तेल का निकला तेल, माइनस में पहुंची कीमत

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अमेरिका में ओवरफ्लो की स्थिति के चलते गिरी कीमत

नई दिल्ली। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के लिए सोमवार अब तक का सबसे खराब दिन रहा। कच्चे तेल की कीमतों में इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली। डब्ल्यूटीआई का वायदा भाव सोमवार को -3.70 प्रति बैरल के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। ऐसा कच्चे तेल की मांग में आई भारी कमी की वजह से हुआ। दुनिया इस समय कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना से बचने के लिए लॉकडाउन घोषित है। लॉकडाउन की वजह से फैक्ट्रियां बंद हैं और यातायात सुविधाएं भी बंद हैं। इसलिए दुनिया भर में तेल की खपत में कमी की वजह से कच्चे तेल की मांग में भी भारी कमी आई है।

अमेरिका में भंडार क्षमता से अधिक

दरअसल, अमेरिका के पास एक तरह से कच्चे तेल का भंडार क्षमता से अधिक हो चुका है। वहां स्टोरेज सुविधाएं अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुंच चुकी हैं। एस-एंड-पी ग्लोबल प्लैट्स के मुख्य विश्लेषक क्रिस एम. के अनुसार, तीन सप्ताह के भीतर कच्चे तेल के सभी टैंक भर जाएंगे। ऐसे में आगे तेल उत्पादन के लिए जरूरी है कि मौजूदा भंडार को खाली किया जाए।

तेल रखने की जगह नहीं

एक तरफ तो अमेरिका के पास तेल रखने की जगह नहीं बच रही है। दूसरी तरफ कोरोना वायरस संकट के कारण मांग घटने से कोई व्यापारी फिलहाल कच्चा तेल खरीदकर उसे अपने पास रखने की स्थिति में नहीं है। जिस वजह से दोपहर बाद के कारोबार में वॉल स्ट्रीट में शेयर भी लुढ़क गए। एस-एंड-पी 500 में 0.9 प्रतिशत की गिरावट आई। लेकिन सबसे ज्यादा ड्रामा कच्चा तेल के बाजार में हुआ। जहां मई डिलीवरी अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत शून्य से नीचे यानी माइनस 3.70 डॉलर/बैरल पहुंच गई। ऐसा पहली मर्तबा हुआ है जब अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत निगेटिव में चली गई हो।

भारी पड़ रही मांग में गिरावट

कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए दुनियाभर में लॉकडाउन और यात्रा पर पाबंदी चल रही है। इसके कारण क्रूड की मांग में भारी गिरावट आई है। सऊदी अरब और रूस के बीच प्राइस वॉर शुरू होने से तेल की कीमत गिरावट और गहरा गई। हालांकि, इस महीने के शुरू में दोनों देशों तथा कुछ अन्य देशों ने मिलकर तेल की कीमत बढ़ाने के लिए उत्पादन में करीब 1 करोड़ बैरल रोजाना की कटौती करने का फैसला किया, लेकिन कीमत में गिरावट जारी है। विश्लेषकों का कहना है कि मांग में जितनी गिरावट आई है, उत्पादन उसके अनुरूप नहीं घटाया जा रहा है।

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