पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर को जिला कोर्ट से झटका, अग्रिम जमानत खारिज…
रायपुर। पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर की अग्रिम जमानत आवेदन को जिला एवं सत्र न्यायाधीश बालोद ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि मामला गंभीर प्रकृति का है तथा विवेचना के प्रारंभिक स्तर पर है, आवेदक को अग्रिम जमानत का लाभ दिये जाने पर साक्ष्य को प्रभावित किये जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, अतः मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए आवेदक को अग्रिम जमानत का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। फलतः मोहम्मद अकबर की ओर से प्रस्तुत आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 482 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता निरस्त किया जाता है।
कोर्ट ने अग्रिम जमानत आवेदन को खारिज करते हुए अपने फैसले में लिखा है कि केस डायरी के अवलोकन से दर्शित है कि जब्ती पत्रक में उल्लेख किया गया है कि मृतक के फुलफेंट के दाहिनें जेब में सुसाईड नोट मिला, जिसमें मृतक के मौत के लिए हरेन्द्र नेताम, मदार खान उर्फ सलीम खान, प्रदीप ठाकुर, एवं पूर्व वन मंत्री मोहम्मद अकबर को जिम्मेदार होना बताया गया है, अभिलेख पर आई अन्य साक्ष्य से भी प्रथम दृष्टया आवेदक की संलिप्ता दर्शित होती है, मामले में विवेचना शेष है, आवेदक की ओर से प्रस्तुत न्याय- दृष्टांत के तथ्य एवं परिस्थितिया वर्तमान मामले से भिन्न होने से उनका लाभ आवेदन को प्रदान नहीं किया जा सकता है।
शपथ पत्र के साथ कोर्ट को जानकारी दी है कि उसने इसके पूर्व किसी भी न्यायालय एवं शीर्ष न्यायालय में सक्षम जमानत के लिए कोई भी आवेदन प्रस्तुत नहीं किया है ना ही लंबित है और ना ही खारिज हुआ। वह एक सम्मानीय नागरिक हैं और छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे हैं। आवेदक का इस प्रकरण में नाम केवल मृतक के सुसाइड नोट में शामिल होने के कारण उन्हें इस गंभीर अपराध का आरोपी बनाया गया है, जबकि इस घटना से किसी भी प्रकार या का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है। भारतीय न्याय संहिता बी.एन.एस. की धारा 108 एवं 3(5) के तहत अभियोग लगाए गए हैं। यह अभियोग मुख्यतः इस आधार पर लगाए गए हैं कि मृतक ने अपने सुसाइड नोट में आवेदक का नाम उल्लेख किया है। इस सुसाइड नोट के परिशीलन से यह स्पष्ट होता है न तो सुसाइड नोट में लिखने वाले का नाम है न ही हस्ताक्षर है और न ही उक्त नोट में तारीख या समय अंकित किया गया है। उसका न तो मृतक से कोई व्यक्तिगत संबंध रहा है और न ही व मृतक से कभी मिले हैं और न ही वे मामले में अन्य 3 आरोपियों को जानते हैं न ही आवेदक का उनसे किसी भी प्रकार का कोई संबंध है। मामले के अन्य 3 अपराधियों के विरूद्ध 08.09.2024 को एक अन्य प्रथम सूचना रिपोर्ट क्रमांक 0054/2024, धारा 420, 34 के अंतर्गत भी दर्ज की गई है जिसके परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि अन्य आरोपियों द्वारा आवेदक के नाम एवं पद का दुरुपयोग कर आमजनों से नौकरी लगाने के नाम पर ठगी की है।
उसे जानबूझकर झूठे आरोपों में फंसाया गया है, ताकि उनके नाम और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाया जा सके । पुलिस द्वारा हस्तलेखन विशेषज्ञ की राय के बिना एफआईआर दर्ज की गई है।
मृतक द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट पर न तो हस्तलेखन विशेषज्ञ की राय ली गई है और न ही उस पर तारीख या किसी तरह के पुख्ता सबूत मौजूद हैं। इसके बावजूद आवेदक के खिलाफ बिना पर्याप्त साक्ष्यों के एफआईआर दर्ज की गई है। परिवार में केवल उनके भाई हैं, उनकी कोई बहन नहीं है। ऐसे में आरोपी मदार खान को आवेदक “भांजा” का उल्लेख पूरी तरह गलत और भ्रामक हैं। आवेदक के परिवार से जुड़ा ऐसा कोई संबंध नहीं है, जिससे उन्हें इस प्रकार के आरोपों से जोड़ा जा सके।
वह एक प्रतिष्ठित राजनीतिक व्यक्ति होने के साथ-साथ समाजसेवी भी हैं। यदि उन्हें इस प्रकरण में गिरफ्तार किया जाता है, तो इससे न केवल उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति होगी, बल्कि उनकी पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन में भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । न्यायालय से निवेदन है कि उसकी प्रतिष्ठा, सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें अग्रिम जमानत का लाभ प्रदान की जाए। आवेदक न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने और अन्वेषण में पूर्ण सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है। आवेदक न्यायालय के प्रत्येक आदेशों एवं शर्तों को पालन करने को तैयार है तथा जमानत उपरांत अभियोजन साक्षियों को नहीं बहकायेंगे । उक्त आधारों पर जमानत पर रिहा किये जाने का निवेदन किया गया है।