पर्यावरण को बचाने के उत्साह में सुप्रीम कोर्ट अपने रास्ते से भटक गया – मुकुल रोहतगी
नई दिल्ली । पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा है कि कोयला ब्लॉकों, टूजी स्पेक्ट्रम लाइसेंस, कर्नाटक और गोवा में लौह अयस्क खनन के सभी आवंटन रद्द करते हुए पर्यावरण बचाने के उत्साह में सुप्रीम कोर्ट अपने रास्ते से भटक गया जिससे देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका लगा। उन्होंने कॉलेजियम व्यवस्था की आलोचना करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट को न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए एकमात्र निकाय होने के अधिकार को त्याग देना चाहिए।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई कि आने वाले दिनों में और अधिक पीठ मामलों की सुनवाई करेंगे। स्वतंत्रता के बाद उच्चतम न्यायालय के बड़े फैसलों के बारे में रोहतगी ने कहा, ”पर्यावरण संरक्षण के अपने उत्साह, सरकार के आदेशों और काम नहीं करने की व्यवस्था को दुरूस्त करने के अपने उत्साह में सुप्रीम कोर्ट ने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका दिया। इस तरह का एक उदाहरण देश भर में कोयला खदानों के आवंटन को रद्द करना है।”
रोहतगी ने कहा, ”अदालत ने जब कोयला ब्लॉक, कोयला खदान के सभी आवंटनों को रद्द कर दिया तो लाखों- करोड़ों के विदेशी निवेश, लाखों-करोड़ों के उपकरण, आधारभूत ढांचे और लाखों नौकरियां चली गईं, क्योंकि सरकार ने कानून का सही तरीके से पालन नहीं किया था।” उन्होंने कहा, ”यही बात टूजी मामले में हुई। देश को काफी नुकसान हुआ। गोवा और कर्नाटक में लौह अयस्क खदानों को रद्द करना भी इसी तरह का एक और मामला है। अदालत को इस तरह का फैसला देने से पहले आर्थिक प्रभाव देखना चाहिए था। उच्चतम न्यायालय रास्ता भटक गया था।”
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जिस तरीके से न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है उस पर नाखुशी जताते हुए उन्होंने कहा कि संविधान के तहत उनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा होनी चाहिए ”जिसका मतलब है कि उस समय की सरकार द्वारा क्योंकि राष्ट्रपति सरकार की इच्छा से निर्देशित होते हैं।” रोहतगी ने कहा, ”लेकिन दुर्भाग्य से हाल में दिए गए एक फैसले के माध्यम से (एनजेएसी फैसला) अदालत ने इस सिद्धांत का पालन नहीं किया कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगी और वह प्रधान न्यायाधीश से सलाह लेगी।”
उन्होंने कहा, ”उच्चतम न्यायालय को न्यायाधीशों की नियुक्ति का एकमात्र निकाय होने के अधिकार को छोड़ देना चाहिए। किसी भी देश में न्यायाधीश खुद को नियुक्त नहीं करते। नये खून, नयी दूरदृष्टि वाले, नए विचार वाली व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पता लगाया जा सके कि कौन अच्छे न्यायाधीश हैं।”रोहतगी के मुताबिक उच्चतम न्यायालय में नियुक्तियां योग्यता के आधार पर होनी चाहिए जहां वरिष्ठता का ख्याल रखा जा सकता है लेकिन ऐसा भी नहीं हो कि वरिष्ठता के कारण योग्यता को नजरअंदाज किया जाए।”
मोदी सरकार ने रोहतगी को 19 जून 2014 को अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया था और वह 18 जून 2017 तक इस पद पर रहे। उन्होंने ‘सुप्रीम कोर्ट की 1950 से लेकर अब तक की यात्रा’ विषय पर प्रोफेसर एन आर माधव मेनन स्मारक व्याख्यान के दौरान यह बात कही। कार्यक्रम का आयोजन अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद ने किया था जो आरएसएस से जुड़ा वकीलों का संगठन है।