबसे बड़ा रोल तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद कंधलावी को बताया जा रहा है। साद के एक फैसले ने नई मुसीबत खड़ा कर दी और अब देश मुश्किलों से जूझ रहा है। साद ने कथित रूप से कई वरिष्ठ मौलवियों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों की सलाह और अनुरोधों को भी नहीं सुना, जिन्होंने मार्च 2020 के निजामुद्दीन मरकज की बैठक को रद्द करने को कहा था। इन लोगों ने भी कोविड-19 के फैलने के चलते ही बैठक निरस्त करने को कहा था। मौलाना साद के अडि़य़ल रवैये ने उनके ऊपर अंधविश्वास करने वाले सैकड़ों अनुयायियों का जीवन खतरे में तो डाला ही साथ ही उन्होंने कई मुस्लिम सदस्यों की छवि को भी धूमिल किया। मरकज में भाग लेने वालों में कई को कोरोना के लक्षण थे और उन्हें दूसरे लोगों के बीच छोड़ दिया गया। वहीं साद अपने कुछ मुशीरों (सलाहकारों) के साथ छिपता रहता है। देश के सभी कोरोना मामलों का 30 फीसदी जमात से जुड़े हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा लगभग 50 प्रतिशत तक का है।
एक दूसरे गुट ने रद्द कर दिया था कार्यक्रम
तबलीगी जमात का एक और गुट शुरा-ए-जमात है, जिसका मुख्यालय तुर्कमान गेट दिल्ली में है। उन्होंने कोरोनो वायरस के प्रकोप के तुरंत बाद सभी कार्यक्रमों को रद्द कर दिया था जबकि मौलाना साद ने अपने निर्धारित कार्यक्रम को जारी रखने के लिए जोर दिया। यहां उसने अपना प्रचार किया और मस्जिद में सबसे अच्छी मौत जैसा उपदेश भी लोगों को दिया।
तीन दिन तेजी से आगे बढ़ा कोरोना
रोना वायरस के मामले तबलीगी जमात के बाद अचानक तेजी से बढ़े हैं। बैठक के बाद 4.1 दिनों में भारत में कोविड-19 मामले दोगुने हो रहे हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार अगर जमातियों में कोरोना वायरस न होता तो इतने केस 7.4 दिनों में सामने आते जो 4 दिनों में सामने आए हैं।