हाईकोर्ट ने दुर्ग डीजे के फैसले की कड़ी टिप्पणी की, फैसले को कर दिया खारिज
बिलासपुर| जिला एवं सत्र न्यायालय दुर्ग में स्टेनोग्राफर हिन्दी के पद पर कार्यरत एक कम्रचारी को डीजे दुर्ग ने गोपनीयता भंग करने और अनुशासनहीनता के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। डीजे के आदेश को चुनौती देते हुए स्टेनोग्राफर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस पीपी साहू के बेंच में हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दुर्ग डीजे के फैसले की कड़ी टिप्पणी करते हुए आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को सेवा में वापस लेने व बकाया वेतन का 50 प्रतिशत राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है।
बता दें, दिशान सिंह डहरिया ने जिला न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द करने और सेवा में वापसी की गुहार लगाई थी। याचिका के मुताबिक जिला एवं सत्र न्यायालय दुर्ग में 11 अन्य उम्मीदवारों के साथ आशुलिपिक हिन्दी के पद पर उसकी नियुक्ति की गई थी। तृतीय सिविल न्यायाधीश वर्ग-1 के न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के कोर्ट में पदस्थापना की गई थी।
आरोप है कि उसने अपने अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया है। जिसकी शिकायत 30 जनवरी 2019 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश से शिकायत की गई। दुर्ग जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने 5 अगस्त 2019 को मेमो जारी किया। याचिकाकर्ता पर आरोप है कि नोटिस की फोटोकापी उसने सीधे छत्तीसगढ़ हाईकेर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेज दिया।
छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण नियम) 1965 नियम के 3(3)(डी)(x) और छत्तीसगढ़ सिविल सेवा के नियम 10 के तहत दंडनीय अपराध है। कदाचरण का आरोप लगाते हुए शोकाज नोटिस जारी कर तीन दिन के भीतर जवाब पेश करने निर्देश दिया गया। नोटिस में इस बार का जवाब देने कहा गया कि रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय को सीधे शिकायत किस आधार पर की। समुचित जवाब ना आने के कारण बताते हुए डीजे दुर्ग ने उसकी सेवा समाप्त कर दी।
याचिकाकर्ता ने अपने जवाब में कहा कि शिकायत की एक प्रति संघ के एक पदाधिकारी के पास है। शिकायत की फोटोकापी कराने के बाद उसने उसे संघ के व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल कर दिया। व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल करते समय ना तो उसकी सहमति ली गई और ना ही यह सब उसकी जानकारी में था। शपथ पत्र के साथ जवाब पेश किया गया और प्रकरण को बंद करने की मांग की। 24 दिसंबर 2019 जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता की सेवाओं की आवश्यकता ना होने की बात कहते हुए सेवा समाप्ति का आदेश जारी कर दिया। आदेश के साथ ही एक महीने का वेतन भुगतान का निर्देश भी दिया।