छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा- नक्सली हमला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा

बिलासपुर। नक्सल हमले के आरोपियों को एनआईए कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। एनआईए कोर्ट के फैसले को चुनौती हुए आरोपियों ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने आरोपियों की ओर से पेश अपील को खारिज करते हुए एनआइए कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि नक्सली हमला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इस तरह के हमले केवल अलग-थलग आपराधिक कृत्य नहीं हैं, बल्कि राज्य को अस्थिर करने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के उद्देश्य से व्यापक, सुसंगठित विद्रोह का हिस्सा है।

11 मार्च 2014 को, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की 80वीं बटालियन के 30 कर्मियों और टोंगपाल पुलिस स्टेशन के 13 पुलिस अधिकारियों के एक रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) को निर्माण श्रमिकों के लिए सड़क को सुरक्षित करने का काम सौंपा गया था।

सुबह तकरीबन 10:30 बजे ताहकवाड़ा गांव के पास सुरेंद्र, देवा, विनोद और सोनाधर के नेतृत्व में दरभा डिवीजन के माओवादी कार्यकर्ताओं ने आरओपी पर घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में वहां से गुजर रहे एक नागरिक की भी मौत हो गई। मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि घात लगाकर किए गए हमले की पूर्वनियोजित प्रकृति, उन्नत रणनीति और हथियारों के इस्तेमाल और अधिकतम हताहतों को पहुंचाने के इरादे पर प्रकाश डाला, जिससे इन हमलों को सामान्य अपराधों से अलग किया जा सके।

एनआईए ने भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप पत्र दाखिल किया था। जगदलपुर की विशेष अदालत ने कवासी जोगा, दयाराम बघेल, मनीराम कोर्राम और महादेव नाग सहित कई व्यक्तियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

डिवीजन बेंच ने कहा “ये हमले पूर्व नियोजित, अत्यधिक संगठित और राजनीतिक रूप से प्रेरित होते हैं, जो उन्हें सामान्य अपराधों से कहीं अधिक खतरनाक बनाते हैं। चोरी या हत्या जैसे सामान्य अपराधों के विपरीत, नक्सली हमले राज्य को अस्थिर करने के लिए किए गए कार्य हैं। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अभियानों की मुख्य विशेषताएं घात लगाकर हमला करना, गुरिल्ला युद्ध की रणनीति और तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों (आईईडी) का उपयोग हैं।

कोर्ट ने ऐसे मामलों में अभियोजन चलाने में चुनौतियों को स्वीकार किया तथा नक्सलियों की पहचान करने और उन्हें पकड़ने में कठिनाई, उनके द्वारा छद्म नामों का प्रयोग, तथा प्रतिशोध के भय से स्थानीय ग्रामीणों द्वारा गवाही देने में अनिच्छा का हवाला दिया। डिवीजन बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य, गवाहों के बयान और हथियारों व विस्फोटकों की बरामदगी, दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त हो सकते हैं।

इस मामले में डिवीजन बेंच ने पूर्व नक्सलियों सहित कई गवाहों की गवाही पर भरोसा किया, ताकि यह स्थापित किया जा सके कि जिन बैठकों में हमले की योजना बनाई गई थी, उनमें आरोपियों की उपस्थिति और भागीदारी थी।

कोर्ट ने अभियुक्त के खुलासे वाले बयानों और अपराध सिद्ध करने वाली सामग्रियों की बरामदगी पर भी विचार किया। कुछ साक्ष्यों की स्वीकार्यता और गवाहों की विश्वसनीयता पर बचाव पक्ष की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित कर दिया है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, “षड्यंत्र हमेशा गुप्त रूप से रचा जाता है, और प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करना कठिन हो सकता है। अभियोजन पक्ष अक्सर विभिन्न पक्षों के कृत्यों के साक्ष्य पर निर्भर करता है ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि वे सामान्य इरादे से किए गए थे। इस तरह के प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य से साजिश निस्संदेह साबित हो सकती है। डिवीजन बेंच ने माओवादियों की अपील खारिज कर दी और एनआईए अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

11 मार्च 2014 को, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 80वीं बटालियन के 30 कर्मियों और टोंगपाल पुलिस स्टेशन के 13 पुलिस अधिकारियों के एक सड़क-उद्घाटन दल (आरओपी) को निर्माण श्रमिकों के लिए सड़क को सुरक्षित करने का काम सौंपा गया था।

सुबह करीब 10:30 बजे ताहकवाड़ा गांव के पास सुरेंद्र, देवा, विनोद और सोनाधर के नेतृत्व में दरभा डिवीजन के माओवादी कार्यकर्ताओं ने आरओपी पर घात लगाकर हमला किया। इस हमले में वहां से गुजर रहे एक नागरिक की भी मौत हो गई। माओवादियों ने शहीद जवानों से हथियार और उपकरण लूट लिए, जिनमें छह एके-47 राइफलें, एक इंसास एलएमजी, आठ इंसास राइफलें और दो एसएलआर राइफलें शामिल थीं।

सन्ना, सुरेन्द्र, गणेश उइके और अन्य सहित कई व्यक्तियों तथा 150-200 संयुक्त माओवादियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। 21 मार्च 2014 को जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई। एनआईए ने भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप दायर किए। जगदलपुर की विशेष अदालत ने कवासी जोगा, दयाराम बघेल, मनीराम कोर्राम और महादेव नाग सहित कई व्यक्तियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

दोषियों ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 (एनआईए) की धारा 21(1) के तहत अपील दायर की, जिसमें विशेष सत्र परीक्षण में विशेष न्यायाधीश (एनआईए अधिनियम/अनुसूचित अपराध), बस्तर, जगदलपुर के 12 फरवरी 2024 के फैसले को चुनौती दी गई। इस मामले में अपीलकर्ताओं को दोषी पाया गया। दोषियों को हत्या (आईपीसी 302), साजिश (आईपीसी 120-बी) और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम तथा यूएपीए के तहत अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। साथ ही शस्त्र अधिनियम के तहत अलग-अलग सजाएं भी दी गईं। दोषी व्यक्तियों में कवासी जोगा उर्फ पाडा, दयाराम बघेल उर्फ रमेश अन्ना, मनीराम कोर्राम उर्फ बोटी और महादेव नाग शामिल है।