मैरिटल रेप पर ‘बेतुकी’ बात के लिए SC को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खिंचाई करनी चाहिए : पूर्व NCW चीफ

नई दिल्ली: पति द्वारा अपनी व्यस्क पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने को अपराध नहीं मानने के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले पर राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की पूर्व अध्यक्ष रेखा शर्मा ने हैरानी जताई है। एनसीडब्ल्यू की पूर्व अध्यक्ष ने बुधवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट की इस ‘बेतुकी और पूरी तरह से अस्वीकार्य’ टिप्पणी के लिए खिंचाई करनी चाहिए। उन्होंने निचली अदालतों और हाईकोर्ट के जजों से लैंगिक मामलों के प्रति संवेदनशील होने का भी आह्वान किया।

राज्यसभा सांसद रेखा शर्मा ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “बेतुकी और पूरी तरह से अस्वीकार्य। सुप्रीम कोर्ट को इस फैसले के लिए हाईकोर्ट की खिंचाई करनी चाहिए।”

इस बीच, एक प्रमुख मानवाधिकार वकील करुणा नंदी ने बताया कि मौजूदा कानून ने हाईकोर्ट के जज के हाथ बांध दिए हैं। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “जज के हाथ कानून से बंधे हुए थे। नए बीएनएस में मैरिटल रेप अपवाद पतियों को पत्नी की सहमति के बिना उसके छिद्रों में वस्तुएं और शरीर के अंग डालने की अनुमति देता है, और यह बलात्कार नहीं है। नए बीएनएस में कानून बदलाव किया जा सकता था…ऐसा नहीं किया गया। इस मैरिटल रेप अपवाद को हटाने के लिए हमारी सिविल अपील सुप्रीम कोर्ट में है।”

बता दें कि, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बीते सोमवार को दिए एक फैसले में कहा था कि पति द्वारा अपनी वयस्क पत्नी के साथ उसकी सहमति के बगैर अप्राकृतिक संबंध बनाने सहित किसी भी तरह के यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल जज बेंच ने अपने आदेश में यह टिप्पणी करते हुए आरोपी पति को आईपीसी की तीनों धाराओं 304, 376 और 377 के तहत लगे सभी आरोपों से बरी करते हुए उसे तुरंत जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने इस मामले में पिछले साल 19 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था और सोमवार 10 फरवरी को फैसला सुनाया।

हाईकोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार बस्तर के जगदलपुर निवासी याचिकाकर्ता पति ने अपनी पत्नी के साथ 11 दिसंबर 2017 की रात को उसकी सहमति के बगैर अप्राकृतिक संबंध बनाए थे।

पति पर आरोप लगाया गया कि इस कृत्य के कारण पीड़िता को असहनीय पीड़ा हुई और बाद में इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई। पुलिस ने मामला दर्ज कर पति को गिरफ्तार कर लिया था। बस्तर जिला अदालत में इस मामले की सुनवाई के दौरान पति को आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) 376 (दुष्कर्म) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत दोषी ठहराया और उसे 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई थी। निचली अदालत के इस फैसले को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने माना कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है तो पति द्वारा किसी भी यौन संबंध या यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।

हाईकोर्ट ने यह भी माना कि इन परिस्थितियों में पत्नी की सहमति महत्वहीन हो जाती है, इसलिए अपीलकर्ता पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता। इसी प्रकार आईपीसी की धारा 304 के तहत भी निचली अदालत ने कोई विशेष निष्कर्ष दर्ज नहीं किया है। हाईकोर्ट के फैसले में याचिकाकर्ता पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है तथा उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया है।

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