11 साल बाद आया हाई कोर्ट का फैसला, 110 कर्मचारियों को मिली राहत

बिलासपुर। जिला सहकारी केंद्रीय के बर्खास्त कर्मचारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने बैंक द्वारा जारी बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है। सभी कर्मचारियों को सेवा में वापस लेने का निर्देश जारी किया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि

सेवा से हटाए जाने का दुष्परिणाम कर्मचारी से आगे बढ़कर उनके परिवारों तक पहुंचते हैं। लिहाजा प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों का अनुपालन सुनिश्चित करना न केवल आवश्यक है, बल्कि यह एक नैतिक दायित्व भी है। सेवा से बर्खास्तग कर्मचारियों ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर की थी। सभी याचिकाओं की हाई कोर्ट में एकसाथ सुनवाई चल रही थी।

जिला सहकारी केंद्रीय बैंक द्वारा 14 जून 2014 को विभिन्न पद हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। याचिकाकर्ता पंकज कुमार तिवारी द्वारा समिति प्रबंधक के पद पर आवेदन प्रस्तुत किया गया था। समस्त प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद पंकज कुमार तिवारी की नियुक्ति संस्था प्रबंधक के पद पर 14 फरवरी 2015 को हुई। जिसके आधार पर 13 मार्च 2015 को अपना कार्यभार ग्रहण किया।

सहकारी बैंक की समस्त भर्ती प्रक्रिया में शिकायत होने पर जांच समिति का गठन किया गया था। जांच प्रतिवेदन के आधार पर जिला सहकारी बैंक के मुख्य कार्यपालिका अधिकारी ने 4 नवंबर 2015 को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। जवाब के बाद पंकज कुमार तिवारी की 23 नवंबर 2015 को सेवा समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया। सीईओ के इस आदेश के खिलाफ पंकज ने संयुक्त पंजीयक सहकारी संस्थाएं रायपुर संभाग के समक्ष वाद प्रस्तुत किया। संयुक्त पंजीयक सहकारी संस्थाएं रायपुर ने वाद को रद्द करते हुए सीईओ के आदेश को सही ठहराया। संयुक्त पंजीयक सहकारी संस्थाएं के आदेश को चुनौती देते हुए पंकज ने छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी अधिकरण बिलासपुर के समक्ष वाद पेश किया। अधिकरण ने संयुक्त पंजीयक सहकारी संस्था व सीईओ के आदेश को सही ठहराते हुए वाद को निरस्त कर दिया।

छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी अधिकरण बिलासपुर के आदेश 20 फरवरी 2020 और संयुक्त पंजीयक सहकारी संस्थाएं रायपुर के आदेश 14 अगस्त 2019 तथा सेवा समाप्ति आदेश और विभागीय जांच रिपोर्ट को चुनौती देते हुए अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और घनश्याम कश्यप के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता सिद्दीकी ने कहा कि जिला सहकारी केंद्रीय बैंक द्वारा कुल 110 पदों पर भर्ती हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। याचिकाकर्ता द्वारा स्वयं की योग्यता के आधार पर प्रबंधक के पद हेतु आवेदन किया गया था। लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करने पर साक्षात्कार हेतु पत्र जारी किया गया। साक्षात्कार हेतु पत्र में तय मापदंड के अनुसार कि यदि विज्ञापन में दिए गए समस्त शर्तों और नियमों के तहत उम्मीदवार पूर्ण होता है तभी उसे साक्षात्कार में भाग लेने दिया जाएगा। याचिकाकर्ता द्वारा साक्षात्कार में सफल होने पर बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा नियुक्ति पत्र जारी किया गया। जिसमें याचिकाकर्ता को प्रबंधक के पद पर नियुक्ति प्रदान की गई। नियुक्ति आदेश में यह भी लिखा था कि कार्यभार ग्रहण करते समय शैक्षणिक योग्यता, जन्म तिथि, निवास, जाति संबंधी दस्तावेज सभी प्रमाणित प्रतिलिपियों के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। याचिकाकर्ता ने संपूर्ण औपचारिकताएं पूर्ण करने पर कार्यभार ग्रहण कर अपने ड्यूटी ईमानदारी से प्रारंभ किया।

दुर्गेश राजपूत की शिकायत पर संभाग आयुक्त द्वारा जांच हेतु समिति का गठन किया गया। जिसके आधार पर याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया गया था। किंतु जांच में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक ने दुर्गेश राजपूत के शिकायत को प्रमाणित नहीं कर पाया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि जांच एकतरफा थी। सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना ही कार्रवाई की गई है। इसलिए जांच रिपोर्ट बर्खास्तगी का आधार नहीं बन सकता।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि सेवा समाप्ति की पूरी प्रक्रिया आयुक्त राजस्व द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है, जबकि आयुक्त राजस्व को जांच शुरू करने का कोई अधिकार नहीं है। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने पंकज कुमार तिवारी , मोहम्मद इमरान खान, चंदन प्रताप सिंह, सीमा देवांगन, चंचल कुमार दुबे, चंद्रशेखर कुर्रे लेखा कश्यप, भूपेंद्र राठौर, नरेंद्र कुमार मिश्रा, अमित पटेल व अन्य याचिकाओं को स्वीकार करते हुए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर द्वारा जारी सेवा समाप्ति आदेश को निरस्त करते हुए सेवा में बहाली का आदेश दिया है।