मंत्री का होमवर्क नहींः जिस मामले में कलेक्टर द्वारा पहले से जांच कराई जा रही, सदन में घिरने पर फिर से कर दिया जांच का ऐलान

रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आज पहला दिन था। पहले दिन के घंटे भर के प्रश्नकाल में लगभग 45 मिनट दिवंगन नेताओं को श्रंद्धाजलि दिया गया। उसके बाद बचे 15 मिनट में दो सवाल हो पाए।

पहला सवाल बेलतरा विधानसभा के विधायक सुशांत शुक्ला ने बिलासपुर में भूमाफियाओं द्वारा सरकारी जमीनों के कब्जे का मामला जोरदार ढंग से उठाया। मंत्री के जवाब से असंतुष्ट सुशांत ने सीधा हमला बोले हुए कहा कि मंत्री जी जवाब असत्य है।

सुशांत का सवाल था, 2021 से लेकर 25 नवंबर 2024 की स्थिति में बिलासपुर में सरकारी जमीन के कब्जे की कितनी शिकायतें हुई हैं। मंत्री ने लिखित जवाब में बताया कि 563 शिकायतें मिली हैं, इनमें से 307 अदालतों में लंबित है।

इस पर सुशांत ने बिफरते हुए कहा कि मंत्री जी का जवाब असत्य है। उन्होंने धड़ाधड़ ब्लॉक वाइज सैकड़ों मामले गिना दिए।

सुशांत के सवाल पर मंत्री ने हालांकि यह कहकर बचने का प्रयास किया कि जो आंकड़े आप बता रहे, वह सवाल में नहीं है। इसके बाद विधायक धर्मजीत सिंह ने पूरक सवाल किया कि सुशांत का प्रश्न गंभीर है, आप इसकी जांच करा लिजिए।

मगर राजस्व मंत्री ना-नुकुर करते रहे। बाद में प्रेशर बढ़ने पर उन्होंने सदन में घोषणा की, कलेक्टर की अध्यक्षता में बिलासपुर में अवैध कब्जे की जांच कराई जाएगी।

मगर वास्तविकता यह है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की कलेक्टर कांफ्रेंस के बाद बिलासपुर कलेक्टर ने दो महीने पहले सीनियर अफसरों की कमेटी बनाकर जांच शुरू करवा चुके हैं।

मुख्यमंत्री ने जमीन मामलों में कलेक्टरों से प्राथमिकता के साथ कार्रवाई करने कहा था। सीएम ने जोर देकर कहा था कि भूमाफियाओं की काफी शिकायतें आ रही है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

इसके बाद बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण ने नगर निगम कमिश्नर की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर दी। इनमें बिलासपुर एसडीएम की अध्यक्षता में कमेटी बनी है। जांच रिपोर्ट के अध्ययन और परीक्षण की जिम्मेदारी एडीएम एके बनर्जी को दी है। आमतौर पर होता यह है कि विधानसभा सत्र के लिए अधिसूचना जारी होने के बाद विधायकों द्वारा जब प्रश्न लगाए जाते हैं तब विभावार सवालों के जवाब तैयार किया जाता है। जिले के कलेक्टर व विभाग प्रमुखों की यह जवाबदारी होती है कि सीएम सचिवालय के अलावा मंत्रियों के कार्यालयों को विधायकों द्वारा पूछे गए सवालों के अलावा शासन स्तर पर जिले में की जा रही कार्रवाई से अवगत कराना। ताजा मामले में जिला प्रशासन और मंत्री के कार्यालय के बीच सीधा-सीधा समन्वय व सामंजस्य का अभाव दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि जानकारी के अभाव में मंत्री सदन में ऐसे घिरे कि जवाब देते नहीं बना।

 

प्रदेश में कांग्रेस शासनकाल के दौरान शासकीय जमीनों को निजी व्यक्तियों को आवंटन के कांग्रेस सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी। दायर याचिका में राज्य शासन के नियमों की आड़ में भूमाफियाओं द्वारा करोड़ों की सरकारी जमीन को कौड़ी के मोल खरीदने का आरोप लगाते हुए बड़े पैमाने पर प्रदेशभर में शासकीय भूखंडों के बंदरबाट का आरोप लगाया था। पीआईएल पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

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