राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों की आलोचना पड़ी भारी, प्रोफेसर को गंवाना पड़ा पद

बीजिंग । चीन की कम्युनिस्ट सरकार की नीतियों की आलोचना अपराध की श्रेणी में आता है फिर भले ही वो न्यायसंगत न हो। ताजा मामला चीन की प्रतिष्ठित सिंघुआ यूनिवर्सिटी का जहां कानून के प्रोफेसर जू झानग्रेन को केवल इसलिए बर्खास्त कर दिया है, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों की आलोचना की थी।
जू झानग्रेन उन चुनिंदा चीनी शिक्षाविदों में से एक हैं, जिन्होंने जिनपिंग की गलत नीतियों की खुलकर आलोचना की। इस संबंध में पुलिस ने उन्हें हिरासत में भी लिया था और करीब छह दिनों बाद उन्हें रिहा किया गया। प्रोफेसर ने कार्रवाई की परवाह न करते हुए कहा था, ‘कोरोना महामारी ने चीनी शासन के सड़े हुए सिस्टम को उजागर कर दिया है। मैं अभी यह बता सकता हूं कि इसके लिए मुझे दंड दिया जाएगा। संभव है ये मेरे आखिरी शब्द भी हो सकते हैं। मैंने राष्ट्रपति के खिलाफ बोलने की हिम्मत की है, जो सरकार की नजरों में अपराध के समान है’।
यूनिवर्सिटी ने औपचारिक रूप से प्रोफेसर को हटाये जाने की सूचना दी। जू झानग्रेन 2018 में एकदम से सुर्खियों में आये थे जब उन्होंने शी जिनपिंग की आलोचना की थी। तब उन्हें चेतावनी देते हुए निलंबित कर दिया गया था, लेकिन प्रोफेसर सरकार के गलत निर्णयों और नीतियों के खिलाफ मुखर रहे।
सिंघुआ विश्वविद्यालय, जिसके पूर्व छात्रों में राष्ट्रपति शी शामिल हैं, को हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग द्वारा चीन के नंबर-1 विश्वविद्यालय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 57 वर्षीय प्रोफेसर ने करीब 20 सालों तक इस यूनिवर्सिटी में सेवाएं प्रदान की हैं। उधर, यूनिवर्सिटी ने अपने फैसले को पूरी तरह सही करार दिया है। उसकी तरफ से कहा गया है कि ‘इसकी पुष्टि हुई है कि जू झानग्रेन जुलाई 2018 से कई मौकों पर सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं, जो शिक्षकों के पेशेवर आचरण का गंभीर उल्लंघन है, इसलिए कार्रवाई स्वरूप उन्हें बर्खास्त किया गया है’। चीन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा 2018 में जारी दिशानिर्देशों में कहा गया है कि यदि शिक्षक कम्युनिस्ट पार्टी या उसकी नीतियों और फैसलों के खिलाफ कुछ भी बोलते या लिखते हैं, तो उन्हें बर्खास्त या दण्डित किया जा सकता है।
वैसे, तो चीन में हमेशा से कम्‍युनिस्‍ट पार्टी द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सख्ती से दबाया गया, लेकिन शी जिनपिंग के काल में यह सख्‍ती और बढ़ गई है। हालांकि, भारी सेंसरशिप वाले इस देश में जू एक ऐसे दुर्लभ मुखर आलोचक रहे हैं जिन्‍होंने समय-समय पर कम्युनिस्ट शासन की आलोचना की। जू ने फरवरी में चीन में कोरोना वायरस के प्रसार के दौरान शी द्वारा धोखे और सेंसरशिप की संस्कृति को बढ़ावा देने की आलोचना करते हुए एक निबंध प्रकाशित किया था।
उन्होंने लिखा था कि चीन का ‘लीडर सिस्‍टम स्वयं ही शासन की संरचना को नष्ट कर रहा है’। उन्‍होंने यह भी कहा कि वायरस के एपिसेंटर हुबेई प्रांत में फैली अराजकता चीनी राज्य में प्रणालीगत समस्याओं को दर्शाती है। जू का यह निबंध कई विदेशी वेबसाइटों पर पोस्ट किया गया था।