सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी: जमानत देने के बाद आदेश रद्द भी कर सकती है अदालत
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि आरोपी के खिलाफ लगे आरोपों की प्रकृति गंभीर है, तो अदालत जमानत का अपना आदेश भी रद्द कर सकती है। भले ही आरोपी ने जमानत का दुरुपयोग न किया हो। शीर्ष अदालत ने हत्या के मामले में 4 आरोपियों को हाईकोर्ट से मिली जमानत को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि ‘कानून का यह स्थापित मानदंड है कि आरोपी को एक बार जमानत मिल जाने के बाद उसे यांत्रिक (सामान्य) तरीके से रद्द नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, पीठ ने कहा कि जमानत का एक अनुचित आदेश हमेशा ऊपरी अदालत द्वारा हस्तक्षेप के लिए खुला रहता है।
शीर्ष अदालत ने फैसले कहा कि हाईकोर्ट द्वारा भी जमानत रद्द की जा सकती है यदि यह पता चलता है कि निचली अदालतों ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध प्रासंगिक सामग्री को नजरअंदाज किया है या अपराध की गंभीरता या ऐसे आदेश के परिणामस्वरूप समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर ध्यान नहीं दिया। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दोहरे हत्याकांड में आरोपियों को दी गई जमानत रद्द कर दी। साथ ही, आरोपियों को दो सप्ताह में जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।
जमानत देते समय इन कारकों का ध्याना रखना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पारित फैसले में कहा कि ‘आरोपियों को जमानत देने का सवाल तय करते समय, अदालतों को आरोपी के खिलाफ लगे आरोपों की प्रकृति जैसे प्रासंगिक कारकों पर विचार करना चाहिए। पीठ ने कहा कि आरोपी के खिलाफ जिस तरीके से अपराध करने का आरोप लगाया गया है, अपराध की गंभीरता, आरोपी की भूमिका, आरोपी का आपराधिक इतिहास, गवाहों व साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने और अपराध दोहराने की संभावना, जमानत पर रिहा किए जाने की स्थिति में आरोपी के गैर मौजूदगी की संभावना, अदालती कार्यवाही में बाधा डालने और न्याय की अदालतों से बचने की संभावना जैसे पहलुओं पर विचार करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने तथ्यों को दरकिनार किया
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो हाईकोर्ट ने आरोपियों को जमानत देते समय उन तथ्यों को दरकिनार कर दिया था, अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए थे कि कैसे आरोपी मामले में शामिल हैं। पीठ ने कहा कि इसके अलावा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हाईकोर्ट ने आरोपियों द्वारा किए गए ऐसे गंभीर अपराध के लिए उनकी न्यायिक हिरासत की अवधि नजरअंदाज कर दी है।
यूपी सरकार की दलील
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था कि मामले के आरोपी वसीम, नाजिम, असलम और अबुबकर तीन साल से कम समय तक ही जेल में बिताया है, जबकि उनके (आरोपियों) के खिलाफ दोहरे हत्याकांड जैसे गंभीर अपराध में शामिल होने का आरोप है। इसके साथ ही, पीठ से आरोपियों को मिली जमानत रद्द कर दिया और उनको 2 सप्ताह के भीतर जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है। यह मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ जिला मुंडाली थाना क्षेत्र का है। पेश मामले में 19 मई, 2020 को घटित इस घटना में शिकायतकर्ता अजवार के दो बेटे की हत्या कर दी गई थी।