सिर्फ डिग्री प्राप्त करने से ही सफलता नहीं मिलती, बल्कि अनुशासन, संवेदनशीलता, दया और करूणा का भाव भी आवश्यक : उइके
रायपुर : सिर्फ डिग्री प्राप्त करने से ही सफलता नहीं मिलती है, बल्कि इसके साथ अनुशासन, संवेदनशीलता, दया और करूणा का भाव भी आवश्यक है, यह भाव आने से जीवन में निश्चित ही सफलता मिलती है। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि विश्वविद्यालय शिक्षा में ऐसे गतिविधियों को शामिल करें जिससे उनका समाज से जुड़ाव हो। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने कही। वे आज हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग द्वारा ‘‘उच्च शिक्षा का सामाजिक सरोकार’’ विषय पर आयोजित वेबिनार में मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रही थी।
राज्यपाल ने कहा कि उच्च शिक्षा हो अथवा शालेय शिक्षा, दोनों ही का सामाजिक सरोकार अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसमें विद्यमान समाजों की प्रगति पर निर्भर होती है। कोई भी शिक्षित समाज ही किसी प्रदेश अथवा देश की उन्नति में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा सकता है। उच्च शिक्षा का दायित्व इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि हमारे भारतीय समाज का लगभग 30 प्रतिशत, युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। यही युवा महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा ग्रहण कर समाज को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं अथवा वर्तमान सामाजिक दशा में रचनात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस कोविड-19 की संकट की घड़ी में तथा उसके पश्चात भी हमेशा ‘‘बहुजन सुखाय-बहुजन हिताय’’ की अवधारणा पर कार्य करें। एनएसएस के स्वयंसेवक जब वार्षिक शिविरों में शामिल होते हैं, तो समाज के प्रति उनकी सोच में तथा समाज को देखने के नजरिए में सकारात्मक परिवर्तन आता है।
राज्यपाल ने कहा कि एनएसएस जैसी संस्थाएं युवाओं में सामाजिक चेतना और राष्ट्रप्रेम की भावना विकसित करता है। मैं स्वयं एनएसएस से जुड़ी थी और इनके शिविर में शामिल होकर जब सेवा करने का मौका मिला तो समाज के प्रति सेवा की प्रेरणा मिली। मैं अपने सहपाठियों से सेवा में सहभागी होने आग्रह करती थी और कहती थी कि कोई भी काम छोटा नहीं होता मानव मात्र की सेवा करना ही सबसे बड़ी सेवा कार्य है। ऐसी भावना जिस व्यक्ति में होती है वह किसी भी क्षेत्र में हो अवश्य सफल होता है। एनएसएस में ‘हम होंगे कामयाब’’ का गीत गाया जाता है, ऐसी भावना से व्यक्ति कर्तव्य के प्रति जागरूक होता है। प्राचीन समय में संयुक्त परिवार की अवधारणा होती थी, लेकिन यह धारणा धीरे-धीरे टूटने लगी है, लेकिन आज कोरोनाकाल ने लोगों को अपने दायित्य का बोध कराया है और लोग एक दूसरे से जुड़ रहे हैं।
राज्यपाल के सचिव श्री सोनमणि बोरा ने कहा कि एन.एस.एस. की स्थापना 1969 में हुई, जिस वर्ष महात्मा गांधी के जन्म को सौ वर्ष पूरे हुए थे। एनएसएस का मूलमंत्र ‘‘मैं नहीं आप’’ है। इसी मूलमंत्र को अपनाकर एनएसएस के स्वयंसेवक मानव कल्याण का कार्य करते हैं। यह ऐसा संगठन है, जो सामाजिक सेवा को प्रोत्साहित करता है। श्री बोरा ने साउथ कोरिया के ैमंउंनस न्दकवदह आंदोलन का उद्धरण देते हुए कहा कि इस आंदोलन में सभी वर्गों ने यह सोच के साथ अपनी भागीदारी निभाई कि हम राष्ट्र के लिए कुछ कर सकते हैं और एक अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया। आज हम देख सकते हैं कि साउथ कोरिया विश्व में किस स्थान में है। यदि किसी देश के नागरिकों में राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना होगी, तो वह देश निश्चित ही प्रगति करता है। उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे कार्यों और योगदान से बड़े उद्देश्य की प्राप्ति होती है यदि हम छोटे-छोटे कार्य से अपनी भूमिका का निर्वहन करें तो देश निश्चित ही आगे बढ़ेगा।
उन्होंने छत्तीसगढ़ में एनएसएस के कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति की यह सोच होता है कि वह देश और समाज से जितना लिया है, उससे अधिक लौटाउंगा तो वह जरूर सफल होता है। एनएसएस जैसे संस्थाएं युवाओं ऐसी भावनाओं का रोपण करती है। उन्होंने कहा कि आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से जुझ रहा है, इस समय नोवेल कोरोना वायरस जो समस्या है वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसी से जुड़ी हुई है। आज उच्च शिक्षा को इस दिशा में सोचना होगा कि ऐसे समस्याओं से कैसे सारोकार रखें और कैसे सुलझाएं। उच्च शिक्षा संस्थानों से जुड़े हुए सभी प्रबुद्धजनों की जिम्मेदारी है कि इन समस्याओं के समाधान के बारे में मंथन करें।
कार्यक्रम को हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग की कुलपति डॉ. अरूणा पल्टा, राज्य एन.एस.एस. अधिकारी व पदेन उपसचिव उच्च शिक्षा विभाग डॉ. समरेन्द्र सिंह ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के कुल सचिव डॉ. सी.एल. देवांगन, अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव, समन्वयक एन.एस.एस. डॉ. आर.पी. अग्रवाल सहित छात्र-छात्राएं शामिल हुए।