महापौर का चयन अब पार्षद नही जनता के वोट से होगा, भाजपा सरकार ने व्यवस्था बदलने दिए संकेत, पूर्व सरकार का बदलेगा पेटर्न
दुर्ग (चिन्तक)। नगरीय निकाय के चुनाव में निगम का महापौर पालिका व नगर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अब जनता करेगी। राज्य में सत्तासीन भाजपा सरकार ने पार्षदो के द्वारा चुने जाने वाली व्यवस्था में बदलाव के संकेत दिए है। नतीजन अब नगरीय निकाय के मुखिया का चुनाव पार्षद नही करेंगे। क्षेत्र की जनता मतदान से चुनेगी।
यहां गौरतलब है कि भाजपा सरकार ने पार्षदों के द्वारा महापौर और अध्यक्ष को चुनने वाली व्यवस्था को खत्म कर दिया था। दुर्ग में नगर निगम के महापौर का चुनाव चार बार जनता के द्वारा किया गया। जिसने लगातार दो बार सरोज पंाडे महापौर चुनी गई। इसके बाद डा. शिव कुमार तमेर व चंद्रिका चंद्राकर महापौर निर्वाचित हुई।
वर्ष 2018 में राज्य में जब कांग्रेस की सरकार सत्तासीन हुई तब ब्यवस्था को बदल दिया गया और महापौर व अध्यक्ष का चुनाव पार्षदो के द्वारा किया गया। दुर्ग निगम में महापौैर धीरज बाकलीवाल चुने गये। अब राज्य में भाजपा की सरकार सत्तासीन है।
भाजपा की सरकार बनने के बाद ही नगरीय निकाय के चुनाव में व्यवस्था में बदलाव के कयास लगने लगे थे लेकिन पिछले कुछ दिन पूर्व उप मुख्यमंत्री अरूण साव व विजय शर्मा द्वारा व्यवस्था में बदलाव पर बयान दिए जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अगले नगरीय निकाय चुनाव में पूर्व सरकार का पेटर्न बदल जाएगा।
दुर्ग नगर निगम की महापौर परिषद का कार्यकाल दिसंबर 2024 में समाप्त हो रहा है। साल के आखरी महीने में नई परिषद का चुनाव होगा। इस लिहाज से यह स्पष्ट हो गया है कि महापौर का चुनाव दुर्ग शहर के साठ वार्ड के मतदाता करेंगे।
जनता से चुना गया महापौर व अध्यक्ष होता है पावर फुल
जनता के द्वारा मतदान से चुना गया महापौर व अध्यक्ष पावर फुल होता है। वह बिना किसी दबाव के विवेक से निर्णय लेकर विकास करता है। इस पर अविश्वास प्रस्ताव का भी भय नही रहता। जनता के द्वारा चुने गये महापौर और अध्यक्ष को क्षेत्र की तीन चौथाई जनता मतदान करके हटा सकती है। यह प्रक्रिया जटिल है परिणाम स्वरूप अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति नही बनती।
पार्षदो के चयन से बन जाता है कठपुतली
पार्षदों के द्वारा जब महापौर या अध्यक्ष का चुनाव होता है तब उसे पार्षदों के दबाव में काम करना पड़ता है। पार्षद समय समय पर अविश्वास प्रस्ताव के खतरे का भय दिखाकर अपने हिसाब से काम कराते है जिसके कारण उसकी स्थिति कठपुतली के जैसी हो जाती है। पार्षदों के द्वारा चुनने की व्यवस्था पर कतिपय पार्षदों का कहना है कि इससे वे अपने वार्ड का विकास कराने सक्षम बन जाते है। जनता के द्वारा चुना गया महापौर उनकी नही सुनता। कुछ भाजपा पार्षदों की राय है कि व्यवस्था में बदलाव नही होना चाहिए।