छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची… दुर्ग से राजेन्द्र साहू, राजनांदगांव से भूपेश बघेल को टिकट..देखें संभावित लिस्ट…
रायपुर। लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारी की तस्वीर साफ करने के लिए कांग्रेस की पहली केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) की बैठक गुरुवार को समपन्न हुई। बैठक में लोकसभा की 100 से 125 सीटों को लेकर चर्चा की गई। कहा जा रहा है कि दक्षिण के राज्यों के अलावा, यूपी की कुछ सीटों, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड की सीटों के लिए नामों का अयलान आज-कल में हो सकता हैं। वही इस बैठक में छत्तीसगढ़ को लेकर विशेष चर्चा हुई। प्रदेश के 11 में से 6 सीटों पर नामों को लेकर सहमति लगभग बन चुकी हैं। पिछले चुनाव में गांधी परिवार की परंपरागत अमेठी से चुनाव हारने वाले राहुल गांधी का नाम इसी सीट से फायनल होने की खबर है। यदि ऐसा होता है तो उनका लगातार तीसरी बार केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से सामना होगा। पिछली बार राहुल गांधी यहां से 55 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए थे। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राहुल का नाम अमेठी के साथ ही वायनाड से भी तय हुआ है। वर्तमान में राहुल वायनाड से ही सांसद हैं।
भूपेश को नांदगांव से टिकट
रायपुर में प्रदेश चुनाव समिति की हुई बैठक में जब प्रत्याशियों के नाम प्रारंभिक रूप से सामने आए तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी चुनाव लड़वाने की बात कही गई। हालांकि बघेल ने चुनाव लडऩे की बजाए घूम-घूमकर प्रचार करने की बात कही थी। बावजूद इसके उनके नाम की चर्चा लगातार होती रही। अब खबर यह है कि केन्द्रीय चुनाव समिति ने उनका नाम राजनांदगांव से तय कर दिया है। इस सीट से वर्तमान में भाजपा के संतोष पाण्डे सांसद हैं। पार्टी ने उन्हें दोबारा प्रत्याशी घोषित कर दिया है। ऐसे में राजनांदगांव में संतोष पाण्डे और भूपेश बघेल का आमना-सामना होना तय हो गया है। राजनांदगांव जिले की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से 6 में से 5 सीटों पर भाजपा को पराजय मिली थी। भाजपा सिर्फ राजनांदगांव सीट पर ही जीतने में कामयाब रही। इस सीट से डॉ. रमन सिंह लगातार विधायक रहे हैं। वर्तमान में वे लोकसभा के अध्यक्ष हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए राजनांदगांव लोकसभा की राह आसान नहीं रहने वाली।
विजय के सामने होंगे राजेन्द्र
भारतीय जनता पार्टी ने दुर्ग संसदीय सीट से वर्तमान सांसद विजय बघेल को रिपीट किया है। वहीं कांग्रेस ने इस सीट से युवा नेता राजेन्द्र का नाम फायनल कर दिया है। दुर्ग के जातीय समीकरणों को देखें तो यह इलाका साहू और कर्मी बाहुल्य है। विगत 2019 के चुनाव में भाजपा ने विजय बघेल तो कांग्रेस ने प्रतिमा चंद्राकर को टिकट दिया था। दोनों ही कुर्मी समाज से आते हैं। लेकिन इस बार दुर्ग के हालात कुछ अलग नजर आ सकते हैं। दरअसल, दुर्ग संसदीय क्षेत्र में कुर्मियों के मुकाबले साहू समाज की जनसंख्या ज्यादा है। 2014 के चुनाव में जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी, तब कांग्रेस ने ताम्रध्वज साहू को मैदान में उतारा था। साहू ने भाजपा की कद्दावर नेत्री और सांसद सरोज पाण्डेय को हरा दिया था। ऐसा साहू समाज की लामबंदी के चलते हो पाया। राजेन्द्र साहू को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का करीबी माना जाता है। प्रदेश में सरकार बनने के बाद राजेन्द्र साहू को दुर्ग जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि वे ज्यादा समय तक इस पद पर नहीं रह पाए।
कोरबा में ज्योत्सना ही लीडर
