हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पाक्सो एक्ट में यौन उत्पीड़न को साबित करने के लिए शारीरिक चोट दिखाना जरुरी नहीं

बिलासपुर। नौ वर्षीय बालिका के यौन उत्पीड़न के मामले में पाक्साे एक्ट में आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जेल में बंद आरोपी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने आजीवन कारावास की सजा को 20 साल कठोर कारावास में तब्दील कर दिया है। डिवीजन बेंच ने यह भी कहा है कि पाक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न को साबित करने के लिए पीड़िता को शारीरिक चोटें दिखाने की आवश्यकता नहीं है और ना ही अनिवार्यता ही है।

घटना रायगढ़ जिले की है। मई 2020 की है। पीड़ित 9 वर्षीय बालिका अपने गांव में एक प्राथमिक विद्यालय के पास खेल रही थी। खादी वर्दी पहने अजीत सिंह पीड़िता के पास पहुंचकर पुलिस का डर दिखाया और अपने साथ चलने की बात कही। इसी बीच पीड़िता को जबरिया मोटर साइिकल में बैठाकर सुनसान खेत में ले जाकर यौन उत्पीड़न किया।

पीडिता के पिता की लिखित शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच के बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 363 (अपहरण), 365 (गलत तरीके से पीड़िता ने पहचाना ले जाने) और पॉक्सो अधिनियम की धारा (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत अपराध दर्ज किया। मामले की सुनवाई के बाद पाक्सो कोर्ट ने आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

पाक्सो कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। डिवीजन बेंच ने पॉक्सो अधिनियम की 16 की धारा की धारा 6 के तहत पाक्सो कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी है।

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