नैगेटिव किरदार के कारण लोक्रपिय हुए मोहनीश

बौलीवुड में कुछ करने की ललक ही मोहनीश बहल को मायानगरी की रंगीन दुनिया में लाई थी। 1983 में आई फिल्म ‘बेकरार’ से ऐक्टिंग की शुरुआत करने वाले नूतन के बेटे मोहनीश आए तो थे ऐक्टर बनने पर 1989 की ब्लौकबस्टर फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ में सलमान के अपोजिट उन के नैगेटिव किरदार ने उन्हें सुर्खियों में ला दिय।. मोहनीश ने कई यादगार किरदारों को निभाया है। फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ और ‘हम साथसाथ हैं’ में उन के द्वारा निभाया गया आदर्श बड़े भाई का किरदार हमेशा याद रहेगा। फिल्म ‘जय हो’ के बाद वे छोटे परदे से जुडे़ और दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं।
अपने कठिन दौर को याद करते हुए मोहनीश ने कहा कि उस दौर की ‘पुराना मंदिर’ मेरी हिट फिल्म थी, लेकिन हौरर फिल्मों को उस समय बी ग्रेड माना जाता था1 फिल्मों में नाकामयाब होने के बाद मैं ने इंडस्ट्री छोड़ने का मन बना लिया और फ्लाइंग सीखना शुरू कर दिया, क्योंकि काम तो करना ही था। तभी मैं मैंने प्यार किया’ फिल्म का औडीशन के लिए सिलैक्ट हो गया। उस फिल्म में निभाया गया मेरा ग्रे करैक्टर मेरे कैरियर का टर्निंग अंक साबित हुआ।
उन के जीवित रहते मेरा फिल्मी कैरियर शुरू हो चुका था, लेकिन परवान नहीं चढ़ा था। उन्होंने मेरी फिल्में ‘मैं ने प्यार किया’ और ‘बाग़ी’ देखीं। उन्हें मेरा काम पसंद आया। जब बीच में मेरे पास कोई काम नहीं था तब वे हमेशा मेरी हिम्मत बढ़ाती रहतीं और अमितजी का उदाहरण देतीं हालांकि मेरे ऊपर घर चलाने की जिम्मेदारी नहीं थी, लेकिन वे कहती थीं कि लाइफ में किसी भी चीज की गारंटी नहीं है।
उन की कौन सी फिल्में आप को सब से ज्यादा पसंद हैं?
जब मैं छोटा था तब उन की फिल्में कम देखता था, क्योंकि मां अपनी फिल्मों में रोती बहुत थीं और मुझे उन्हें रोते हुए देखना बिलकुल पसंद नहीं था। मैं उन्हें परदे पर ही सही, लेकिन तकलीफ सहते हुए नहीं देख सकता था. कुछ फिल्में तो मैं ने तब देखीं, जब बड़ा हो गया था। उन की फिल्में ‘सुजाता’, ‘बंदिनी‘, और मिलन’ मुझे बहुत पसंद हैं। मां के नाम का सहारा इतना रहा कि 20-22 साल तक तो इसी नाम से फिल्में चलती रहीं और काम मिलता रहा।
असुरक्षा की भावना से मैं आज तक नहीं उबर पाया हूं। मैं मानता हूं कि हम सभी में असुरक्षा की भावना रहती है। जब मैं इंडस्ट्री में नया आया था तब से ले कर आज तक फिल्मों में जो बदलाव आया है। वह तकनीकी रूप से ज्यादा आया है। पहले बंदिशें बहुत थीं, आज उतनी नहीं हैं। आज किसी ऐक्टर को देख कर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि यह ऐसी फिल्म बनाएगा। पहले सभी के स्लौट सीमित थे। हर फिल्म में कौमेडियन, विलेन, हीरो सभी अलग होते थे, लेकिन आज की फिल्मों की कहानी अलग तरह की होती है। यह बदलाव ही है।