जानिए हमारा कानून……आरोपी के पास जमानतदार नहीं होने पर कानून में क्या है प्रावधान

Hamara Kanoon : किसी आरोपी को जेल से जमानत पर रिहा होने के लिए जमानतदार देना होता है। ऐसा जमानतदार आरोपी की जमानत लेता है और यह वचन देता है कि वह आरोपी को अदालत के सामने पेश करेगा। जमानत नियम है तथा जेल अपवाद है। किसी भी व्यक्ति को जब किसी प्रकरण में अभियुक्त बनाया जाता है तो कोर्ट का प्रयास होता है कि उस व्यक्ति को विचाराधीन (Under trial) रहने तक जमानत पर छोड़ा जाए।

कभी-कभी ऐसी परिस्थितियों का जन्म होता है की अभियुक्त के पास कोई जमानतदार नहीं होता है। कोई जमानतदार नहीं होता है तथा अभियुक्त अकेला पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में अभियुक्त को कोर्ट द्वारा जमानत के आदेश दे दिए जाने के उपरांत भी कारागार में रहना होता है क्योंकि अभियुक्त को जितनी राशि के बंधपत्र पर जमानतदार सहित पेश करने को कहा जाता है वह पेश कर पाने में असमर्थ होता है।

दूर के स्थानों के रहने वाले या फिर ऐसे व्यक्ति जिनके अपने कोई मित्र और संबंधी जमानत नहीं लेते हैं तथा प्रकरण में जमानतदार नहीं बनते है उनके लिए जमानतदार प्रस्तुत करना अत्यंत कठिन होता है।

भारतीय न्याय व्यवस्था अत्यंत समृद्ध और उदार है। इस विकट परिस्थिति से निपटने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता में भी धारा 490 के अंतर्गत स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं।

जमानत के लिए गिड़गिड़ाना तथा किसी व्यक्ति से अपने प्रकरण में जमानतदार बनने हेतु निवेदन करना अपनी गरिमा एवं प्रतिष्ठा को ठेंस पहुंचाने जैसा है। यह गरिमा एवं प्रतिष्ठा किसी व्यक्ति को संविधान के अंतर्गत दिए गए मूल अधिकारों में निहित है। यदि ऐसी गरिमा और प्रतिष्ठा पर कानून के किसी नियम के कारण कोई प्रहार हो रहा है तो ऐसी परिस्थिति में व्यक्तियों के इस अधिकार को संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है तथा कोर्ट को इस बात को बढ़ावा देना चाहिए कि उन मामलों में जिनमें अभियुक्त कोई जमानतदार प्रस्तुत नहीं कर पा रहा है कोई राशि निक्षेप (डिपॉजिट) करवा ले।

BNSS की धारा 490 है। यह धारा इस बात का स्पष्ट उल्लेख कर रही है कि यदि कोई व्यक्ति मुचलके के बजाय निक्षेप देना चाहता है तो कोर्ट उसे ऐसा करने की अनुज्ञा दे सकता है।

BNSS की धारा 490 अभियुक्त को अनुज्ञा दे रही है कि वह जमानतदार सहित यह रहित बंधपत्र के बदले में कोर्ट और पुलिस अधिकारी दोनों ही के द्वारा निर्धारित रकम या सरकारी नोटों की राशि का निक्षेप कर सकता है।

इस धारा का यह अपवाद भी है कि सदाचरण के लिए बंधपत्र की दशा में यह उपबंध लागू नहीं होता है। यह एक हितकारी प्रावधान है ताकि ऐसा अभियुक्त जो उस स्थान पर अजनबी है जहां उसकी गिरफ्तारी की जा रही है स्वयं को गिरफ्तारी से बचा सकें तथा जमानतदार नहीं होने पर कोई निक्षेप (Deposit) दे सकें।

इस धारा का मुख्य उद्देश्य ऐसे अभियुक्त को रियायत प्रदान करना है जो जमानतदार प्रस्तुत करने में असमर्थ है।

इस धारा के अंतर्गत कोर्ट कोई भी ऐसी आयुक्तियुक्त राशि नहीं मांगता है जिस राशि को कोई अभियुक्त सरकारी वचन पत्र में जमा नहीं कर सकता है। किसी भी अभियुक्त की आर्थिक स्थिति को देखते हुए ही उससे सरकारी वचन पत्र में किसी राशि को जमा करने हेतु कहा जाता है।

BNSS की धारा 490 के अंतर्गत कोर्ट को यह शक्ति अपने विवेकाधिकार के अधीन प्राप्त हैं। यदि कोर्ट चाहे तो ही इस शक्ति का प्रयोग करेगा। यदि कोर्ट की दृष्टि में किसी अभियुक्त से बंधपत्र लिया जाना आवश्यक है तथा किसी अभियुक्त को बगैर जमानतदार के नहीं छोड़ा जा सकता तो कोर्ट इस धारा के अंतर्गत अभियुक्त को राहत प्रदान नहीं करता है।