कांग्रेस में आमतौर पर अपने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को बदलने का रिवाज नहीं है। इसलिए कोरबा सीट से ज्योत्सना महंत की टिकट पहले से ही तय मानी जा रही थी। हालांकि पार्टी के भीतर उनसे ज्यादा अनुभवी चरणदास महंत के नाम की भी चर्चा रही। कांग्रेस में कई सारे बड़े नेताओं ने लोकसभा चुनाव लडऩे से इनकार किया था। उनमें चरणदास महंत भी शामिल हैं। शायद यही वजह है कि उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत को पार्टी ने एक बार फिर रिपीट किया है। भाजपा ने इस सीट से पहले ही कद्दावर नेत्री सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बनाया है। सरोज दुर्ग जिले से हैं और वहां वे दो बार महापौर, 1 बार विधायक और 1-1 बार लोकसभा और राज्यसभा से सांसद रह चुकीं हैं। उनका भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में भी खासा दखल है। ऐसे में इस बार कोरबा क्षेत्र में दिलचस्प चुनावी नजारा देखने को मिल सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरोज पाण्डेय, कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत के लिए खासी चुनौती पेश करेंगी। माना जा रहा है कि इस बार यहां नतीजे कुछ भी हो सकते हैं।
जांजगीर और सरगुजा भी तय
सीईसी की पहली ही बैठक में कांग्रेस ने जिन 5 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित किए हैं, उनमें जांजगीर और सरगुजा भी शामिल है। जांजगीर सीट से पूर्व मंत्री शिव डहरिया का नाम तय हो गया है। डहरिया ने भी लोकसभा चुनाव लडऩे के प्रति अनिच्छा जाहिर की थी। लेकिन बड़े नेताओं को चुनाव लड़वाने की कांग्रेस की नई नीति के चलते उन्हें भी मैदान में उतार दिया गया। हालिया सम्पन्न विधानसभा चुनाव में शिव डहरिया को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। कहा जा रहा है कि देशभर में मोदी लहर के चलते कांग्रेस के बड़े चेहरे चुनाव नहीं लडऩा चाह रहे हैं। उन्हें डर है कि पराजय की स्थिति में उनका राजनीतिक जीवन ही समाप्त हो सकता है। यही वजह है कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने खुलकर चुनाव नहीं लडऩे की बात कही थी। जिन 6 सीटों पर सीईसी ने प्रत्याशी तय नहीं किए हैं, उनके लिए पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव, पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू समेत कई बड़े नेताओं के नाम हैं। ताम्रध्वज साहू का नाम महासमुंद सीट के लिए चलने की भी खबर है।
जिन्होंने मना किया, उन्हें ही उतार दिया
लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा पीएम मोदी के चेहरे पर 400 सीट के लक्ष्य के साथ मैदान में उतर चुकी है। भाजपा का चेहरा पीएम मोदी है। 10 साल की मोदी सरकार में सांसदों का क्षेत्र में कोई प्रभाव नहीं रहा है। ऐसे में कांग्रेस अपने कद्दावर नेताओं को उतार कर चुनाव को दिलचस्प बनाना चाहती है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का ये भी मानना है कि कांगेस के बड़े नेता चुनाव लड़ेंगे तो भाजपा को बहुमत के आंकड़े से नीचे में रखा जा सकता है। यही वजह है कि कांग्रेस आधे नए चेहरे तो आधे कद्दावर नेता को मैदान में उतारने जा रही है। छत्तीसगढ़ में लोकसभा की कुल 11 सीटें हैं। भाजपा ने इस बार सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनने के बाद से अब तक कांग्रेस यहां से 2 से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई है। पिछले चुनाव में भी प्रदेश में सत्ता रहने के बावजूद महज 2 ही सीटें मिली थी। इनमें एक सीट कोरबा और दूसरी बस्तर की थी। कांग्रेस अपने बड़े नेताओं को मैदान में उतारकर यह बताने की कोशिश में है कि भाजपा के लिए 11 सीटें जीतने का ख्वाब उतना आसान नहीं है।