अस्पताल के चिकित्सक निजी नर्सिंग होम में दे रहे सेवा, केवल शासकीय चिकित्सक को मिली है निजी क्लीनिक चलाने की छूट

दुर्ग(चिन्तक)। जिला अस्पताल में कार्यरत अधिकतर शासकीय चिकित्सक शासन के नियम व कानून का सरेआम उल्लंघन कर रहे हैं। इसके साथ साथ डी.एम.एफ. फंड व संविदा पर नियुक्त चिकित्सकों का हाल भी बेहाल है। जबकि शासन चिकित्सकों को सेवा के एवज से प्रतिमाह लाखों रू. का वेतन दे रही है।

यहां गौरतलब है कि राज्य शासन के नियमानुसार केवल शासकीय चिकित्सकों को अपनी स्वयं की निजी क्लीनिक चलाने की छूट है। शासकीय चिकित्सक इसके अतिरिक्त किसी भी निजी नर्सिंग होम या डायग्नास्टि सेंटर या निजी अस्पताल में जाकर सेवा नही दे सकते।

वहीं दूसरी ओर डी.एम.एफ. फंड व संविदा में नियुक्त चिकित्सकों को निजी नर्सिंग होम डायग्नास्टि सेंटर अस्पताल जाकर सेवा देना तो दूर अपनी स्वंय की निजी क्लीनिक तक चलाने का अधिकार नही है क्योंकि शासन इन्हें लाखो रू. का वेतन दे रही है। लेकिन शासकीय डी.एम.एफ फंड व संविदा पर नियुक्त चिकित्सक नियम व कानून की सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं।

जिला अस्पताल में कार्यरत एक दर्जन से अधिक चिकित्सक दूसरे निजी अस्पताल नर्सिंंग होम व डायग्नास्टिक सेंंटर में सेवाएं दे रहे हैं। यही नही अस्पताल के कई चिकित्सकों का नाम शहर के विभिन्न अस्पताल व नर्सिंग होम में भी सूची पर दर्ज है।

उक्ताशय के संबंध में प्राप्त शिकायत के अनुसार स्त्री विभाग में कार्यरत डा. ममता पांडे, बी.आर. साहू, विनीता ध्रुर्वे मेडिसिन में डा. देवेन्द्र साहू, नेत्र रोग में डाक्टर डी.आर. कोसरिया, डा. कल्पना जैफ, रेडियोलाजी में डा.बी.पी.देवांंगन, पैथालाजी में डा. नेहा बाफना, डा. प्रवीण अग्रवाल, आर्थोपेडिक में पदस्थ विपिन जैन, दूसरे निजी अस्पताल व नर्सिंग होम में सेवाएं दे रहे हैं। जबकि इन सभी चिकित्सकों ने शासन को शपथ पत्र देकर निजी अस्पताल में सेवा नही करने का वचन दिया है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग व सिविल सर्जन द्वारा कोई कार्यवाही नही की जा रही है।

मरीजों को नही मिल पा रहा है लाभ
शासकीय चिकित्सकों के दूसरे निजी अस्पताल में सेवा देने से मरीजों को जिला अस्पताल में चिकित्सा का नि:शुल्क लाभ नही मिल पा रहा है। लाखों रू. का वेतन शासन से प्राप्त कर रहे चिकित्सकों की अस्पताल में मौजूदगी नही के बराबर रहती है। जब भी दूसरे निजी अस्पताल से इन डाक्टरों के पास फोन आता है वे अस्पताल छोड़कर चले जाते हैं। बिलासपुर में प्रशासन ने चिकित्सकों के इस रवैय्ये पर पूरी तरह से रोक लगा दी है लेकिन दुर्ग जिला प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है इस पर सबकी निगाहें केन्द्रित है।